"पारिभाषिक शब्दावली": अवतरणों में अंतर

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पारिभाषिक शब्दों को स्पष्ट करने के लिए अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार से परिभाषाएं निश्चित करने का प्रयत्न किया है। डॉ॰ रघुवीर सिंह के अनुसार -
 
:"पारिभाषिक शब्द वह होता है जिसका प्रयाग किसी विशेष अर्थ में संकेत रुप से होता है।''
 
डॉ॰ [[भोलानाथ तिवारी]] 'अनुवाद' के सम्पादकीय में इसे और स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
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== इतिहास ==
 
शब्दावली की परंपरा "[[इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका|एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका]]" में तथा अन्यत्र भी [[फिलेटस]] (Philetas) से मानी जाती है। इनका काल तीसरी सदी ई. पू. है। इन्होंने "अतक्ता" (Atakta) शीर्षक शब्दावली संगृहीत की थी। किंतु वस्तुत: शब्दावली का इतिहास अब बहुत पीछे चला गया है और अब तक प्राप्त प्राचीनतम शब्दावली हित्ताइत ([[हित्ती]]) भाषा की है, जिसका समय ईसा से प्राय: 1000 वर्ष पूर्व से भी आगे है।
 
भारत में प्राचीनतम शब्दावली '''[[निघंटु]]''' रूप में मिलती है। [[संस्कृत]] भाषा में विकास के कारण जब [[वैदिक संस्कृत]] लोगों के लिए दुरूह सिद्ध होने लगी तो वैदिक शब्दों के संग्रह किए गए, जिन्हें "[[निघंटु]]" (निघण्टति शोभते, नि घण्टअकुइति) की संज्ञा दी गई। आज जो निघंटु उपलब्ध है वह [[यास्क|यास्काचार्य]] का है, किंतु ऐसे विश्वास के पर्यांत प्रमाण हैं कि यास्क के समय में ऐसे 4-5 और भी निघंटु थे। यास्क का समय 8वीं सदी ई. पू. माना गया है। इसका आशय यह हुआ कि पश्चिमी विद्वान् फिलटस की जिस शब्दावली (glossary) को प्राचीनतम मानते हैं वह भारतीय निघंटुओं से कम से कम 4-5 सौ वर्ष बाद की है।
 
[[यूरोप]] में जो शब्दावलियाँ प्रारंभ में संगृहीत की गईं, एकभाषिक थीं किन्तु बाद में बहुभाषिक शब्दावलियों की परंपरा चली। यूरोप की प्राचीनतम ज्ञात द्विभाषिक शब्दावली लैटिनग्रीक की है, जिसके संग्रहकर्ता फिलॉक्सेनस माने जाते रहे हैं यद्यपि यह सिद्ध हो चुका है कि मूलत: यह रचना उनकी नहीं थी। इसका काल मोटे रूप से छठी सदी ई. है। यह उल्लेख है कि एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका आदि में इसे प्राचीनतम बहुभाषिक शब्दावली माना गया है, किंतु वस्तुत: पीछे जिस हित्ताइत शब्दावली का उल्लेख किया जा चुका है, वह द्विभाषिक ही नहीं त्रिभाषिक (हित्ती-सुमेरी-अक्कादी) है। इस प्रकार प्राचीनतम बहुभाषिक शब्दावली का काल लैटिन-ग्रीक से लगभग डेढ़ हजार वर्ष पीछे है। 1000 ई. के आसपास ग्रीक-लैटिन लैटिन-ग्रीक की कई शब्दावलियाँ बनीं।
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== हिन्दी की विभाषा तथा बोलियों का महत्त्व ==
 
किसी [[बोली]] का लोकजीवन से अभिन्न संबंध है। बोलियों का ही परिष्कृत, सामान्यीकृत तथा संस्कृत रूप [[भाषा]] है। भाषा को ही बोलियों से ही सहज शक्ति प्राप्त होती है। गंगा का आदिस्रोत हिमखंडों से निर्मित गोमुख है, उसी प्रकार हिन्दी की गंगा को उसकी बोलियों से सारभूत तत्त्व तथा प्राणशक्ति मिलती है। व्यावहारिक लोकभाषा से शब्द संग्रह करना सरल कार्य नहीं.नहीं। लोकबोली के स्थायी तत्त्व [[लोकगीत]] तथा लोककहानियों में समाहित रहते हैं। शब्द रूपों के स्रोत तथा उनके विकास की परम्परा और साथ ही अर्थ विकास की श्रृंखलाशृंखला निर्धारित करने में लोकजीवन का विशेष महत्त्व है। बोलियों में जब कोई बोली शिक्षित लोगों के मुख्य नगर या अन्य शिष्ट सामाजिक वर्ग की भाषा के पद पर प्रतिष्ठित हो जाती है तब वह [[मानक भाषा]] कहलाती है।
 
== हिन्दी का शब्द-सामर्थ्य ==