"पुस्तकालय विज्ञान": अवतरणों में अंतर
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डा मेलविल ड्युई के प्रयासों से कोलंबिया कालेज में पुस्तकालय विज्ञान का पहला अमेरिकन स्कूल १ जनवरी १८८७ को आरम्भ किया गया तथा इसे लाइब्रेरी इकोनोमी का नाम दिया गया जो की १९४२ तक अमेरिका में इसी नाम से प्रचलित रहा. इसके पाठ्यक्रमों में पुस्तकालय तकनीको तथा पुस्तकालय सेवा के व्यावहारिक पक्षों पर अधिक जोर दिया गया था। इस प्रकार १९वी शताब्दी के अंत तक अमेरिका में अनेक स्थानों पर पुस्तकालय विज्ञान की शिक्षा का कार्य प्रारम्भ हो गया था। अमेरिका ही पहला देश है जहाँ पुस्तकालय विज्ञान की स्नातक तथा डॉक्टर की उपाधियों से सम्बंधित पाठ्यक्रम सर्वप्रथम प्रारंभ किये गए। अमेरिका के बाद इंग्लेंड दूसरा देश है जहाँ पुस्तकालय विज्ञान का पहला विद्यालय लन्दन में १९२१ में लन्दन स्कूल आफ लैब्रेरिंशिप प्रारंभ किया गया।
अंग्रेजी में पुस्तकालय विज्ञान शब्द का प्रयोग १९१६ में [[पंजाब विश्विद्यालय]]
रंगनाथन नें पुस्तकालय के कार्य एवं उद्देश्य भी स्पष्ट
१. पुस्तक उपयोग के लिए हैं।
२. प्रत्येक पाठक को उसकी पुस्तक
३. प्रत्येक पुस्तक को उसका पाठक
४. पाठक का समय
५. पुस्तकालय वर्धनशील संस्था है।
वस्तुत: भारत में पुस्तकालय विज्ञान की शिक्षा को स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य डॉक्टर रंगनाथन द्वारा ही किया गया। उन्हें भारतीय पुस्तकालय विज्ञान का जनक भी कहा जाता है।
विस्तृत तथा विशेष ज्ञान प्रदान करने में पुस्तकालयों की भूमिका को व्यापक रूप में स्वीकार जाता है। आज के सन्दर्भ में पुस्तकालयों को दो विशिष्ट भूमिकाओं का निर्वहन करना है। पहली सूचना तथा ज्ञान के स्थानीय केंद्र के रूप में कार्य करने की और दूसरी राष्ट्रीय एवं विश्व ज्ञान के स्थानीय श्रोत के रूप में .इस सन्दर्भ में भारतीय संस्कृति विभाग ने एक केन्द्रीय क्षेत्र योजना के रूप में एक राष्ट्रिय पुस्तकालय मिशन स्थापित करने का प्रस्ताव किया है। इसके अंतर्गत इन्टरनेट की सुविधा युक्त कंप्यूटर वाले ७००० पुस्तकालय भारत में स्थापित करने का प्रस्ताव है।
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ज्ञान के इस युग में सूचनाओं का विस्तार तीव्र गति से हो रहा है। जिसके फलस्वरूप वर्तमान समाज, ज्ञान समाज के रूप में परिवर्तित हो चूका है और पाठकों की सूचना आवश्यकता में व्यापक परिवर्तन आ रहा है जिसका प्रभाव पुस्तकालय विज्ञानं के शिक्षण तथा प्रशिक्षण पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। सामाजिक एवं शैक्षिक आवश्यकता की पूर्ती हेतु ही पुस्तकालयों की स्थापना प्राचीन कल से की जाती रही है। वस्तुत: ज्ञान का भण्डारण, सरक्षण और उपयोग हेतु उपलब्धता की सम्पूर्ण प्रक्रिया पुस्तकालयों द्वारा ही प्रदान की जाती रही है। विविध प्रकार की अध्ययन सामग्री का चयन, अर्जन, प्रक्रियाकरण और व्यस्थापन करने के पश्चात् ही पाठकों को उनकी आवश्यकतानुसार पठनीय सामग्री सुलभ करने का कार्य इसमें सम्मिलित है। पाठ्य सामग्री में निहित महत्वपूर्ण ज्ञान का सम्प्रेषण भी इन्हीं के द्वारा किया जाता है। व्यक्ति की सभ्यता, संस्कृति, तथा शिक्षा के उन्नयन में इन संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है तथा इनके द्वारा ही सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक विकास संभव है। समाज के बोद्धिक एवं मानसिक विकास का श्रेय इन्हें दिया जाता है।
आधुनिक पुस्तकालय, पुस्तकालय
परिवर्तित परिवेश में विभिन्न विश्विद्यालयों द्वारा प्रदान की जा रही पुस्तकालय विज्ञानं की शिक्षा का शोध के आधार पर पुन: आकलन करने की आवश्यकता है जिससे पुस्तकालय एवं सूचना के क्षेत्र में कार्यरत जनशक्ति को सम्पूर्ण रूप से सक्षम बना सकें तथा वे दक्षता के साथ कुशलता पूर्वक आपने कार्यों का निष्पादन कर सकें. पुस्तकालय विज्ञानं को उसी दिशा में सक्रीय होना चाहिए जो की आज के सन्दर्भ में आवश्यक रूप से अपेक्षित है।
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*[[पुस्तकालय]]
*[[पुस्तकालय का इतिहास]]
*[[एस आर रंगनाथन]]
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://hindi.indiawaterportal.org/node/38446 पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान में करियर]
* [http://www.nosolousabilidad.com/hassan/Visualizing_LIS.pdf Visualizing Library and Information Science from the practitioner’s perspective]
* [http://www.lisnews.org LISNews.org] Librarian and Information Science News
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