"मीटरी पद्धति": अवतरणों में अंतर

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इस प्रणाली के अनुसार लंबाई मापने की [[इकाई]] मीटर है, जो एक गज से लगभग तीन इंच बड़ा होता है। इसी प्रकार पिंडभार की इकाई [[किलोग्राम]] है और द्रव पदार्थ के पैमाने की इकाई [[लीटर]] है।
 
भारत में माप और तौल के जगह जगह कई प्रकार के ढंग थे। प्रत्येक प्रांत और मंडी में अलग अलग ढंगों से चीजें मापी और तौली जाती थीं। अनुमान है कि देश में लगभग १५० से भी अधिक प्रकार के बाट और माप के विभिन्न ढंग प्रचलित थे। इन कठिनाइयों से वस्तुओं का आदानप्रदान तथा उनका सही भाव मालूम करना बड़ा कठिन हो जाता था। माप तौल की भिन्नता से वस्तुओं के घटते बढ़ते भावों का ठीक अनुमान भी नहीं हो पाता। इससे व्यापार की बहुत क्षति हाती है और क्रेता एवं विक्रेता दोनों को शंका रहती है। माप तौल की विधियों में एरूपता लाने का ढंग भारत में कई बार सोचा गया, परंतु सितंबर, १९५६ ई में ही बाट और माप प्रतिमान अधिनियम पास हो सका। २८ दिसंबर,दिसम्बर १९५६ ई. को उसपर राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त होने पर केंद्रीय सरकार को दशमिक प्रणाली के बाट और माप चलाने का अधिकार प्राप्त हुआ।
 
इस प्रणाली को अपनाने से सारे देश में एक ही प्रकार की माप और तौल के ढंग लागू करने का अधिकार सरकार को प्राप्त हो गया। इससे व्यापार और वस्तुओं के यातायात में बड़ी सहायता मिली। दशमिक प्रणाली की सुगमता से माप और तौल के लेन देन का हिसाब भी आसान हो गया। इस प्रणाली को देश में पूर्ण रूप से प्रचलित करने के लिए १० वर्षों की अवधि निर्धारित की गई थी। इस अवधि तक नई और पुरानी दोनों पद्धतियों से काम होता रहा और शनै: शनै: पुरानी पद्धति के स्थान पर नई पद्धति का प्रयोग बढ़ता गया।