"भारतीय विधि आयोग": अवतरणों में अंतर
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आयोग ने सात रिपोर्टें दीं। प्रथम रिपोर्ट ने आगे चलकर भारतीय दाय विधि 1865 का रूप लिया। द्वितीय रिपोर्ट में था अनुबंध विधि का प्रारूप, तृतीय में भारतीय परक्राम्यकरण विधि का प्रारूप, चतुर्थ में विशिष्ट अनुतोष विधि का, पंचम में भारतीय साक्ष्य विधि का एवं षष्ठ में संपत्ति हस्तांतरण विधि का प्रारूप प्रस्तुत किया गया था। सप्तम एवं अंतिम रिपोर्ट आपराधिक संहिता के संशोधन के विषय में थी। इन रिपोर्टों के उपरांत भी उन्हें विधि का रूप देने में भारतीय शासन ने कोई तत्परता नहीं दिखाई। 1869 में इस विषय की ओर आयोग के सदस्यों ने अधिकारियों का ध्यान आकर्षित भी किया। किंतु परिणाम कुछ न निकला। इसी बीच सदस्यों तथा भारत सरकार के मध्य अनुबंध विधि के प्रारूप पर मतभेद ने विकराल रूप ले लिया, फलत: आयोग के सदस्यों ने असंतोष व्यक्त करते हुए त्यागपत्र दे दिया और इस प्रकार तृतीय आयोग समाप्त हो गया।
चतुर्थ आयोग के जन्म का भी मुख्य कारण तृतीय आयोग के समान द्वितीय आयोग की द्वितीय रिपोर्ट थी। भारत सरकार ने अनेक शाखाओं के विधि प्रारूप का कार्य विटली स्टोक्स को सौंपा था जो 1879 ई. में पूर्ण किया गया। इसकी पूर्ति पर सरकार ने एक आयोग इन विधेयकों की धाराओं का परीक्षण करने तथा मौलिक विधि के शेष अंगों के निमित्त सुझाव देने के लिए नियुक्त किया। यही था चतुर्थ आयोग। इसकी जन्मतिथि थी 11
इन सिफारिशों के फलस्वरूप व्यवस्थापिका सभा ने 1881 ई. में परक्राम्यकरण, 1882 में न्यास, संपत्ति हस्तांतरण और सुखभोग की विधियों तथा 1882 में ही समवाय विधि, दीवानी तथा आपराधिक व्यवहार संहिता का संशोधित संस्करण पारित किया। इन सभी संहिताओं में वैंथम के सिद्धांतों का प्रतिबिंब झलकता है। इन संहिताओं को भारत की विधि को अस्पष्ट, परस्परविरोधी तथा अनिश्चित अवस्था से बाहर निकालने का श्रेय है। चारों आयोगों के परिश्रम से सही प्रथम आयोग के सम्मुख उपस्थित किया गया कार्य संपन्न हो सका।
=== स्वतंत्रता के बाद ===
5 अगस्त
इसके समक्ष दो मुख्य कार्य रखे गए। एक तो न्याय शासन का सर्वतोमुखी पुनरवलोकन और उसमें सुधार हेतु आवश्यक सुझाव, दूसरा प्रमुख केंद्रीय विधियों का परीक्षण कर उन्हें आधुनिक अवस्था में उपयुक्त बनाने के लिए आवश्यक संशोधन प्रस्तुत करना। प्रथम समस्या पर अपनी चतुर्दश रिपोंर्ट में आयोग ने जाँच के परिणामस्वरूप उत्पन्न विचार व्यक्त किए। इस रिपोर्ट में आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, तथा अधीन न्यायालय, न्याय में क्लिंब, वादनिर्णय, डिक्री निष्पादन, शासन के विरुद्ध वाद, न्यायालय शुल्क, विधिशिक्षा, वकील, विधिसहायता, विधि रिपोर्ट, एवं न्यायालय की भाषा आदि महत्वपूर्ण विषयों पर मत प्रगट किए।
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