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'''मीनू मसानी''' (मिनोचेर रुस्तम मसानी ; Minocheher Rustom Masani) (20 नवम्बर, 1905 - 27 मई, 1998), [[भारत]] के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी, राजनेता, पत्रकार, लेखक एवं सांसद थे। वे दूसरे, तीसरे तथा चौथे लोकसभा चुनावों में [[राजकोट]] से सांसद चुने गये। वे उदारवादी आर्थिक नीति के पक्षधर थे। उन्होने 1950 में लोकतांत्रिक शोध संगठन की स्थापना की। इसी संगठन की ओर से 1952 में उदारवादी विचारधारा के लिए मासिक पत्रिका 'फ्रीडम फस्र्ट' का प्रकाशन किया गया। मसानी ने इस पत्रिका को नीतिगत निर्णयों एवं प्रासंगिक राष्ट्रीय, वैश्‍विक विषयों पर गूढ़ विश्लेषण प्रस्तुत करने का माध्यम बनाया।
 
70 वर्षीय मीनू मसानी सक्रिय राजनीति से अवकाश लेकर पत्रकारिता और लेखन में लगे थे, तभी भारत में [[आपातकाल]] की घोषणा हो गयी, प्रेस पर सेंसरशिप लागू कर दी गयी और मसानी के पुराने सहयोगियों को जेल में डाल दिया गया। मीनू मसानी ने प्रेस की आजादी के लिए डट कर संघर्ष किया और आपातकाल के दौरान भी मीनू मसानी ने अपनी पत्रिका में सरकार की नीतियों का विरोध जारी रखा।
 
== परिचय ==
29 नवंबर,नवम्बर 1905 को बंबई (अब मुंबई) में जन्मे मीनू मसानी ने एल्फिन्स्टन कॉलेज से अपनी स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद मीनू मसानी ने [[लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स]] से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर और लिंकन इन्न से कानून की पढ़ाई पूरी की। इंग्लैंड में मीनू मसानी भारतीय विद्यार्थियों के एक समूह 'इंडियन मजलिस' के अध्यक्ष चुने गये और ब्रिटिश [[लेबर पार्टी|लेबर दल]] के सदस्य भी रहे।
 
वर्ष 1929 में भारत वापस आने के बाद बंबई उच्च न्यायालय में वकालत की शुरुआत की, लेकिन कुछ ही दिनों में अपनी वकालत छोड़ कर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गये। वर्ष 1932 में [[सविनय अवज्ञा आंदोलन]] में भाग लेने के कारण उन्हें एक साल के लिए कारावास का दंड दिया गया। मीनू मसानी ने [[जयप्रकाश नारायण]], [[अच्युत पटवर्धन]], [[युसूफ मेहर अली]] एवं अन्य नेताओं के साथ मिलकर [[कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी]] की स्थापना की, लेकिन पार्टी में कम्युनिस्ट सदस्यों के बढ़ते प्रभाव के चलते वर्ष 1939 में [[राम मनोहर लोहिया|लोहिया]], मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से त्यागपत्र दे दिया और मसानी ने राजनीति छोड़कर टाटा कंपनी में काम करना शुरू कर दिया। 1942 में [[भारत छोड़ो आंदोलन]] की शुरु आत होने पर मीनू मसानी वापस सक्रिय राजनीति में लौट आये और आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल भेज दिया गया। जेल से छूटने पर वर्ष 1943 में मीनू मसानी बंबई के महापौर बनाने वाले सबसे युवा व्यक्ति बने। मीनू मसानी बाद में भारत के संविधान सभा के लिए चुने गये और भारत के नये संविधान निर्माण में नागरिकों के मूल अधिकारों से संबंधित समिति के सदस्य बने। संविधान सभा में मीनू मसानी ने भारत में [[समान नागरिक संहिता]] लागू किये जाने का प्रस्ताव दिया था लेकिन उसे नामंजूर कर दिया गया।