"हिन्दू देवी-देवता": अवतरणों में अंतर
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हिंदू देवपरिवार का उद्भव ब्रह्मा से माना जाता है। त्रिदेव में ब्रह्मा प्रथम हैं। भारतीय धारणा के अनुसार ब्रह्मा ही स्त्रष्टा हैं और वे ही प्रजापति हैं।
वे एक हैं और उनकी इच्छा कि मैं बहुत हो जाऊँ (एकोऽहं बहु स्याम्) ही विश्व की समृद्धि का कारण है। मंडूक उपनिषद् में ब्रह्मा को देवताओं में प्रथम, विश्व का कर्ता और संरक्षक कहा गया है। कर्ता के रूप में वैदिक साहित्य में ब्रम्हा का परिचय विभिन्न नामों से दिया गया है, यथा विश्वकर्मन्, ब्रह्मस्वति, हिरणयगर्भ, प्रजापति, ब्रह्मा और ब्रह्मा। पुराणों में इन नामों के अतिरिक्त धाता, विधाता, पितामह आदि भी प्रचलित हुए। वैदिक साहित्य की अपेक्षा पौराणिक साहित्य में ब्रह्मा का महत्व गौण है। उपासना की दृष्टि से जो महत्ता विष्णु, शिव, यहाँ तक की गणपति और सूर्य को प्राप्त है, वह भी ब्रह्मा को नहीं मिला, किंतु वैदिक देवताओं में प्रजापति के रूप में ब्रह्मा सर्वमान्य हैं और इस रूप में वे आकाश और पृथ्वी को स्थापित करने वाले तथा अंतरिक्ष में व्याप्त रहते हैं। ये समस्त विश्व और समस्त प्राणियों को अपनी भुजाओं में आबद्ध किए रहते है। इस प्रकार ऋग्वेद में ब्रह्मा का अमूर्त रूप ही अथर्व मान्य है। मानवी रूप में इनकी कल्पना भी बड़ी प्राचीन है। अथर्व और बाजसनेयी संहिता में भी वे सर्वोपरि देवता के रूप में स्वीकार किए गए हैं। शतपथ ब्राह्मण (
पुराणों तथा शिल्पशास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा चतुर्मुख हैं। इनके चार हाथों में अक्षमाला, श्रुवा, पुस्तक और कमंडलु प्रदर्शित कराने का विधान है। ग्रंथभेद से ब्रह्मा के आयुधभेद भी हैं। युगभेद के अनुसार इन्हें कलि में कमलासन, द्वापर में विरंचि, त्रेता में पितामह और सतयुग में ब्रह्मा के नाम से कहा गया है। इनकी सावित्री और सरस्वती दो शक्तियाँ हैं। सावित्री का स्वरूप विधान ब्रह्मा के अनुरूप ही निश्चित किया गया है। ब्रह्मा के अष्ट प्रतिहारों को सत्य, धर्म, प्रियोद्भव, यज्ञ विजय, यज्ञभद्रक, भव और विभव के नाम से जाना जाता है।
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विष्णु के कुछ विशिष्ट स्वरूप भी हैं। जलशायी विष्णु का स्वरूप गुप्तयुग में भी विशेष मान्यता प्राप्त था। देवगढ़ के मंदिर में जलशायी विष्णु की बड़ी सुंदर प्रतिमा अंकित है। जलशायी बिष्णु को सुप्तदर्शित किया जाता है। वे दाएँ करवट लेटे दिखाए जाते हैं और बाएँ हाथ में पुष्प लिए रहते है। नाभि से एक कमल निकला होता है जिस पर ब्रह्मा आसीन होते हैं। पाँयताने उनकी शक्तियाँ श्री और ‘भूमि’ प्रदर्शित की जाती हैं तथा पार्श्व में मधुकैटभ भी प्रदर्शित किया जाता है।
चतुर्मुख प्रकार की कुछ विष्णुमूर्तियाँ, बैकुंठ, अनंत, त्रैलोक्य मोहन और विश्वमुख के नाम से जानी जाती हैं। वैकुंठ अष्ठभुज, अनंत द्वादशभुज, त्रैलोक्य मोहन, श् षोडशभुज और विश्वमुख विंशति भुज होते हैं। वैकुंठ, त्रैलोक्य मोहन और अनंत और विश्वमुख के चार मुख क्रमश: नर, नारसिंह, स्त्रीमुख और वराहमुख होते हैं। त्रैलोक्य मोहन की प्रतिमा में वराह आनन की जगह कभी कभी कपिलानन बनाया जाता है।
विष्णु का वाहन गरुड़ है और उनके अष्ट प्रतिहारों के नाम चंड, प्रचंड, जय, विजय, धाता, विधाता, भद्र और समुद्र हैं।
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नाम--- आयुध और मुद्रा--- वाहन
इंद्र--- वरद, बज्र, अंकुश, कुंडी--- गज
अग्नि--- वरद, शक्ति, कमल, कमंडलु--- मेष
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