"हैली धूमकेतु": अवतरणों में अंतर
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हैली के भीतरी [[सौरमंडल]] में लौटने पर इसका खगोलविज्ञानियों द्वारा २४० इ.पू. के बाद से अवलोकन और रिकार्ड दर्ज किया जाता रहा है। इस धूमकेतु के दिखने के स्पष्ट रिकॉर्ड चीनी, बेबीलोनियन और मध्यकालीन यूरोपीय शासकों द्वारा दर्ज किए गए थे परन्तु उस समय इसे आवर्ती धूमकेतु के रूप में नहीं पहचाना जा सका था। इसे [[आवर्ती धूमकेतु]] के रूप में सर्वप्रथम सन् १७०५ में अंग्रेज खगोलविज्ञानी [[एडमंड हैली]] द्वारा पहचाना गया था तथा बाद में उनके नाम पर इसका नाम ''' हैली धूमकेतु''' रखा गया था। ''' हैली धूमकेतु''' भीतरी सौरमंडल में आखरी बार सन् १९८६ में दिखाई दिया था और यह अगली बार सन् २०६१ के मध्य में दिखाई देगा।
सन् १९८६ में प्रवेश के दौरान हैली प्रथम धूमकेतु बना जिसका [[अंतरिक्ष यान]] द्वारा बारीकी से और विस्तार से अध्ययन किया गया। इसने हैली की नाभि की संरचना तथा कोमा और पूंछ के गठन के तंत्र का सबसे पहला अवलोकन डाटा उपलब्ध कराया। इस अवलोकन ने धूमकेतु की संरचना के बारे में लम्बे समय से चली आ रही अवधारणाओं को,
== कक्षा की गणना ==
हैली पहला धूमकेतु है जिसे आवर्ती धूमकेतु के रूप में मान्यता मिली थी। [[धूमकेतु]] की प्रकृति पर [[अरस्तू]] की धारणा की तत्कालीन दार्शनिकों में आम सहमति थी कि धूमकेतु [[पृथ्वी]] के [[वायुमंडल]] में गड़बड़ी का नतीजा है। अरस्तू का यह विचार सन् १५७७ में [[टाइको ब्राहे]] ने गलत साबित कर दिया था। टाइको ने [[लंबन]] मापन का इस्तेमाल कर दिखाया कि धूमकेतु का अस्तित्व [[चन्द्रमा]] से भी परे है। कई लोग अभी भी इस बात से असहमत थे कि धूमकेतु वास्तव में [[सूर्य]] की परिक्रमा करते है और वें मानते थे कि धुमकेतू सीधे पथ का पालन करते हुए [[सौरमंडल]] से होकर गुजरते है।
सन् १६८७ में [[सर आइजैक न्यूटन]] ने अपनी ' [[प्रिन्सिपिया]] ' प्रकाशित की,
हैली धूमकेतु वापसी की भविष्यवाणी सही साबित हुई। इसे २५ दिसंबर सन् १७५८ में एक जर्मन किसान और शौकिया खगोल विज्ञानी [[जोहान जॉर्ज पेलिज्स्क]] द्वारा देखा गया था। खुद हैली अपने जीवनकाल में इस धूमकेतु की वापसी नहीं देख पाए थे क्योंकि सन् १७४२ में उनकी मृत्यु हो गई.थी। इस धुमकेतू वापसी की पुष्टि ने पहली बार यह दिखाया कि ग्रहों के अलावा भी अन्य निकायों का अस्तित्व है जों सूर्य की [[परिक्रमा]] करतें है। यह वापसी पूर्व [[न्यूटोनियन भौतिकी]] का एक सफल परीक्षण था और साथ ही उसकी व्याख्यात्मक शक्ति का एक स्पष्ट प्रदर्शन भी था। इस धुमकेतू का नामकरण हैली के सम्मान में सर्वप्रथम फ्रेंच खगोलविद [[निकोलस लुई डी लासेले]] द्वारा सन् १७५९ में किया गया था।
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हैली की कक्षीय अवधि पिछली तीन शताब्दियों से ७५ और ७६ वर्ष के बीच रही है। हालांकि २४० ई.पू. के बाद से इसकी कक्षीय अवधि ७४ और ७९ वर्ष के बीच विविधता लिए हुए है। सूर्य के ईर्दगिर्द हैली की कक्षा ०.९६७ [[कक्षीय विकेन्द्रता|विकेन्द्रता]] के साथ अत्यधिक अण्डाकार है।
हैली,
हैली -प्रकार धूमकेतुओं की कक्षाओं को देखकर लगता है कि वें मूलतः दीर्ध -अवधि धूमकेतु थे जिनकी कक्षाओं को विशाल ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण के द्वारा प्रभावित किया गया और साथ ही आतंरिक सौर मंडल में उन्हें निर्देशित किया गया। यदि हैली कभी दीर्ध-अवधि धूमकेतु था तो संभावना है कि इसकी उत्पत्ति ऊर्ट बादल में हुई है जो कि धूमकेतु निकायों का एक विशाल गोलाकार क्षेत्र है जिसका आंतरिक किनारा सूर्य से २०,००० -५०,००० खगोलीय एकक दूरी पर है। इसके विपरीत बृहस्पति परिवार धूमकेतुओं की उत्पत्ति कुइपर बेल्ट में मानी जाती है जो बर्फीले मलबे की एक सपाट चकती है जो सूर्य से ३० खगोलीय एकक (नेप्च्यून की कक्षा) और ५० खगोलीय एकक के बीच स्थित है। सन् २००८ में हैली-प्रकार धूमकेतुओं की उत्पत्ति के लिए एक अन्य नए बिंदु ट्रांस-नेप्चुनियन वस्तु का प्रस्ताव किया गया जिसकी कक्षा का विस्तार युरेनस के बाहरी भाग से शुरू होकर प्लूटो से दोगुनी दूरी तक है। हो सकता है यह सौरमंडल के छोटे निकायों की एक नयी आबादी का एक सदस्य हो जों हैली-प्रकार धूमकेतुओं के स्त्रोत के रूप में कार्य करता है।
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