"इज़राइल का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Israel-flag01c.jpg|right|thumb|300px|इजराइल का ध्वज]]
[[इज़राइल]] संसार के [[यहूदी]] धर्मावलंबियों के प्राचीन राष्ट्र का नया रूप है। इज़रायल का नया राष्ट्र 14 मई सन् 1948 को अस्तित्व में आया। इज़रायल राष्ट्र, प्राचीन [[फ़िलिस्तीन]] अथवा पैलेस्टाइन का ही बृहत् भाग है।
 
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अबराहम और मूसा के बाद इज़रायल में जो दो नाम सबसे अधिक आदरणीय माने जाते हैं वे दाऊद (ईसाइयत में David) और उसके बेटे सुलेमान (ईसाइयत में Solomons) के हैं। सुलेमान के समय दूसरे देशों के साथ इज़रायल के व्यापार में खूब उन्नति हुई। सुलेमान ने समुद्रगामी जहाजों का एक बहुत बड़ा बेड़ा तैयार कराया और दूर-दूर के देशों के साथ तिजारत शुरु की। अरब, एशिया कोचक, अफ्रीका, यूरोप के कुछ देशों तथा भारत के साथ इज़रायल की तिजारत होती थी। सोना, चाँदी, हाथीदाँत और मोर भारत से ही इज़रायल आते थे। सुलेमान उदार विचारों का था। सुलेमान के ही समय इबरानी यहूदियों की राष्ट्रभाषा बनी। 37 वर्ष के योग्य शासन के बाद सन् 937 ई.पू. में सुलेमान की मृत्यु हुई।
[[चित्र:Kingdoms of Israel and Judah map 830.svg|right|thumb|300px|८३० ईसा पूर्व में इजराइल और जूदा (यहूदा) राज्य]]
 
[[सुलेमान]] की मृत्यु से यहूदी एकता को बहुत बड़ा धक्का लगा। सुलेमान के मरते ही इज़रायली और जूदा (यहूदा) दोनों फिर अलग-अलग स्वाधीन रियासतें बन गईं। सुलेमान की मृत्यु के बाद 50 वर्ष तक इज़रायल और जूदा के आपसी झगड़े चलते रहे। इसके बाद लगभग 884 ई.पू. में [[उमरी]] नामक एक राजा इज़रायल की गद्दी पर बैठा। उसने फिर दोनों शाखों में प्रेमसंबंध स्थापित किया। किंतु उमरी की मृत्यु के बाद यहूदियों की ये दोनों शाखें सर्वनाशी युद्ध में उलझ गईं।
 
यहूदियों की इस स्थिति को देखकर असुरिया के राजा शुलमानु अशरिद पंचम ने सन् 722 ई.पू. में इज़रायल की राजधानी समरिया पर चढ़ाई की और उसपर अपना अधिकार कर लिया। अशरिद ने 27,290 प्रमुख इज़रायली सरदारों को कैद करके और उन्हें गुलाम बनाकर असुरिया भेज दिया और इज़रायल का शासनप्रबंध असूरी अफसरों को सपुर्द कर दिया। सन् 610 ई.पू. में असुरिया पर जब खल्दियों ने आधिपत्य कर लिया तब इज़रायल भी खल्दी सत्ता के अधीन हो गया।
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यह वह समय था जब [[भारत]] में बौद्ध भिक्षु और भारतीय महात्मा अपने धर्म का प्रचार करते हुए पश्चिमी एशिया के देशों में फैल गए। इन भारतीय प्रचारकों ने यहूदी धर्म को भी प्रभवित किया। इसी प्रभाव के परिणामस्वरूप यहूदियों के अंदर एक नए "एस्सेनी" नामक संप्रदाय की स्थापना हुई। हर एस्सेनी ब्राह्म मुहूर्त में उठता था और सूर्योदय से पहले प्रात: क्रिया, स्नान, ध्यान, उपासना आदि से निवृत हो जाता था। सुबह के स्नान के अतिरिक्त दोनों समय भोजन से पहले स्नान करना हर एस्सेनी के लिए आवश्यक था। उनका सबसे मुख्य सिद्धांत था-अहिंसा। हर एस्सेनी हर तरह की पशुबलि, मांसभक्षण या मदिरापान के विरुद्ध थे। हर एस्सेनी को दीक्षा के समय प्रतिज्ञा करनी पड़ती थी :
 
":"मैं यह्वे अर्थात् परमात्मा का भक्त रहूँगा। मैं मनुष्य मात्र के साथ सदा न्याय का व्यवहार करूँगा। मैं कभी किसी की हिंसा न करूँगा और न किसी को हानि पहुँचाऊँगा। मनुष्य मात्र के साथ मैं अपने वचनों का पालन करूँगा। मैं सदा सत्य से प्रेम करूँगा।"" आदि।
 
उसी समय के निकट हिंदू दर्शन के प्रभाव से इज़रायल में एक और विचारशैली ने जन्म लिया जिसे [[क़ब्बालह]] कहते हैं। क़ब्बालह के थोड़े से सिद्धांत ये हैं-"
:"ईश्वर अनादि, अनंत, अपरिमित, अचिंत्य, अव्यक्त और अनिर्वचनीय है। वह अस्तित्व और चेतना से भी परे है। उस अव्यक्त से किसी प्रकार व्यक्त की उत्पत्ति हुई और अचिंत्य से चिंत्य की। मनुष्य परमेश्वर के केवल इस दूसरे रूप का ही मनन कर सकता है। इसी से सृष्टि संभव हुई।""
 
क़ब्बालह की पुस्तकों में योग की विविध श्रेणियों, शरीर के भीतर के चक्रों और अभ्यास के रहस्यों का वर्णन है।