"मदनमोहन मालवीय": अवतरणों में अंतर

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=== स्वातन्त्र्य संग्राम में भूमिका ===
[[चित्र:Electrical Engg Deptt IT-BHU.JPG|thumb|right|200px|[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]] का एक विभाग]]
[[असहयोग आंदोलन]] के चतुर्सूत्री कार्यक्रम में शिक्षा संस्थाओं के बहिष्कार का मालवीयजी ने खुलकर विरोध किया जिसके कारण उनके व्यक्तित्व के प्रभाव से हिन्दू विश्वविद्यालय पर उसका अधिक प्रभाव नहीं पड़ा। 1921 ई0 में कांग्रेस के नेताओं तथा स्वयंसेवकों से जेल भर जाने पर किंकर्तव्यविमूढ़ वाइसराय लॉर्ड रीडिंग को प्रान्तों में स्वशासन देकर गान्धीजी से सन्धि कर लेने को मालवीयजी ने भी सहमत कर लिया था परन्तु 4 फरवरीफ़रवरी 1922 के [[चौरीचौरा काण्ड]] ने इतिहास को पलट दिया; गान्धीजी ने बारदौली की कार्यकारिणी में बिना किसी से परामर्श किये सत्याग्रह को अचानक रोक दिया। इससे कांग्रेस जनों में असन्तोष फैल गया और यह खुसुरपुसुर होने लगी कि बड़ा भाई के कहने में आकर गान्धीजी ने यह भयंकर भूल की है। गान्धीजी स्वयं भी पाँच साल के लिये जेल भेज दिये गये। इसके परिणामस्वरूप चिलचिलाती धूप में इकसठ वर्ष के बूढ़े मालवीय ने पेशावर से डिब्रूगढ़ तक तूफानी दौरा करके राष्ट्रीय चेतना को जीवित रखा। इस भ्रमण में उन्होंने बहुत बार कुख्यात धारा 144 का उल्लंघन भी किया जिसे सरकार खून का घूँट समझकर पी गयी। परन्तु 1930 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में उसी ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बम्बई में गिरफ्तार कर लिया जिस पर श्रीयुत् भगवान दास (भारतरत्न) ने कहा था कि मालवीयजी का पकड़ा जाना राष्ट्रीय यज्ञ की पूर्णाहुति समझी जानी चाहिये। उसी साल दिल्ली में अवैध घोषित कार्यसमिति की बैठक में मालवीयजी को पुन: बन्दी बनाकर नैनी जेल भेज दिया गया। यह उनकी जीवनचर्या तथा वृद्धावस्था के कारण यथार्थ में एक प्रकार की तपस्या थी। परन्तु सैद्धान्तिक मतभेद के कारण हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रिंस ऑव वेल्स का स्वागत और कांग्रेस स्वराज्य पार्टी के समकक्ष कांग्रेस स्वतंत्र दल व रैमजे मैकडॉनल्ड के साम्प्रदायिक निर्णय पर, जिसकी स्वीकृति को मालवीयजी ने राष्ट्रीय आत्महत्या माना। इस प्रकार कांग्रेस की अस्वीकार नीति के कारण निर्णय विरोधी सम्मेलन और राष्ट्रीय कांग्रेस दल का पुन: संगठन करने जैसे उनके कांग्रेस विरोध के उदाहरण भी इतिहास उल्लेखनीय हैं।
 
=== धर्म संस्कृति रक्षा ===