"विश्वविद्यालय": अवतरणों में अंतर
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मुसलमानों के आक्रमण तथा उनके द्वारा राजस्थापन से प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालय नष्ट हो गए। मुसलमान शासकों ने विभिन्न स्थानों पर उच्च शिक्षा के लिए "मदरसा" अथवा महाविद्यालय स्थापित किए। इस काल में लाहौर, [[दिल्ली]], रामपुर, [[लखनऊ]], [[इलाहाबाद]], जौनपुर, [[अजमेर]], बीदर, आदि स्थानों के मदरसे प्रसिद्ध थे और उनमें अरबी फारसी साहित्य, [[इतिहास]], दर्शन, रीतिशास्त्र, कानून, ज्यामिति, ज्योतिषि, अध्यात्मशास्त्र, धर्मविज्ञान आदि विषय पढ़ाए जाते थे। वस्तुत: यह मदरसे ही विश्वविद्यालयीय शिक्षा की व्यवस्था करते थे।
[[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के शासनकाल में [[कलकत्ता]] मदरसा और [[बनारस संस्कृत कालेज]] उच्च शिक्षाकेंद्र के रूप में स्थापित हुए। सन् 1845 ई. में [[बंगाल]] काउंसिल ऑव एजूकेशन ने पहली बार कलकत्ते में एक विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए प्रस्ताव पास किया जिसे आगे चलकर सन् 1854 ई. के वुड के घोषणापत्र ने स्वीकार किया। इसके अनुसार कलकत्ता विश्वविद्यालय की योजना लंदन विश्वविद्यालय के आदर्श पर बनाई गई थी और उसमें कुलपति, उपकुलपति, सीनेट, अध्ययन-अध्यापन, परीक्षा, आदि की व्यवस्था की गई। सन् 1856 ई. तक कलकत्ता, बंबई और मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए योजनाएँ तैयार हो गईं और 24 जनवरी
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सन् 1948 ई. में डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक विश्वविद्यालय आयोग की स्थापना हुई जिसने भारतीय विश्वविद्यालयों को राष्ट्रीय एवं जनतंत्रात्मक आधार पर पुन:संगठित करने के लिए विस्तृत सुझाव दिए। देश की दशा एवं आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए नवीन पाठ्यविषयों को प्रारंभ करने पर जोर दिया गया। इस आयोग की रिपोर्ट के बाद विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ी। विश्वविद्यालयों की आर्थिक दशा की जाँच करने और उच्च शिक्षा के प्रसार हेतु उन्हें उचित अनुदान देने के लिए केंद्रीय सरकार ने एक विश्वविद्यालय अनुदान समिति (University Grants Commission) बनाई। भारतीय विश्वविद्यालय शिक्षण तथा संबंधित करनेवाले (affliliating) दोनों प्रकार के हैं। विश्वविद्यालय अनुदान समिति संस्थाओं के शिक्षण रूप धारण करने पर अधिक बल देती है।
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