"श्लेष अलंकार": अवतरणों में अंतर
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पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
यहां पानी का प्रयोग
अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
[http://kantila.blogspot.com "वह प्रकृति जिसको ढूंढ रहा था मैं अब तक,है संयोग से मेरे साथ मगर मैं तन्हा हूँ।"] <br>
उक्त उद्हरण में प्रकृति का संयोगवश साथ होना सामान्य अर्थ प्रतीत होता है किन्तु इसके दूसरे अर्थ में प्रकृति कवि कंटीला की सुपुत्री व संयोग धर्मपत्नि का नाम है और पत्नी के माध्यम से पुत्री का साथ होना ही इसका वास्तविक अर्थ है।
[[श्रेणी: अलंकार]]
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