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*'''अनुवाकानुक्रमणी''' जिसमें प्रत्येक अनुवाक का अकारादि क्रम से संकलन है;
* '''आर्षानुक्रमणी''' में ऋषिगण और उनकी कुलपरंपरा की सूची है;
* '''छंदोनुक्रमणी''' में वैदिक मंत्रों के छंद का नामनिर्देश है।है;
* '''बृहद्देवता''' में देवताओं की अनुक्रमणी है।है;
* '''मंत्रानुक्रम''' में संहिता के अंतर्गत मंत्रों का क्रमश: उल्लेख है।
उसी तरह मंडलांतानुक्रम और देवानुक्रम भी है। इस प्रकार किसी भी वैदिक मंत्र का ऋषि, छंद या देवता कौन है अथवा वह मंत्र किस मंडल, अनुवाक या सूक्त का है, यह जानने के लिए तत्संबंधी अनुक्रमणी का अवलोकन सहायक होता है।
 
==सर्वानुक्रमणी==
सर्वानुक्रमणी का रचनाकाल सूत्रयुग के अंतिम चरण में ही माना जा सकता है। सूत्रयुग का कालनिर्णय पाश्चात्य इतिहासकारों ने ईसापूर्व 600 से 200 तक का स्वीकार किया है।
वस्तुत: उपरोक्त अनुक्रमणियाँ [[शब्दकोश|कोश]] की भाँति विषयानुसंधान में सहायक ही न थीं, अपितु इनका लक्ष्य सूक्त एवं अनुवाकों के यथावत् स्वरूप तथा मंत्रों के पाठ को भ्रष्ट न होने देने का अपूर्व साधन है। फिर भी किसी भी एक मंत्र के संबंध में उसके छंद, देवता आदि के ज्ञान के लिए अनेक अनुक्रमणियाँ देखनी पड़ती थीं, क्योंकि तत्संबंधी सकल ज्ञातव्य विषय एक जगह उपलब्ध न था।
 
इस कठिनाई को दूर करने की दृष्टि से महर्षि [[कात्यायन]] ने एक ऐसी अनुक्रमणी की रचना की जिसमें संहिता के अंतर्गत समस्त मंत्रों के संबंध में सकल ज्ञेय वस्तु की एकत्र उपलब्धि हो जाए। इसमें प्रत्येक मंत्र का छंद, देवता, ऋषि, मंडल, सूक्त, एवं अनुवाद का विवरण पूर्ण रूप से एक ही स्थान पर दिया हुआ मिलता है। इसे उन्होने '''सर्वानुक्रमणि''' नाम दिया। कात्यायन प्रणीत सर्वानुक्रमणी की संज्ञा का निर्वचन किया है- ''सर्वज्ञेयार्थ वर्णनात् सर्वानुक्रमणीशब्दं निर्बुवंति विपश्चित:'' ।
==परिचय==
 
वस्तुत: ये अनुक्रमणियाँ [[शब्दकोश|कोश]] की भाँति विषयानुसंधान में सहायक ही न थीं, अपितु इनका लक्ष्य सूक्त एवं अनुवाकों के यथावत् स्वरूप तथा मंत्रों के पाठ को भ्रष्ट न होने देने का अपूर्व साधन है। फिर भी किसी भी एक मंत्र के संबंध में उसके छंद, देवता आदि के ज्ञान के लिए अनेक अनुक्रमणियाँ देखनी पड़ती थीं, क्योंकि तत्संबंधी सकल ज्ञातव्य विषय एक जगह उपलब्ध न था। इस कठिनाई को दूर करने की दृष्टि से महर्षि [[कात्यायन]] ने एक ऐसी अनुक्रमणी की रचना की जिसमें संहिता के अंतर्गत समस्त मंत्रों के संबंध में सकल ज्ञेय वस्तु की एकत्र उपलब्धि हो जाए। इसमें प्रत्येक मंत्र का छंद, देवता, ऋषि, मंडल, सूक्त, एवं अनुवाद का विवरण पूर्ण रूप से एक ही स्थान पर दिया हुआ मिलता है। कात्यायन प्रणीत सर्वानुक्रमणी की संज्ञा का निर्वचन किया है- ''सर्वज्ञेयार्थ वर्णनात् सर्वानुक्रमणीशब्दं निर्बुवंति विपश्चित:'' । कात्यायन ने एक सर्वानुक्रमणी [[ऋग्वेद]] की शाकल एवं वाष्कल संहिता की बनाई और दूसरी शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेयि संहिता की। कात्यायन प्रणीत सर्वानुक्रमणी पर "वेदार्थदीपिका" नामक एक सुंदर व्याख्या [[षड्गुरुशिष्य]] द्वारा रची गई जो अत्यंत प्रामाणिक मानी जाती है। विषय विशेष को लेकर [[शौनक]] द्वारा प्रणीत अन्य अनुक्रमणियाँ पद्यबद्ध हैं; कात्यायन की दोनों ही सर्वानुक्रमणियाँ गद्यात्मक हैं और वे गद्य सूत्रशैली में निबद्ध हैं। सर्वानुक्रमणी के प्रणेता कात्यायन वही थे जिन्होंने [[पाणिनि]] की [[अष्टाध्यायी]] पर [[वार्तिक]] की रचना की। पाणिनि से परवर्ती एवं [[महाभाष्य]]कार [[पतंजलि]] से पूर्ववर्ती कात्यायन थे। इस संबंध में षड्गुरुशिष्य लिखते हैं-
 
:वाजिनां सूत्रकृत्साम्नामुपग्रंथस्य कारक:।
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:एवंगुणगणैर्युक्त: कात्यायनमहामुनि:।
:तपोयोगान्निर्ममे य: सर्वानुक्रमणीमिमाम्"।।
 
सर्वानुक्रमणी का रचनाकाल सूत्रयुग के अंतिम चरण में ही माना जा सकता है। सूत्रयुग का कालनिर्णय पाश्चात्य इतिहासकारों ने ईसापूर्व 600 से 200 तक का स्वीकार किया है।
 
ऋग्वेद संबंधी सर्वानुक्रमणी सूत्र शैली में रचित एक बड़ा ग्रंथ है। मुद्रित रूप में इसका आयाम लगभग 46 पृष्ठ का है। इसके पहले 12 अध्यायों में प्रास्ताविक चर्चा है जिनमें से 9 अध्यायों में वैदिक छंदों के स्वरूप और रचनापद्धति पर परिचयात्मक निबंध है। सर्वानुक्रमणी के प्रणेता कात्यायन ने ग्रंथारंभ में "यथोपदेश मैं ऋग्वेद की ऋचाओं के प्रतीक आदि की अनुक्रमणी प्रस्तुत करता हूँ" ऐसी प्रतिज्ञा की है। यथोपदेश से यह संकेत है कि यह रचना तत्पूर्व शौनकप्रणीत विविध छंदोबद्ध के आधार पर की गई है। क्योंकि सर्वानुक्रमणी में कतिपय गद्यांश वृत्तगंधी हैं ओर शौनकीय आर्षानुक्रमणी और बृहद्देवता में प्रयुक्त कतिपय पद स्वरूपत: परिगृहीत हैं। कात्यायन प्रणीत ऋग्वेद की सर्वानुक्रमणी का संपादन आचार्य मैक्डोनल ने किया है जो ऑक्सफ़र्ड से सन् 1886 ईसवी में प्रकाशित हुई। इसमें अनुवाकानुक्रमणी तथा षड्गुरुशिष्य का भाष्य भी परिशिष्ट में मुद्रित है।