"तमस (उपन्यास)": अवतरणों में अंतर

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{{Infobox किताब
'''तमस'''
| नाम = तमस
| मुखपृष्ठ = तमस.jpg
| मुखपृष्ठ_आकार =100px
| मुखपृष्ठ_शीर्षक =तमस का मुखपृष्ठ
| रचयिता = भीष्म साहनी
| मूल_शीर्षक =
| अनुवादक =
| प्रकाशक = राजकमल प्रकाशन, दिल्ली
| प्रकाशन_तिथि =
| भाषा = हिंदी
| देश = भारत
| विषय = उपन्यास
| शैली = कहानी उपन्यास
| मुखपृष्ठ_रचना =
| मीडिया_प्रकार = उपन्यास
''| पृष्ठ'' = २५३
| ISBN = 81-267-0543-4
| भाग =
| पिछला_क्रमांक =
| अगला_क्रमांक =
| टिप्पणियाँ =भीष्म साहनी की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक जिसपर फ़िल्म भी बनी।
}}
 
आजादी के ठीक पहले सांप्रदायिकता की बैसाखियाँ लगाकर पाशविकता का जो नंगा नाच इस देश में नाचा गया था, उसका अंतरग चित्रण [[भीष्म साहनी]] ने इस उपन्यास में किया है। काल-विस्तार की दृष्टि से यह केवल पाँच दिनों की कहानी है, जिसे लेखक ने इस खूबी के साथ चुना है कि [[सांप्रदायिकता]] का हर पहलू तार-तार उदघाटित हो जाता है और पाठक सारा उपन्यास एक साँस में पढ़ जाने के लिए विवश हो जाता है। [[भारत]] में साम्प्रदायिकता की समस्या एक युग पुरानी है और इसके दानवी पंजों से अभी तक इस देश की मुक्ति नहीं हुई है। आजादी से पहले विदेशी शासकों ने यहाँ की जमीन पर अपने पाँव मजबूत करने के लिए इस समस्या को हथकंडा बनाया था और आजादी के बाद हमारे देश के कुछ राजनीतिक दल इसका घृणित उपयोग कर रहे हैं। और इस सारी प्रक्रिया में जो तबाही हुई है उसका शिकार बनते रहे हैं वे निर्दोष और गरीब लोग जो न [[हिन्दू]] हैं, न [[मुसलमान]] बल्कि सिर्फ इन्सान हैं, और हैं भारतीय नागरिक। भीष्म साहनी ने आजादी से पहले हुए साम्प्रदायिक दंगों को आधार बनाकर इस समस्या का सूक्ष्म विश्लेषण किया है और उन मनोवृत्तियों को उघाड़कर सामने रखा है जो अपनी विकृतियों का परिणाम जनसाधारण को भोगने के लिए विवश करती हैं।
 
'''प्रकाशक'''
राकमल प्रकाशन
नई दिल्ली, पटना, प्रयाग
 
ISBN 81-267-0543-4
''पृष्ठ'' २५३
[[श्रेणी:उपन्यास]]
[[श्रेणी:भीष्म साहनी]]