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|skyline_caption=[[लाक्षागृह]] टीले से बरनावे का दृश्य
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'''बरनावा''' या '''वारणावत''' [[मेरठ]] से ३५ किलोमीटर दूर और [[सरधना]] से १७ कि.मी [[बागपत जिला]] में स्थित एक [[तहसील]] है। इसकी स्थापना राजा अहिरबारन तोमर ने बहुत समय पूर्व की थी।<ref>[http://www.india9.com/i9show/Barnawa-21344.htm बरनावा]</ref> यहां [[महाभारत]] कालीन '''[[लाक्षाग्रह]]''' चिन्हित है। लाक्षाग्रह नामक इमारत के अवशेष यहां आज एक टीले के रूप में दिखाई देते हैं। महाभारत में कौरव भाइयों ने पांडवों को इस महल में ठहराया था और फिर जलाकर मारने की योजना बनायी थी। किन्तु पांडवों के शुभचिंतकों ने उन्हें गुप्त रूप से सूचित कर दिया और वे निकल भागे। वे यहां से गुप्त सुरंग द्वारा निकले थे। ये सुरंग आज भी निकलती है, जो [[हिंडन नदी]] के किनारे पर खुलती है। इतिहास अनुसार [[पांडव]] इसी सुरंग के रास्ते जलते महल से सुरक्षित बाहर निकल गए थे।<ref name="मुसाफ़िर">[http://neerajjaatji.blogspot.com/2008/12/blog-post_7160.html मेरठ में है हस्तिनापुर]। मुसाफ़िर हूं यारों। १६ दिसंबर,दिसम्बर २००८। नीरज जाट जी</ref> जनपद में बागपत व बरनावा तक पहुंचने वाली कृष्णा नदी का यहां हिंडन में मिलन होता है।<ref>[http://hindi.indiawaterportal.org/content/%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%B0 नदियां बनी जहर]|इंडिया वॉटर पोर्टल</ref>
 
उल्लेखनीय है कि पांडवों ने जो पाँच गाँव दुर्योधन से माँगे थे वह गाँव [[पानीपत]], [[सोनीपत]], [[बागपत]], [[तिलपत]], वरुपत (बरनावा) यानि पत नाम से जाने जाते हैं।<ref>[http://kairana.blogspot.com/2008/12/blog-post_31.html कैराना]</ref> जब श्रीकृष्ण जी संधि का प्रस्ताव लेकर दुर्योधन के पास आए थे तो दुर्योधन ने कृष्ण का यह कहकर अपमान कर दिया था कि "युद्ध के बिना सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं मिलेगी।" इस अपमान की वजह से [[कृष्ण]] ने [[दुर्योधन]] के यहाँ खाना भी नहीं खाया था। वे गए थे महामुनि विदुर के आश्रम में। [[विदुर]] का आश्रम आज [[गंगा]] के उस पार [[बिजनौर जिला|बिजनौर जिले]] में पड़ता है। वहां पर विदुर जी ने कृष्ण को बथुवे का साग खिलाया था। आज भी इस क्षेत्र में बथुवा बहुतायत से उगता है।<ref name="मुसाफ़िर"/>