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1922 में जब रमण की माता का देहांत हो गया तब आश्रम उनकी समाधि के पास ले जाया गया। 1946 में रमण महर्षि की स्वर्ण जयंती मनाई गई। यहाँ महान्‌ विभूतियों का जमघट लगा रहता था। असीसी के संत फ्रांसिस की भाँति रामन सभी प्राणियों से - गाय, कुत्ता, हिरन, गिलहरी, आदि - से प्रेम करते थे।
 
14 अप्रैल 1950 की रात्रि को आठ बजकर सैंतालिस मिनट पर जब महर्षि रमण महाप्रयाण को प्राप्त हुए, उस समय आकाश में एक तीव्र ज्योति का तारा उदय हुआ एवं अरुणाचल की दिशा में अदृश्य हो गया।<ref>http://sri-ramana-maharshi.blogspot.nl/2010/05/paul-bruntons-background.html David Godman, ''Paul Brunton's Background'', a critique of Friesen's analysis</ref>
 
== सन्दर्भ ==