"कामशास्त्र": अवतरणों में अंतर

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मानव जीवन के लक्ष्यभूत [[चार पुरुषार्थ|चार पुरुषार्थों]] में "[[काम]]" अन्यतम [[पुरुषार्थ]] माना जाता है। [[संस्कृत]] भाषा में उससे संबद्ध विशाल [[साहित्य]] विद्यमान है।
 
== कामशास्त्र का इतिहास ==
'''कामशास्त्र''' का आधारपीठ है - महर्षि [[वात्स्यायन]]रचित [[कामसूत्र]]। सूत्र शैली में निबद्ध, वात्स्यायन का यह महनीय ग्रंथ विषय की व्यापकता और [[शैली]] की प्रांजलता में अपनी समता नहीं रखता। महर्षि वात्स्यायन इस शास्त्र में प्रतिष्ठाता ही माने जा सकते हैं, उद्भावक नहीं, क्योंकि उनसे बहुत पहले इस शास्त्र का उद्भव हो चुका था।
 
कामशास्त्र के इतिहास को हम तीन कालविभागों में बाँट सकते हैं - पूर्ववात्स्यायन काल, वात्स्यान काल तथा पश्चातद्वात्स्यायन काल।काल (वात्स्यायन के बाद का समय)।
 
=== पूर्ववात्स्यायन काल ===
कहा जाता है, प्रजापति ने एक लाख अध्यायों में एक विशाल ग्रंथ का प्रणयन कर कामशास्त्र का आंरभ किया, परंतु कालांतर में मानवों के कल्याण के लिए इसके संक्षेप प्रस्तुत किए गए। पौराणिक पंरपरा के अनुसार महादेव की इच्छा से "नंदी" ने एक सहस्र अध्यायों में इसका सार अंश तैयार किया जिसे और भी उपयोगी बनाने के लिए उद्दालक मुनि के पुत्र श्वेतकेतु ने पाँच सौ अध्यायों में उसे संक्षिप्त बनाया। इसके अंनतर पांचाल बाभव्य ने तृतीयांश में इसकी और भी संक्षिप्त किया—डेढ़ सौ अध्यायों तथा सात अधिकरणों में, कालांतर में सात महनीय आचार्यों ने प्रत्येक अधिकरण के ऊपर सात स्वतंत्र ग्रंथों का निर्माण किया—
 
*(1) चारायण ने ग्रंथ बनाया साधारण अधिकरण पर,
*(2) सुवर्णनाभ ने सांप्रयोगिक पर,
 
*(23) सुवर्णनाभघोटकमुख ने सांप्रयोगिककन्या संप्रयुक्तक पर,
*(4) गोनर्दीय ने भार्याधिकारिक पर,
 
*(5) गोणिकापुत्र ने पारदारिक पर,
(3) घोटकमुख ने कन्या संप्रयुक्तक पर,
*(6) दत्तक ने वैशिक पर तथा
 
*(7) कुचुमार ने औपनिषदिक पर।
(4) गोनर्दीय ने भार्याधिकारिक पर,
 
(5) गोणिकापुत्र ने पारदारिक पर,
 
(6) दत्तक ने वैशिक पर तथा
 
(7) कुचुमार ने औपनिषदिक पर।
 
इस पृथक् रचना का फल शास्त्र के प्रचार के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ और क्रमश: यह उच्छिन्न होने लगा। फलत: वात्स्यायन ने इन सातों अधिकरण ग्रंर्थों का सारांश एकत्र प्रस्तुत किया और इस विशिष्ट प्रयास का परिणत फल वात्स्यायन कामसूत्र हुआ। इस प्रकार वर्तमान कामसूत्र की शताब्दियों के साहित्यिक सदुद्योगों का पर्यवसान समझना चाहिए, यद्यपि परंपरया घोषित कामशास्त्रीय ग्रंथों के इस अनंत प्रणयन के विस्तार को स्वीकार करना कठिन है।
 
