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[[चित्र:GLO1 Homo sapiens small fast.gif|thumb|300px|right| मानव प्रकिण्व [[:en:glyoxalase I|ग्लायेक्सेलेज़ १]]।<br /> अपनी अभिक्रिया को कैटालाइज़ करने हेतु आवश्यक दो [[जस्ता]] आयन [[पर्पल]] गोले में दर्शित हैं और एक प्रकिण्व इन्हिबिटर, एस-हेक्साइलग्लूटाथाइओन स्पेस-फिलिंग-प्रतिरूप के रूप में दो सक्रिय स्थलों को भरता दिखाया गया है।]]
'''प्रकिण्व''' ([[अंग्रेज़ी]]:''एंजाइम'') [[रासायनिकी|रासायनिक]] क्रियाओं को [[उत्प्रेरण|उत्प्रेरित]] करने वाले [[प्रोटीन]] को कहते हैं।<ref>{{cite book |author=स्मिथ अल (संपा.) ''et al.'' |title=ऑक्स्फ़ोर्ड डिक्शनरी ऑफ बायोकैमिस्ट्री एण्ड मॉलिक्युलर बायोलॉजी|publisher=ऑक्स्फ़ोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस|location=ऑक्स्फ़ोर्ड |year=१९९७ |isbn=0-19-854768-4 }}</ref><ref>{{cite book |author=ग्रेशम, चार्ल्स एम.; रेजिनॉल्ड एच गैरेट |title=बायोकैमिस्ट्री |publisher=सॉन्डर्स क्लब पब्लि. |location=फिलाडेल्फिया|year=१९९९ |pages=४२६-७ |isbn=0-03-022318-0 }}</ref> इनके लिये ''एन्ज़ाइम'' शब्द का प्रयोग सन [[१८७८]] में [[कुह्ने]] ने पहली बार किया था। प्रकिण्वों के स्रोत मुख्यतः [[सूक्ष्मजीव]] और फिर पौधे तथा जंतु होते हैं। किसी प्रकिण्व के [[अमीनो अम्ल]] में परिवर्तन द्वारा उसके गुणधर्म में उपयोगी परिवर्तन लाने हेतु अध्ययन को '''[[प्रकिण्व अभियांत्रिकी]]''' या ''एन्ज़ाइम इंजीनियरिंग'' कहते हैं। एन्ज़ाइम इंजीनियरिंग का एकमात्र उद्देश्य औद्योगिक अथवा अन्य उद्योगों के लिये अधिक क्रियाशील, स्थिर एवं उपयोगी एन्ज़ाइमों को प्राप्त करना है।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-119336.html एंजाइम्स]। हिन्दुस्तान लाइव। २४ मई
सभी उत्प्रेरकों की ही भांति, प्रकिण्व भी अभिक्रिया की उत्प्रेरण ऊर्जा (''E''<sub>a</sub><sup>‡</sup>) को कम करने का कार्य करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अभिक्रिया की गति में वृद्धि हो जाती है। अधिकांश प्रकिण्वन अभिक्रियाएं अन्य गैर-उत्प्रेरित अभिक्रियाओं की तुलना में लाखों गुना तेज गति से होती हैं। इसी प्रकार अन्य सभि उत्प्रेरण अभिक्रियाओं की तरह ही प्रकिण्व भी अभिक्रिया में खपते नहीं हैं, न ही अभिक्रिया साम्य में परिवर्तन करते हैं। फिर भी प्रकिण्व अन्य अधिकां उत्प्रेरकों से इस बाट में अलग होते हैं, कि प्रकिण्व किसी विशेष अभिक्रिया के लिये विशिष्ट होते हैं। प्रकिण्वों द्वारा लगभग ४००० से अधिक ज्ञात जैवरासायनिक अभिक्रियाएं संपन्न होती हैं।<ref>{{cite journal|url=http://www.expasy.org/NAR/enz00.pdf|format=पीडीएफ़|author=बैरोच ए.|year=२०००|title=द एन्ज़ाइम डाटाबेस इन २००० |journal=न्यूक्लिक एसिड्स |volume=२८ |pages=३०४-५ |pmid=10592255|doi=10.1093/nar/28.1.304|issue=१|pmc=102465 }}</ref> कुछ [[आर एन ए]] अणु भी अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं, जिसका एक अच्छा उदाहरण है [[राइबोसोम]] के कुछ भागों में होती अभिक्रियाएं।<ref>{{cite journal |author=लिली डी |title=स्ट्रक्चर, फ़ोल्डिंग एण्ड मैकेनिज़्म्स ऑफ राइबोसोम्स |journal=Curr Opin Struct Biol |volume=१५ |issue=३ |pages=३१३-२३|year=२००५ |pmid=15919196 |doi=10.1016/j.sbi.2005.05.002}}</ref><ref>{{cite journal |author=केच टी |title=स्ट्रक्चरल बायोलॉजी. द राइबोसोम इज़ ए राइबोज़ाइम |journal=साइंस |volume=२८९ |issue=५४८१ |pages= ८७८-९ |year= २००० |pmid=10960319 |doi=10.1126/science.289.5481.878}}</ref> कुछ कृत्रिम अणु भी प्रकिण्वों जैसी उत्प्रेरक क्रियाएं दिखाते हैं। इन्हें [[:en:artificial enzyme|कृत्रिम प्रकिण्व]] कहते हैं।<ref>{{cite journal |author=ग्रोव्स जेटी |title=आर्टिफ़ीशियल एन्ज़ाइम्स. द इम्पॉर्टेन्स ऑफ बींग सेलेक्टिव |journal=नेचर |volume=३८९ |issue=६६४९ |pages=३२९-३० |year=१९९७ |pmid=9311771 | doi =10.1038/38602}}</ref>
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