"रमण महर्षि": अवतरणों में अंतर
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== परिचय ==
वकील सुंदरम् अय्यर और अलगम्मल को 30
लगभग 1895 ई. में अरुचल ([[तिरुवन्नमलै]]) की प्रशंसा सुनकर रामन अरुंचल के प्रति बहुत ही आकृष्ट हुए। वे मानवसमुदाय से कतराकर एकांत में प्रार्थना किया करते। जब उनकी इच्छा अति तीव्र हो गई तो वे तिरुवन्नमलै के लिए रवाना हो गए ओर वहाँ पहुँचने पर शिखासूत्र त्याग कौपीन धारण कर सहस्रस्तंभ कक्ष में तपनिरत हुए। उसी दौरान वे तप करने पठाल लिंग गुफा गए जो चींटियों, छिपकलियों तथा अन्य कीटों से भरी हुई थी। 25 वर्षों तक उन्होंने तप किया। इस बीच दूर और पास के कई भक्त उन्हें घेरे रहते थे। उनकी माता और भाई उनके साथ रहने को आए और पलनीस्वामी, शिवप्रकाश पिल्लै तथा वेंकटरमीर जैसे मित्रों ने उनसे आध्यात्मिक विषयों पर वार्ता की। संस्कृत के महान् विद्वान् गणपति शास्त्री ने उन्हें 'रामनन्' और 'महर्षि' की उपाधियों से विभूषित किया।
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1922 में जब रमण की माता का देहांत हो गया तब आश्रम उनकी समाधि के पास ले जाया गया। 1946 में रमण महर्षि की स्वर्ण जयंती मनाई गई। यहाँ महान् विभूतियों का जमघट लगा रहता था। असीसी के संत फ्रांसिस की भाँति रामन सभी प्राणियों से - गाय, कुत्ता, हिरन, गिलहरी, आदि - से प्रेम करते थे।
14 अप्रैल
== सन्दर्भ ==
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| ALTERNATIVE NAMES =
| SHORT DESCRIPTION = Indian guru
| DATE OF BIRTH = 29
| PLACE OF BIRTH = [[Tiruchuli|Tiruchuzhi]]
| DATE OF DEATH = 14
| PLACE OF DEATH = [[Sri Ramana Ashram]] in Arunachala
}}
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