पूर्ववात्स्यायन काल के आचार्यों की रचनाओं का विशेष पता नहीं चलता। ब्राभ्रव्य के मत का निर्देश बड़े आदर के साथ वात्स्यायन ने अपने ग्रंथ में किया है। घोटकमुख और गोनर्दीय के मत कामशास्त्र और अर्थशास्त्र में उल्लिखित मिलते है। केवल दत्तक और कुचिमार के ग्रंथों के अस्तित्व का परिचय हमें भली भाँति उपलब्ध है। आचार्य दत्तक की विचित्र जीवनकथा कामसूत्र की जयमंगला टीका में है। कुचिमार रचित तंत्र के पूर्णत: उपलब्ध न होने पर भी हम उसके विषय से परिचत हैं। इस तंत्र में कामोपयोगी औषधों का वर्णन है जिसका संबंध बृंहण, लेपन, वश्य आदि क्रियाओं से है। "[[कुचिरमारतंत्र]]" का हस्तलेख [[मद्रास]] से उपलब्ध हुआ है जिसे ग्रंथकार "[[उपनिषद्]]" का नाम देता है और जिस कारण उसमें प्रतिपादित अधिकरण "औपनिषदिक" नाम से प्रख्यात हुआ।
 
=== वात्स्यायन काल (कामसूत्र) ===
'''{{मुख्य|कामसूत्र}}'''
वात्स्यायन का यह ग्रंथ सूत्रात्मक है। यह सात अधिकरणों, 36 अध्यायों तथा 64 प्रकरणों में विभक्त है। इसमें चित्रित भारतीय सभ्यता के ऊपर गुप्त युग की गहरी छाप है, उस युग का शिष्टसभ्य व्यक्ति "नागरिक" के नाम से यहाँ दिया गया है कि कामसूत्र भारतीय समाजशास्त्र का एक मान्य ग्रंथरत्न बन गया है। ग्रंथ के प्रणयन का उद्देश्य है लोकयात्रा का निर्वाण, न कि राग की अभिवद्धि। इस तात्पर्य की सिद्धि के लिए वात्स्यायन ने उग्र समाधि तथा ब्रह्मचर्य का पालन कर इस ग्रंथ की रचना की—
:'''तदेतद् ब्रह्मचर्येण परेण च समाधिना।'''
:'''विहितं लोकयावर्थं न रागार्थोंऽस्य संविधि:।।''' -- (कामसूत्र, सप्तम अधिकरण, श्लोक 57)
-- (कामसूत्र, सप्तम अधिकरण, श्लोक 57)
ग्रंथ सात अधिकरणों में विभक्त है। प्रथम अधिकरण (साधारण) में शास्त्र का समुद्देश तथा नागरिक की जीवनयात्रा का रोचक वर्णन है। द्वितीय अधिकरण (सांप्रयोगिक) रतिशास्त्र का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है। पूरे ग्रंथ में यह सर्वाधिक महत्वशाली खंड है जिसके दस अध्यायों में रतिक्रीड़ा, आलिंगन, चुंबन आदि कामक्रियाओं का व्यापक और विस्तृत प्रतिपादन हे। तृतीय अधिकरण (कान्यासंप्रयुक्तक) में कन्या का वरण प्रधान विषय है जिससे संबद्ध विवाह का भी उपादेय वर्णन यहाँ किया गया है। चतुर्थ अधिकरण (भार्याधिकारिक) में भार्या का कर्तव्य, सपत्नी के साथ उसका व्यवहार तथा राजाओं के अंत:पुर के विशिष्ट व्यवहार क्रमश: वर्णित हैं। पंचम अधिकरण (पारदारिक) परदारा को वश में लाने का विशद वर्णन करता है जिसमें दूती के कार्यों का एक सर्वांगपूर्ण चित्र हमें यहाँ उपलब्ध होता है। षष्ठ अधिकतरण (वैशिक) में वेश्याओं, के आचरण, क्रियाकलाप, धनिकों को वश में करने के हथकंडे आदि वर्णित हैं। सप्तम अधिकरण (औपनिषदिक) का विषय वैद्यक शास्त्र से संबद्ध है। यहाँ उन औषधों का वर्णन है जिनका प्रयोग और सेवन करने से शरीर के दोनों वस्तुओं की, शोभा और शक्ति की, विशेष अभिवृद्धि होती है। इस उपायों के वैद्यक शास्त्र में "बृष्ययोग" कहा गया है।
 
