"स्टालिनवाद": अवतरणों में अंतर
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मार्क्सवादी आंदोलन के भीतर सोवियत इतिहास में स्तालिन की भूमिका और मार्क्सवाद-लेनिनवाद पर स्तालिन के प्रभाव का मूल्यांकन करने के बारे में ज़बरदस्त विवाद है। इस लिहाज़ से सारी दुनिया के मार्क्सवादी तीन हिस्सों में बँटे हुए हैं : एक हिस्सा वह है जो स्तालिनवाद को पूरी तरह से स्वीकारते हुए उसे मार्क्सवाद का प्रमुख व्यावहारिक रूप करार देता है (भारत में इसका उदाहरण ख़ुद को मार्क्सवादी- लेनिनवादी कहने वाले नक्सलवादी गुटों के रूप में मौजूद है), दूसरा हिस्सा उसे पूरी तरह से ख़ारिज करते हुए मार्क्सवादी प्रयोग की त्याज्य विकृति करार देता है (जैसे, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी) और तीसरा हिस्सा वह है जो स्तालिनवाद के प्रभाव को आम तौर पर प्रेरक और सकारात्मक मानने के बावजूद उसके कुछ पहलुओं की आलोचना करता है (जैसे, माओ त्से तुंग जो स्तालिन को सत्तर फ़ीसदी सही और तीस फ़ीसदी ग़लत मानते थे)। वामपंथियों के ग़ैर-मार्क्सवादी हिस्सों और अन्य वैचारिक हलकों में स्तालिनवाद को एक ऐसी अधिनायकवादी प्रवृत्ति के रूप में देखा जाता है जिसने एक अत्यंत हिंसक और दमनकारी राज्य की स्थापना की।
पार्टी कार्यकर्त्ताओं के बीच स्तालिन (मैन ऑफ़ स्टील) के नाम पुकारे जाने वाले जोसेफ़ विस्सियारोविच जुगाश्विली का जन्म ज्यार्जिया में 21 दिसम्बर
स्तालिनवाद को अक्सर एक व्यक्ति स्तालिन की कारिस्तानी के रूप में देखने का सरलीकरण किया जाता है, पर इस राजनीतिक परिघटना के पीछे मौजूद संरचनागत कारणों की समझ ज़रूरी है। बोल्शेविक क्रांति के परिणामस्वरूप स्थापित हुई कम्युनिस्ट सत्ता दो विरोधाभासी आयामों से मिल कर बनी थी। एक तरफ़ उसमें सोवियतों (मज़दूरों और किसानों की निर्वाचित परिषदें) के रूप में आम जनता की सीधी भागीदारी के पहलू थे जिनमें प्रत्यक्ष लोकतंत्र की झलक दिखती थी। लोकतंत्र का यह रूप पश्चिमी देशों में विकसित हो रहे बाज़ार आधारित उदारतावादी लोकतंत्र से बेहतर और रैडिकल लगता था। दूसरी तरफ़ एक नयी उदीयमान व्यवस्था को एक अनुशासित कार्यकर्त्ता आधारित कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा निर्देशित-नियंत्रित किया जा रहा था। इस पार्टी की बागडोर लेनिन के हाथ में थी जो सर्वहारा की तानाशाही, लोकतांत्रिक केंद्रवाद और क्रांतिकारी हरावल दस्ते के आधार पर बनी पार्टी की भूमिका में यकीन रखते थे। 1920 में प्रकाशित अपनी रचना वामपंथी कम्युनिज़म : एक बचकाना मर्ज़ में उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि सोवियत सत्ता की तारतम्यता का क्रम क्या रहेगा। सबसे ऊपर नेता, फिर पार्टी, फिर मज़दूर वर्ग और फिर जनता।
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