"देवीमाहात्म्य": अवतरणों में अंतर

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== कुछ वहुप्रचलित स्तोत्र और उनका अर्थ ==
''देवीमाहात्म्यम्'' की [[व्रह्मा]] द्वारा की गयी देवीस्तुति (श्लोक ७२ - ८६) इस ग्रन्थ के अधिक प्रचलित श्लोकों में अन्यतम हैं। इन श्लोकों की काव्यिक सुषमा एवं दार्शनिकता अति सुन्दर है। नीचे संस्कृत श्लोक एवं उनका हिन्दी अनुवाद दिया गया है-
 
 
 
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वोधश्च क्रियतामस्य हन्तुं एतौ महासुरौ ॥८७॥<br /><br />
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व्रह्माजीब्रह्माजी ने कहा ॥७२॥<br /><br />
 
देवि! तुम्हीं स्वाहा, तुम्हीं स्वधा, तुम्हीं वषट्कार (पवित्र आहुति मन्त्र) हो। स्वर भी तुम्हारे ही स्वरूप हैं। ॥७३॥<br /><br />