"रॉबर्ट क्लाइव": अवतरणों में अंतर
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दस वर्ष भारत रहने के बाद वह १७५३ के आरंभ में स्वदेश लौटा। दो वर्ष वह अपने घर रह पाया था तभी भारत की स्थिति ऐसी हो गई कि कंपनी के संचालक मंडल ने उसे भारत आने को विवश किया। वह १७५६ ई. में सेंट फोर्ट डेविड का गवर्नर नियुक्त किया गया और उसे सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल का पद दिया गया। वह मद्रास पहुंच कर अपना पद ग्रहण कर भी न पाया था कि इसी बीच अंग्रेजों की शक्ति बंगाल में डांवाडोल हो गई, क्लाइव को बंगाल आना पड़ा।
९ अप्रैल
दिसंबर में क्लाइव हुगली पहुंचा। उसकी सेना की संख्या लगभग एक हजार थी। वह नदी की ओर से कलकत्ते की तरफ बढ़ा और २ जनवरी
इसी बीच यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध आरंभ हो गया। इसका प्रभाव भारत की राजनीति पर भी पड़ा। यहां भी अंग्रेजों और फ्रांसीसियों में लड़ाई छिड़ गई। बंगाल में चंद्रनगर पर फ्रांसीसियों का प्रभाव रहा।
[[चित्र:Clive Defence of Arcot. Illustration for The New Popular Educator (Cassell, 1891)..jpg|thumb|Clive Defence of Arcot. Illustration for The New Popular Educator (Cassell, 1891).]]
अंग्रेजों ने वहां अपना समुद्री बेड़ा भेजने की तैयारी आरंभ कर दी। १४ मार्च
चंद्रनगर की लड़ाई के बाद क्लाइव को ज्ञात हुआ कि सिराजुद्दौला से उसके अपने ही आदमी असंतुष्ट हैं; और उनमें उसका सेनापति मीरजाफर प्रमुख हैं। क्लाइव ने इससे लाभ उठाने का निश्चय किया। फलस्वरूप मीरजाफर और अंग्रेजों के बीच एक गुप्त समझौता हुआ। जिसके अनुसार कलाइव ने पीरजाफर को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी दिला देने का वादा किया। इसके लिये मीर जाफर को कलकत्ता में हुए कंपनी की हानि और सैनिक व्यय के लिये १० लाख पाउंड, कलकत्ते के अंग्रेज निवासियों को २ लाख पाउंड और अरमीनियन व्यापारियों को ७० हजार पाउंड देने की बात ठहरी। अमीचंद ने, जिसने अंग्रेजों और मीरजाफर के बीच समझौता कराया था, नवाब से उसके खजाने का पँाच प्रतिशत कमीशन माँगा। और इस बात का उललेख संधिपत्र में किए जाने का आग्रह किया। फलत: क्लाइव ने दो संधिपत्र तैयार कराए। एक असली दूसरा नकली। नकली संधिपत्र में अमीचंद की शर्ते लिख दी गई थीं। नकलीवाले संधिपत्र पर अंग्रेज गवर्नर का हस्ताक्षर बनाकर उसे दिखाया गया। मीरजाफर ने लड़ाई में तटस्थ रहने का वादा किया। यह निश्चय हुआ कि लड़ाई के मैदान में मौजूद रहते हुए भी वह अलग रहेगा।
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