रचना की दृष्टि से कामसूत्र [[कौटिल्य]] के "[[अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)|अर्थशास्त्र]]" के समान है—चुस्त, गंभीर, अल्पकाय होने पर भी विपुल अर्थ से मंडित। दोनों की शैली समान ही है — सूत्रात्मक; रचना के काल में भले ही अंतर है, अर्थशास्त्र [[मौर्य राजवंश|मौर्यकाल]] का और कामूसूत्र सातवाहनकाल[[सातवाहन]]काल अथवा [[गुप्त राजवंश|गुप्तकाल]] का है :है।
 
कामसूत्र के ऊपर तीन '''टीकाएँ''' प्रसिद्ध हैं-
*(1) '''जयमंगला''' प्रणेता का नाम यथार्थत: यशोधर है जिन्होंने [[वीसलदेव]] (1243-61) के राज्यकाल में इसका निर्माण किया।
*(2) '''[[कंदर्पचूडामणि]]''' बघेलवंशी राजा रामचंद्र के पुत्र वीरसिंहदेव रचित पद्यबद्ध टीका (रचनाकाल सं. 1633; 1577 ई.)।
*(3) कामसूत्रव्याख्या—भास्कर'''कामसूत्रव्याख्या''' — भास्कर नरसिंह नामक काशीस्थ विद्वान् द्वारा 1788 ई. में निर्मित टीका। इनमें प्रथम दोनों प्रकाशित और प्रसिद्ध हैं, परंतु अंतिम टीका अभी तक अप्रकाशित है।
 
कामसूत्र के ऊपर हुए प्रकाशित '''समालोचनात्मक ग्रंथ''' निम्न हैं -
* '''कामसूत्र कालीन समाज एवं संस्कृति''' :- यह ग्रन्थ '''डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी''' द्वारा विरचित एवं चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी से प्रकाशित है।
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'''अन्य प्रकाशित कामशास्त्रीय ग्रन्थ'''
 
*(क) '''नागरसर्वस्व पद्मश्रीग्यानपद्मश्रीज्ञान कृत''':- कलामर्मग्यकलामर्मज्ञ ब्राह्मण विद्वान वासुदेव से संप्रेरित होकर बौद्धभिक्षु पद्मश्रीग्यानपद्मश्रीज्ञान इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ ३१३ श्लोकों एवं ३८ परिच्छेदों में निबद्ध है। यह ग्रन्थ [[दामोदर गुप्त]] के "[[कुट्टनीमत]]" का निर्देश करता है और "नाटकलक्षणरत्नकोश" एवं "शार्ङ्र्गधरपद्धतिशार्ङ्गधरपद्धति" में स्वयंनिर्दिष्ट है। इसलिए इनका समय दशम१०वीं शतकशताब्दी का अंत में स्वीकृत है।
 
*(ख) '''अंनंगरंग कल्याणमल्ल कृत''':- मुस्लिम शासक लोदीवंशावतंश अहमदखान के पुत्र लाडखान के कुतूहलार्थ भूपमुनि के रूप में प्रसिद्ध कलाविदग्ध '''कल्याणमल्ल''' ने इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ ४२० श्लोकों एवं १० स्थलरूप अध्यायों में निबद्ध है।
 
*(ग) '''रतिरहस्य कोक्कोक कृत''' :- यह ग्रन्थ कामसूत्र के पश्चात दूसरा ख्यातिलब्ध ग्रन्थ है। परम्परा कोक्कोक को कश्मीरी स्वीकारती है। कामसूत्र के सांप्रयोगिक, कन्यासंप्ररुक्तक, भार्याधिकारिक, पारदारिक एवं औपनिषदिक अधिकरणों के आधार पर पारिभद्र के पौत्र तथा तेजोक के पुत्र '''कोक्कोक''' द्वारा रचित यह ग्रन्थ ५५५ श्लोकों एवं १५ परिच्छेदों में निबद्ध है। इनके समय के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि कोक्कोक सप्तम७वीं से दशम१०वीं शतकशताब्दी के मध्य हुए थे। यह कृति जनमानस में इतनी प्रसिद्ध हुई सर्वसाधारण कामशास्त्र के पर्याय के रूप में "कोकशास्त्र" नाम प्रख्यात हो गया।
 
