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'''रामस्‍वरूप चतुर्वेदी''' (१९३१-२००३) हिन्‍दी साहित्‍य के उन समीक्षकों में से थे जो मुख्‍यतः भाषा की सृजनात्‍मकता को केन्‍द्र में रखकर समीक्षा कर्म में प्रवृत्‍त हुए थे। उनका [[जन्म]] ६ मई १९३१ को हुआ था। उन्होंने [[आगरा]] से १९४६ में हाईस्कूल किया, [[कानपुर]] के क्राइस्ट चर्च कॉलेज से बी.ए. की डिग्री ली और १९५० में [[इलाहाबाद]] चले गये। सन १९५४ में [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] के हिन्दी विभाग में प्रवक्ता पद पर नियुक्त हुए और प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। २४ जुलाई, २००३ को ७२ वर्ष की आयु में उनका [[मृत्यु|निधन]] हुआ। एक [[आलोचक|समीक्षक]] के रूप में उन्होंने [[हिन्दी साहित्य]] को कई ग्रन्थ दिये। ''हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास'' नामक कृति के लिये उन्हें १९९६ का [[व्यास सम्मान]] मिला। उनकी प्रमुख पुस्‍तकें निम्‍न हैं-
 
[[हिन्‍दी नवलेखन]]-(1960), [[भाषा और संवेदना]]-(1964), [[अज्ञेय और आधुनिक रचना की समस्‍या]]-(1968), [[हिन्‍दी साहित्‍य की अधुनातन प्रवृत्तियां]]-(1969), [[कामायनी का पुनर्मूल्‍यांकन]]-(1970), [[मध्‍यकालीन हिन्‍दी काव्‍यभाषा]]-(1974), [[कविता यात्रा, रत्‍नाकर से अज्ञेय तक]]-(1976), [[सर्जन और भाषिक संरचना]]-(1980), [[इतिहास और आलोचक दृष्टि]]-(1982), [[हिन्‍दी साहित्‍य और संवेदना का विकास]]-(1986), [[काव्‍यभाषा पर तीन निबंध]]-(1989), [[प्रसाद, निराला, अज्ञेय]]-(1989), [[कविता का पक्ष]]-(1994), [[हिन्‍दी गद्यः विन्‍यास और विकास]]-(1996), [[आधुनिक कविता यात्रा]]-(1998), [[आचार्य रामचंद्र शुक्‍ल आलोचना का अर्थ और अर्थ की आलोचना]]-(2001), [[भक्तिकाव्‍य यात्रा]]-(2002)