"व्यक्तित्व विकास": अवतरणों में अंतर
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:'''अभयं मित्रादभयममित्रादभयं ज्ञातादभयं परोक्षात्।'''
यह प्रार्थना ही मनुष्य को अभयदान नहीं दे सकती। ईश्वर ने मनुष्य को भय पर विजय पाने का साधन पहले ही दिया हुआ है। जिस तरह मनुष्य में प्रतिकूलता से डरने की प्रवृत्ति है, उसी तरह प्रतिकूलताओं से युद्ध करने की और अपनी प्रतिष्ठा रखने की प्रवृत्ति भी है। इन प्रवृत्तियों को जागृत करके मनुष्य जब भय को जीतने का संकल्प कर ले, तो वह स्वयं निर्भय हो जाता है। मनुष्य की एक प्रवृत्ति दूसरी प्रवृत्ति का सन्तुलन करती रहती है। जिस तरह प्रवृत्तियां स्वाभाविक हैं, उसी तरह सन्तुलन भी स्वाभाविक प्रक्रिया है। प्राकृतिक अवस्था में यह कार्य स्वयं होता रहता है। किन्तु हमारा जीवन केवल प्राकृतिक अवस्थाओं में से नहीं गुज़रता। विज्ञान की कृपा से हमारा जीवन प्रतिदिन अप्राकृतिक और विषम होता जाता है। हमारी परिस्थितियाँ असाधारण होती जाती है। हमारा जीवन अधिक साहसिक और वेगवान होता जाता है। संघर्ष बढ़ता ही जाता है। जीवित रहने के लिए भी हमें जान लड़ाकर कोशिश करनी पड़ती है। जीने की प्रतियोगिता में केवल शक्तिशाली ही जीतते हैं। योग्यतम को ही जीने का अधिकार
== इन्हें भी देखें ==
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* [http://prabhatkhabar.com/taxonomy/term/39 व्यक्तित्व विकास पर अनेकानेक लेख] (प्रभात खबर)
* [http://books.google.co.in/books?id=UP32psKNmWoC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false व्यक्तित्व निर्माण] (गूगल पुस्तक ; लेखक - मदनलाल शुक्ल)
* [http://books.google.co.in/books?id=rqxJO3znEBwC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false व्यक्तित्व मनोविज्ञान] (गूगल पुस्तक ; लेखक - मधु अस्थाना,
* [http://sarathi.info/archives/388 आकर्षक व्यक्तित्व कैसे पायें]
* [http://agoodplace4all.com/?p=786 अपने व्यक्तित्व का विकास कैसे करे]
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