*(घ) '''पंचसायक कविशेखर ज्योतिरीश्वर कृत ''' :- मिथिलानरेश हरिसिंहदेव के सभापण्डित कविशेखर ज्योतिरीश्वर ने प्राचीन कामशास्त्रीय ग्रंथों के आधार ग्रहणकर इस ग्रंथ का प्रणयन किया। ३९६ श्लोकों एवं ७ सायकरूप अध्यायों में निबद्ध यह ग्रन्थ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। आचार्य ज्योतिरीश्वर का समय चतुर्दश शतक के पूर्वार्ध में स्वीकृत है।
 
*(ड) '''रतिमंजरी जयदेव कृत ''' :- अपने लघुकाय रूप में निर्मित यह ग्रंथ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। रतिमंजरीकार जयदेव, गीतगोविन्दकार[[गीतगोविन्द]]कार जयदेव से पूर्णतः भिन्न हैं। यह ग्रन्थ डॉ॰ [[संकर्षण त्रिपाठी]] द्वारा हिन्दी भाष्य सहित चौखंबा विद्याभवन, वाराणसी से प्रकाशित है।
 
*(च) '''स्मरदीपिका मीननाथ कृत ''' :- २१६ श्लोकों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
 
*(छ) '''रतिकल्लोलिनी सामराज दीक्षित कृत ''' :- दाक्षिणात्य बिन्दुपुरन्दरकुलीन ब्राह्मण परिवार में उत्पन्न एवं बुन्देलखण्डनरेश श्रीमदानन्दराय के सभापण्डित आचार्य सामराज दीक्षित द्वारा १९३ श्लोकों में निबद्ध इस ग्रन्थ का प्रणयन संवत १७३८ अर्थात १६८१ ई० में हुआ था। यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
 
*(ज) '''पौरूरवसमनसिजसूत्र राजर्षि पुरुरवा कृत ''' :-यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
 
*(झ) '''कादम्बरस्वीकरणसूत्र राजर्षि पुरुरवा कृत ''' :-यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
 
*(ट) '''श्रृंगारदीपिकाशृंगारदीपिका या श्रृंगाररसप्रबन्धदीपिकाशृंगाररसप्रबन्धदीपिका हरिहर कृत''' :- २९४ श्लोकों एवं ४ परिच्छेदों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है।
 
*(ठ) '''रतिरत्नदीपिका प्रौढदेवराय कृत''' :- विजयनगर के महाराजा श्री इम्मादी प्रौढदेवराय (1422-48 ई.) प्रणीत ४७६ श्लोकों एवं ७ अध्यायों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित चौखंबा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी से प्रकाशित है। श्री इम्मादी प्रौढदेवराय का समय पंचदश शतक के पूर्वार्ध में स्वीकृत है।
 
*(ड) '''केलिकुतूहलम् पं० मथुराप्रसाद दीक्षित कृत ''' :- आधुनिक विद्वान् पं० मथुराप्रसाद दीक्षित द्वारा ९४८ श्लोकों एवं १६ तरंगरूप अध्यायों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित कृष्णदास अकादमी, वाराणसी से प्रकाशित है।
 
इन बहुश: प्रकाशित ग्रंथों के अतिरिक्त कामशास्त्र की अनेक अप्रकाशित रचनाएँ उपलब्ध हैं -
* तंजोर के राजा शाहजी (1664-1710) की श्रृंगारमंजरीशृंगारमंजरी;
* नित्यानन्दनाथ प्रणीत कामकौतुकम्,
* रतिनाथ चक्रवर्तिन् प्रणीत कामकौमुदी,