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'''वीरभद्र''' शिव का एक बहादुर गण था जिसने [[शिव]] के आदेश पर [[दक्ष]] प्रजापति का सर धड़ से अलग कर दिया. [[देवसंहिता]] और [[स्कंद पुराण]] के अनुसार शिव ने अपनी जटा से '[[वीरभद्र]]' नामक गण उत्पन्न किया। [[देवसंहिता]] गोरख सिन्हा द्वारा मद्य काल में लिखा हुआ संस्कृत श्लोकों का एक संग्रह है जिसमे [[जाट]] जाति का जन्म, कर्म एवं जाटों की उत्पति का उल्लेख [[शिव]] और [[पार्वती]] के संवाद के रूप में किया गया है।
 
[[ठाकुर देशराज]]<ref>[[ठाकुर देशराज]]: जाट इतिहास, [[महाराजा सूरजमल]] स्मारक शिक्षा संस्थान, [[दिल्ली]], 1934, पेज 87-88. </ref>लिखते हैं कि जाटों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक मनोरंजक कथा कही जाती है। [[महादेवजी]] के श्वसुर राजा [[दक्ष]] ने यज्ञ रचा और अन्य प्रायः सभी देवताओं को तो यज्ञ में बुलाया पर न तो [[महादेवजी]] को ही बुलाया और न ही अपनी पुत्री [[सती]] को ही निमंत्रित किया। पिता का यज्ञ समझ कर [[सती]] बिना बुलाए ही पहुँच गयी, किंतु जब उसने वहां देखा कि न तो उनके पति का भाग ही निकाला गया है और न उसका ही सत्कार किया गया इसलिए उसने वहीं प्राणांत कर दिए. [[महादेवजी]] को जब यह समाचार मिला, तो उन्होंने दक्ष और उसके सलाहकारों को दंड देने के लिए अपनी जटा से '[[वीरभद्र]]' नामक गण उत्पन्न किया। [[वीरभद्र]] ने अपने अन्य साथी गणों के साथ आकर [[दक्ष]] का सर काट लिया और उसके साथियों को भी पूरा दंड दिया. यह केवल किंवदंती ही नहीं बल्कि संस्कृत श्लोकों में इसकी पूरी रचना की गयी है जो [[देवसंहिता]] के नाम से जानी जाती है।
== सन्दर्भ ==
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