"संपूर्णानन्द": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: अंगराग परिवर्तन।
छो बॉट: दिनांक लिप्यंतरण और अल्पविराम का अनावश्यक प्रयोग हटाया।
पंक्ति 2:
 
संपूर्णानन्द एक [[भारत|भारतीय]] राजनेता है और [[उत्तर प्रदेश]] के [[मुख्यमंत्री]] रह चुके है।
'''डॉ॰ संपूर्णानंद''' (1 जनवरी, 1890 - 10 जनवरी, 1969) कुशल तथा निर्भीक [[राजनेता]] एवं सर्वतोमुखी प्रतिभावाले [[साहित्य|साहित्यकार]] एवं अध्यापक थे।
 
== जीवनी ==
संपूर्णानंद का जन्म [[वाराणासी]] में 1 जनवरी, सन् 1890 को एक कायस्थ परिवार में हुआ। वहीं के क्वींस कालेज से बी.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण कर [[प्रयाग]] चले गए और वहाँ से एल.टी. की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद आप प्रेम महाविद्यालय ([[वृंदावन]]) तथा बाद में डूंगर कालेज ([[बीकानेर]]) में प्रधानाध्यापक के पद पर नियुक्त हुए। देश की पुकार पर आपने यह नौकरी छोड़ दी और फिर काशी के सुख्यात देशभक्त (स्वर्गीय) बाबू शिवप्रसाद गुप्त के आमंत्रण पर ज्ञानमंडल संस्था में काम करने लगे। यहीं रहकर आपने "अंतर्राष्ट्रीय विधान" लिखी और "[[मर्यादा]]" का संपादनभार भी संभाल लिया। इसके बाद जब इस संस्था से "टुडे" नामक अंग्रेजी दैनिक भी निकालने का निश्चय किया गया तो इसका संपादन भी आपको ही सौंपा गया जिसे आपने बड़ी योग्यता के साथ संपन्न किया।
 
श्री संपूर्णानंद में शुरू से ही राष्ट्रसेवा की लगन थी और आप [[महात्मा गांधी]] द्वारा संचालित स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेने को आतुर रहते थे। इसी से सरकारी विद्यालयों का बहिष्कार कर आए हुए विद्यार्थियों को राष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित काशी विद्यापीठ में सेवाकार्य के लिए जब आपको आमंत्रित किया गया तो आपने सहर्ष उसे स्वीकार कर लिया। वहाँ अध्यापन कार्य करते हुए आपने कई बार [[सत्याग्रह आंदोलन]] में हिस्सा लिया और जेल गए। सन् 1926 में आप प्रथम बार कांग्रेस की ओर से खड़े होकर विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। सन् 1937 में कांग्रेस मंत्रिमंडल की स्थापना होने पर शिक्षामंत्री प्यारेलाल शर्मा के त्यागपत्र दे देने पर आप [[उत्तर प्रदेश]] के शिक्षामंत्री बने और अपनी अद्भुत कार्यक्षमता एवं कुशलता का परिचय दिया। आपने गृह, अर्थ तथा सूचना विभाग के मंत्री के रूप में भी कार्य किया। सन् 1955 में श्री [[गोविंदवल्लभ पंत]] के केंद्रीय मंत्रिमंडल में सम्मिलित हो जाने के बाद दो बार आप उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री नियुक्त हुए। सन् 1962 में आप राजस्थान के राज्यपाल बनाए गए जहाँ से सन् 1967 में आपने अवकाश ग्रहण किया।
पंक्ति 13:
उत्तर प्रदेश में उन्मुक्त कारागार का अद्भुत प्रयोग आपने प्रारंभ किया जो यथेष्ट रूप से सफल हुआ। नैनीताल में वेधशाला स्थापित कराने का श्रेय भी आपको ही है। वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय और उत्तर प्रदेश सरकर द्वारा संचालित हिंद समिति की स्थापना में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ये दोनों संस्थाएँ आपकी उत्कृष्ट संस्कृतनिष्ठा एवं हिंद प्रेम के अद्वितीय स्मारक हैं। कला के क्षेत्र में लखनऊ के मैरिस म्यूजिक कॉलेज को आपने विश्वविद्यालय स्तर का बना दिया। कलाकारों और साहित्यकारों को शासकीय अनुदान देने का आरंभ देश में प्रथम बार आपने ही किया। वृद्धावस्था की पेंशन भी आपने आरंभ की। आपको देश के अनेक विश्वविद्यालयों ने "डॉक्टर" की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया था। हिंदी साहित्य सम्मेलन की सर्वोच्च उपाधि "साहित्यवाचस्पति" भी आपको मिली थी तथा हिंदी साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार "मंगलाप्रसाद पुरस्कार" भी आप प्राप्त कर चुके थे।
 
आपका निधन 10 जनवरी, 1969 को वाराणसी में हुआ।
 
== इन्हें भी देखें ==