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पानी को भीतर जाने से रोकने के लिए, कुछ स्नॉर्कल को नली के खुले हिस्से में एक [[पिंजड़े]] में छोटी "[[पिंग पोंग]]" गेंदों को लगा कर बनाया जाता था, लेकिन स्नॉर्कलर के लिए खतरनाक होने के नाते अब न तो इसे बेचा जाता है और न ही इस्तेमाल के लिए खरीदा जाता है। इसी प्रकार, स्नॉर्कल लगे हुए [[गोताखोरी मुखौटे]] असुरक्षित और पुराने पड़ चुके हैं।
 
स्नॉर्कल नली की श्रेष्ठ बनावट की लम्बाई अधिकतम 40 सेंटीमीटर (लगभग 16 इंच) होती है। गहरी स्नॉर्कलिंग करने पर लम्बी नली से सांस लेने में दिक्कत होती है क्योंकि गहराई में जाने पर [[फेफड़ों]] पर पानी का [[दबाव]] बहुत बढ़ जाता है। ऐसे में जब स्नॉर्कलर सांस लेता है तो फेफड़े फ़ैल नहीं पाते क्योंकि फेफड़ों को फैलाने वाली [[मांसपेशियां]] गहरे पानी के उच्च दबाव के खिलाफ काम करने की ताकत नहीं रखतीं.<ref>आर. स्टिग्लर, '''डी टौचेरई''' इन ''Fortschritte der naturwissenschaftlichen Forschung, IX. Band'', Berlin/Wien 1913</ref> स्नॉर्कल, "डेड एयर स्पेस" (मृत वायु स्थान) उत्पन्न करती है, जब प्रयोक्ता ताज़ी सांस लेता है तब स्नॉर्कल में पहले की निकाली हुई सांस बची रहती है जो फेफड़ों में फिर से चली जाती है, इससे सांस लेने की क्षमता कम हो जाती है, इसी कारण [[हाइपरकैप्निया]] होता है जिसमे रक्त में कार्बन डाई आक्साइड बनने लगता है। स्नॉर्कल में जितनी अधिक हवा की मात्रा रहती है समस्या उतनी ही बढ़ती जाती है।
 
आधुनिक स्नॉर्कलिंग तकनीक [[CO₂ धारण]] को कम करने में सहायता करती है। मार्क आर. जॉन्सन MD ने "केडेन्स तकनीक" वाले ऐसे स्नॉर्कल का अविष्कार किया जो हवा के सीधे प्रवाह के लिए एक तरफ़ा वाल्व का प्रयोग करके और उच्छवास के रास्तों को अलग करता है। उच्छवास वाल्व स्नॉर्कल में उच्छवास के मार्ग में एक प्रतिरोध डालता है जो थोडा पश्च दबाव पैदा करता है, इससे सामान्य सांस प्रक्रिया चलती है और फेफड़ों का आयतन बढ़ जाता है। सतह के भीतर डूबे रहने पर निश्वास का रास्ता बंद हो जाता है, इस तरह स्नॉर्कल को शुद्ध किये बिना स्नॉर्कलर सतह पर आकर सांस ले सकता है।<ref name="kapitol">{{cite video |title=untitled |url=http://kapitolreef.com/video1.html |format=swf |date=2009 |publisher=Kapitol Reef Aquatics |accessdate=16 December 2009}}</ref>