"उपनिवेशवाद": अवतरणों में अंतर

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== उपनिवेशों का अन्त ==
[[चित्र:AccesoFormación ade lalos independenciapaíses del mundo.png|right|thumb|300px|राष्ट्रों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति की काल-अवधियाँ]]
[[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के बाद उपनिवेशवाद का प्रभाव तेज़ी से घटा। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि [[रूसी क्रान्ति|अक्टूबर क्रांति]] के पश्चात ही औपनिवेशिक प्रणाली दरकने की शुरुआत हो गयी थी। 1945 के बाद स्पष्ट हो गया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर उपनिवेशवाद विरोधी रुझान हावी हो चुके हैं। अमेरिका और [[सोवियत संघ]] ने इस दौर में पुराने किस्म के उपनिवेशवाद का जम कर विरोध किया और [[आत्म-निर्णय]] के सिद्धान्त का पक्ष लिया। [[युरोप]] की हालत इस समय तक बेहद कमजोर हो गयी थी। वह दूर-दराज़ में फैले हुए उपनिवेशों की आर्थिक लागत उठाने की हालत में नहीं था। नवगठित [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] उपनिवेशों में चल रहे राष्ट्रवादी आंदोलनों के प्रभाव में वि-उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित कर रहा था। नतीजे के तौर पर 1947 से 1980 के बीच में [[ब्रिटेन]] को क्रमशः [[भारत]], [[बर्मा]], [[घाना]], [[मलाया]] और [[ज़िम्बाब्वे]] का कब्ज़ा छोड़ना पड़ा। इसी सिलसिले में आगे [[डच]] साम्राज्यवादियों को 1949 में [[इण्डोनेशिया]] से जाना पड़ा और अफ़्रीका में आख़िरी औपनिवेशिक ताकत के रूप में [[पुर्तगाल]] ने अपने उपनिवेशों को 1974-75 में आज़ाद कर दिया। 1954 में इंडो-चीन क्षेत्र और 1962 में अल्जीरिया के रक्तरंजित संघर्ष के सामने फ़्रांस को घुटने टेकने पड़े। साठ के दशक में ही भारत के प्रांत [[गोवा]] से [[पुर्तगाल]] ने अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया।