"महाराजा जसवंत सिंह (मारवाड़)": अवतरणों में अंतर
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| caption = मारवाड़ के जसवंत सिंह
| succession = मारवाड़ के शासक
| reign = {{nowrap|6 मई 1638-28
| coronation = 6 मई 1638
| predecessor = महाराजा गज सिंह I
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| mother =
| birth_date = 1629
| death_date = 10
| death_place = अटक
| religion = हिंदू धर्म (राजपूत)
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== परिचय ==
[[जोधपुर]] के महाराज [[गजसिंह]] के तीन पुत्र थे- अमरसिंह, जसवंतसिंह और अचलसिंह। अचलसिंह का देहांत बचपन में ही हो गया। अमरसिंह वीर किंतु बहुत क्रोधी थे इसलिये गजसिंह ने अपने छोटे पुत्र जसवंतसिंह की ही गद्दी के उपयुक्त समझा। २५ मई
प्राय: राज्य के आरंभ काल से ही जसवंतसिंह शाही सेना में रहा। सन् १६४२ में उसने शाही सेना के साथ [[ईरान]] के लिये प्रयाण किया। एक साल बाद वह वापस लौटा। सन् १६४८ में ईरान के शाह अब्बास ने ५०,००० सेना और तोपें लेकर [[कंधार]] को घेर लिया। कुछ समय के बाद किला उसके हाथ आया। जसवंतसिंह किले पर घेरा डालनेवाली शाहजादे [[औरंगजेब]] की फौज में में संमिलित था। औरंगजेब किला लेने में असमर्थ रहा। इसी बीच जसवंतसिंह के मनसव में अनेक बार बृद्धि हुई और सन् १६५५ में उसे महाराजा की पदवी मिली।
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सन् १६५७ में बादशाह [[शाहजहाँ]] बीमार हुआ और उसके पुत्रों में राज्याधिकार के लिये युद्ध शुरू हो गया। [[दारा]] ने बादशाह से कहकर जसंवतसिंह का मनसब ७,००० ज़ात और ७,००० सवार करवा दिया और उसे एक लाख रुपये और मालवे की सूबेदारी देकर औरंगजेब के विरुद्ध भेजा। दूसरी शाही सेना कासिमखाँ के सेनापतित्व में उससे आ मिली। इसी बीच औरंगजेब ने शाहजादा मुराद को अपनी ओर कर लिया। 'धर्मत' नाम के स्थान पर दोनों सेनाओं का सामना हुआ। [[कोटा]] का राव मुकुंदसिंह, उसके तीन भाई, शाहपुरा का सुजानसिंह सीसोदिया, अर्जुन गोड़, दयालदास झाला, मोहनसिंह हाड़ा आदि अनेक राजा और सरदार उसे साथ थे। हरावल का नायक कासिमखाँ था और जसवंतसिंह, स्वयं २,००० राजपूतों के बीच केंद्र में था। उनमें से कई राजपूत सरदार तो प्रारंभिक आक्रमण में ही काम आए। टोड़े का रायसिंह, बुंदेला सुजानसिंह आदि भाग निकले। जसवंतसिंह अवशिष्ट राजपूतों के साथ वीरता से लड़ता हुआ औरंगजेब के पास तक पहुँचा किंतु इसी बीच वह बुरी तरह घायल हुआ। युद्ध में पराजय को निश्चित समझ उसके साथ के राजपूत जसवंतसिंह को बलपूर्वक युद्ध से बाहर ले गए और उसे [[जोधपुर]] लौटना पड़ा।
धर्मत के बाद औरंगजेब ने दारा को [[सामूगढ़]] की लड़ाई में हराया और २२ जुलाई
१६५९ में जसवंतसिंह गुजरात का सूबेदार नियुक्त हुआ, किंतु कुछ समय के बाद औरंगजेब ने उस स्थान पर [[महावतखाँ]] की नियुक्ति की। [[शिवाजी]] की बढ़ती शक्ति को देखकर औरंगजेब ने [[शाइस्ताखाँ]] को उसके विरुद्ध भेजा। उसने [[पुणे|पूने]] में रहना शुरु किया और जसवंतसिंह [[सिंहगढ़]] के मार्ग में ठहरा। शाइस्ताखाँ पर रात्रि के समय शिवाजी के आक्रमण की कथा प्रसिद्ध है। शिवाजी के विरुद्ध जसवंतसिंह ने कोई विशेष सफलता प्राप्त न की। बादशाह ने उसे दिल्ली वापस बुला लिया और उसके स्थान पर दिलेरखाँ और मिर्जा राजा जयसिंह की नियुक्ति की। किंतु सन् १६७८ में फिर उसकी नियुक्ति दक्षिण में हुई और उसके उद्योग से मुगलों और मरहटों के बीच कुछ समय के लिये संधि हो गई। सन् १६७० में वह दुबारा गुजरात का सूबेदार नियुक्त हुआ और सन् १६७३ में बादशाही फरमान मिलने पर काबुल के लिये रवाना हुआ। २८
महाराजा जसवंतसिंह वीर ही नहीं दानशील और विद्यानुरागी भी था। उसके रचित ग्रंथों में भाषाभूषण, अपरीक्षसिद्धांत, अनुभवप्रकाश, आनंदविलास, सिद्धांतबोध, सिद्धांतसार और प्रबोधचंद्रोदय आदि प्रसिद्ध हैं। [[सूरतमिश्र]], [[नरहरिदास]] और [[नवीनकवि]] उसकी सभा के रत्न थे। जसवंतसिंह का हृदय हिंदुत्व के प्रेम से परिपूर्ण था और उसके सदुद्योग और निरुद्योग से भी हिंदू राजाओं को पर्याप्त सहायता मिली। औरंगजेब भी इस बात स अपरिति न था। यह प्रसिद्ध है कि उसके मरने पर बादशाह ने कहा था, 'आज कुफ्र का दरवाजा टूट गया'। जसंवतसिंह के लिये हिंदूमात्र के हृदय में सम्मान था और इसी कारण जब औरंगजेब ने उसकी मृत्यु के बाद जोधपुर को हथियाने और कुमारों को मुसलमान बनाने का प्रयत्न किया तो समस्त [[राजस्थान]] में विद्वेषाग्नि भड़क उठी और राजपूत युद्ध का आरंभ हो गया।
== हिन्दू धर्म का विरोध नहीं कर पाए थे औरंगजेब ==
जोधपुर के राजा जसवंत सिंह ने अपने शासन काल के दौरान कई युद्धों में दिल्ली के बादशाह शाहजहां और औरंगजेब का साथ दिया। इसमें उन्होंने सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया। हालांकि, जब तक जसवंत सिंह जीवित थे, तब तक औरंगजेब मंदिर तोडऩा तो दूर जजिया कर (एक तरह का धार्मिक कर) भी नहीं ले पाए थे। लेकिन जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने राजस्थान पर आक्रमण करना और अपना प्रभुत्व जमाना शुरू कर दिया। शायद यही वजह थी कि जसवंत सिंह के जीवित रहते औरंगजेब कभी सफल नहीं हो सका। 28 नवम्बर
== जिस बालक ने सेना के ऊंटों के काटे थे सिर, उसे को बनाया अंगरक्षक ==
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