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'''न्यायपालिका''' (Judiciary या judicial system या judicature) किसी भी [[जनतंत्र]] के तीन प्रमुख अंगों में से एक है। अन्य दो अंग हैं - [[कार्यपालिका]] और [[व्यवस्थापिका]]। न्यायपालिका, संप्रभुतासम्पन्न राज्य की तरफ से [[कानून]] का सही अर्थ निकालती है एवं कानून के अनुसार न चलने वालों को दण्डित करती है। इस प्रकार न्यायपालिका विवादों को सुलझाने एवं अपराध कम करने का काम करती है जो अप्रत्यक्ष रूप से समाज के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। '[[शक्तियों के पृथक्करण]] सिद्धान्त के अनुरूप न्यायपालिका स्वयं कोई नियम नहीं बनाती और न ही यह कानून का क्रियान्यवन कराती है।
 
सबको समान न्याय सुनिश्चित करना है न्यायपालिका का असली काम है। न्यायपालिका के अन्तर्गत कोई एक सर्वोच्च न्यायालय होता है एवं उसके अधीन विभिन्न न्यायालय (कोर्ट) होते हैं।
 
==भारतीय न्यायपालिका==
भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका का शीर्ष [[सर्वोच्च न्यायालय]] है, जिसका प्रधान [[प्रधान न्यायाधीश]] होता है। [[सर्वोच्च न्यायालय]] को अपने नये मामलों तथा उच्च न्यायालयों के विवादों, दोनो को देखने का अधिकार है। भारत में 21 [[उच्च न्यायालय]] हैं, जिनके अधिकार और उत्तरदायित्व [[सर्वोच्च न्यायालय]] की अपेक्षा सीमित हैं। न्यायपालिका और [[व्यवस्थापिका]] के परस्पर मतभेद या विवाद का सुलह [[राष्ट्रपति]] करता है।
 
=== राज्य न्यायपालिका ===
राज्य न्यायपालिका मे तीन प्रकार की पीठें होती हैं-
 
'''एकल''' जिसके निर्णय को उच्च न्यायालय की डिवीजनल/खंडपीठ/[[भारत का उच्चतम न्यायालय|सर्वोच्च न्यायालय]] मे चुनौती दी जा सकती है<br />
 
'''खंड पीठ''' 2 या 3 जजों के मेल से बनी होती है जिसके निर्णय केवल [[भारत का उच्चतम न्यायालय|उच्चतम न्यायालय]] में चुनौती पा सकते हैं <br />
 
'''संवैधानिक/फुल बेंच''' सभी संवैधानिक व्याख्या से संबधित वाद इस प्रकार की पीठ सुनती है इसमे कम से कम पाँच जज होते हैं
 
=== अधीनस्थ न्यायालय ===
इस स्तर पर सिविल आपराधिक मामलों की सुनवाई अलग अलग होती है इस स्तर पर सिविल तथा सेशन कोर्ट अलग अलग होते है इस स्तर के जज सामान्य भर्ती परीक्षा के आधार पर भर्ती होते है उनकी नियुक्ति राज्यपाल राज्य मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर करता है<br />
'''फास्ट ट्रेक कोर्ट''' – ये अतिरिक्त सत्र न्यायालय है इनक गठन दीर्घावधि से लंबित अपराध तथा अंडर ट्रायल वादों के तीव्रता से निपटारे हेतु किया गया है<br />
ये अतिरिक्त सत्र न्यायालय है इनक गठन दीर्घावधि से लंबित अपराध तथा अंडर ट्रायल वादों के तीव्रता से निपटारे हेतु किया गया है<br /> इसके पीछे कारण यह था कि वाद लम्बा चलने से न्याय की क्षति होती है तथा न्याय की निरोधक शक्ति कम पड जाती है जेल मे भीड बढ जाती है 10 वे वित्त आयोग की सलाह पर केद्र सरकार ने राज्य सरकारों को 1 अप्रैल 2001 से 1734 फास्ट ट्रेक कोर्ट गठित करने का आदेश दिया अतिरिक्त सेशन जज याँ उंचे पद से सेवानिवृत जज इस प्रकार के कोर्टो मे जज होता है इस प्रकार के कोर्टो मे वाद लंबित करना संभव नहीं होता हैहर वाद को निर्धारित स्मय मे निपटाना होता है<br />
'''आलोचना'''
1. निर्धारित संख्या मे गठन नहीं हुआ<br />
2. वादों का निर्णय संक्षिप्त ढँग से होता है जिसमें अभियुक्त को रक्षा करने का पूरा मौका नहीं मिलता है<br />
3. न्यायधीशों हेतु कोई सेवा नियम नहीं है<br />
===लोक अदालत===
लोक अदालतें नियमित कोर्ट से अलग होती हैं। पदेन या सेवानिवृत जज तथा दो सदस्य एक सामाजिक कार्यकता, एक वकील इसके सदस्य होते है सुनवाई केवल तभी करती है जब दोनों पक्ष इसकी स्वीकृति देते हों। ये [[बीमा]] दावों क्षतिपूर्ति के रूप वाले वादों को निपता देती है<br />
इनके पास वैधानिक दर्जा होता है वकील पक्ष नहीं प्रस्तुत करते हैं<br />
'''इनके लाभ''' – 1.न्यायालय शुल्क नहीं लगते<br />
2. यहाँ प्रक्रिया संहिता/साक्ष्य एक्ट नहीं लागू होते<br />
3. दोनों पक्ष न्यायधीश से सीधे बात कर समझौते पर पहुचँ जाते है <br />
4. इनके निर्णय के खिलाफ अपील नहीं ला सकते है<br />
 
'''आलोचनाएँ'''
1. ये नियमित अंतराल से काम नहीं करती है<br />
2. जब कभी काम पे आती है तो बिना सुनवाई के बडी मात्रा मे मामले निपटा देती है<br />
3. जनता लोक अदालतों की उपस्थिति तथा लाभों के प्रति जागरूक नहीं है
 
==इन्हें भी देखें==
* [[सर्वोच्च न्यायालय]]
* [[भारत का संविधान]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==