"संविदा निर्माण": अवतरणों में अंतर

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3. छलकपट (Fraud),
 
4. भ्रांत कथन, या भ्रांति द्वारा प्रभावित नहीं हुई हो और न प्राप्त की गई हो।
 
====='''बलप्रवर्तन या त्रास'''=====
5. भ्रांति कथन, या
(क) '''बलप्रवर्तन या त्रास''' की परिभाषा भारतीय संविदा अधिनियम की धारा में दी गई है। उसके अनुसार बलप्रवर्तन या त्रास के चार रूप है :
 
(क१) भारतीय दंड विधान द्वारा वर्जित और दंडनीय कार्य करना या
5. भ्रांति द्वारा प्रभावित नहीं हुई हो और न प्राप्त की गई हो।
 
(क२) करने की धमकी देना, चाहे उस स्थान पर जहाँ यह कार्य किया जाए भारतीय दंड विधान लागू हो या नहीं,
(क) '''बलप्रवर्तन या त्रास''' की परिभाषा भारतीय संविदा अधिनियम की धारा में दी गई है। उसके अनुसार बलप्रवर्तन या त्रास के चार रूप है :
 
(क३) किसी भी व्यक्ति की सम्पत्ति अवैध रूप से रोक रखना; अथवा
(क१) भारतीय दंड विधान द्वारा वर्जित और दंडनीय कार्य करना या
 
(क४) रोक रखने की धमकी देना। इस बलप्रवर्तन या त्रास का उद्देश्य किसी व्यक्ति को संविदा का पक्ष बनाना ही होना चाहिए।
(क२) करने की धमकी देना, चाहे उस स्थान पर जहाँ यह कार्य किया जाए भारतीय दंड विधान लागू हो या नहीं,
 
=====अवांछित प्रभाव=====
(क३) किसी भी व्यक्ति की सम्पत्ति अवैध रूप से रोक रखना; अथवा
(2) '''अवांछित प्रभाव''' की परिभाषा संविदा अधिनियम की धारा 16 में दी गई है। उसके अनुसार वह संविदा अवांछित प्रभाव द्वारा प्रेरित कही जाती है जिसके पक्षों के सम्बन्ध ऐसे हों कि एक पक्ष दूसरे पक्ष की इच्छा से अपनी उस विशिष्ट स्थिति का प्रयोग करे। माता पिता और बच्चे, अभिभावक और पाल्य (वार्ड), वकील ओर मुवक्किल, डाक्टर और रोगी, गुरु और शिष्य आदि के सम्बन्ध ऐसे ही होते हैं जिनमें प्रथम पक्ष दूसरे की इच्छाओं को अपने विशिष्ट सम्बन्ध के कारण प्रेरित करता है। अवांछित प्रभाव सिद्ध करने के लिए यह भी सिद्ध करना आवश्यक है कि वस्तुत: विशिष्ट स्थितिवाले पक्ष के दूसरे पक्ष पर अपनी विशेष स्थिति का प्रयोग अपने अनुचित लाभ के लिये किया। यदि यह बात सिद्ध नहीं होती तो केवल विशिष्ट स्थिति के ही कारण कोई संविदा अवांछित प्रभाव द्वारा प्रभावित या परित्याज्य नहीं समझी जाएगी।
 
=====छलकपट=====
(क४) रोक रखने की धमकी देना। इस बलप्रवर्तन या त्रास का उद्देश्य किसी व्यक्ति को संविदा का पक्ष बनाना ही होना चाहिए।
(3) '''छलकपट''' : यह संविदा अधिनियम की धारा 17 में वर्णित है। उसके अनुसार संविदा के किसी पक्ष द्वारा या उसकी साजिश से या उसके अभिकर्ता (agent) द्वारा दूसरे पक्ष या उसके अभिकर्ता को धोखा देने या छलने या संविदा से सम्मिलित होने के लिये प्रेरित करने के हेतु निम्नांकित कार्य छलकपट कहलाएँगे :
 
(2) '''अवांछित प्रभाव''' की परिभाषा संविदा अधिनियम की धारा 16 में दी गई है। उसके अनुसार वह संविदा अवांछित प्रभाव द्वारा प्रेरित कही जाती है जिसके पक्षों के सम्बन्ध ऐसे हों कि एक पक्ष दूसरे पक्ष की इच्छा से अपनी उस विशिष्ट स्थिति का प्रयोग करे। माता पिता और बच्चे, अभिभावक और पाल्य (वार्ड), वकील ओर मुवक्किल, डाक्टर और रोगी, गुरु और शिष्य आदि के सम्बन्ध ऐसे ही होते हैं जिनमें प्रथम पक्ष दूसरे की इच्छाओं को अपने विशिष्ट सम्बन्ध के कारण प्रेरित करता है। अवांछित प्रभाव सिद्ध करने के लिए यह भी सिद्ध करना आवश्यक है कि वस्तुत: विशिष्ट स्थितिवाले पक्ष के दूसरे पक्ष पर अपनी विशेष स्थिति का प्रयोग अपने अनुचित लाभ के लिये किया। यदि यह बात सिद्ध नहीं होती तो केवल विशिष्ट स्थिति के ही कारण कोई संविदा अवांछित प्रभाव द्वारा प्रभावित या परित्याज्य नहीं समझी जाएगी।
 
(3) '''छलकपट''' : यह संविदा अधिनियम की धारा 17 में वर्णित है। उसके अनुसार संविदा के किसी पक्ष द्वारा या उसकी साजिश से या उसके अभिकर्ता (agent) द्वारा दूसरे पक्ष या उसके अभिकर्ता को धोखा देने या छलने या संविदा से सम्मिलित होने के लिये प्रेरित करने के हेतु निम्नांकित कार्य छलकपट कहलाएँगे :
 
क) किसी असत्य बात को, जिसकी सत्यता में उसे विश्वास न हो, तथ्य बतलाना,
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ङ) धोखा देने लायक अन्य कार्य करना।
 
5. ====='''भ्रांति''' कथन, या =====
5. '''भ्रांति''' : करार के सम्बनध में विचार करते हुए यह कहा गया है कि उभय पक्ष के बीच मानसिक मतैक्य का होना आवश्यक है। भ्रांति इसी से सम्बन्धित दोष है। इसमें एक पक्ष एक वस्तु या बात और दूसरा पक्ष दूसरी वस्तु या बात समझता है। फलस्वरूप ऊपरी ढंग से देखने में तो संविदा का निर्माण प्रतीत होता है परन्तु भ्रांति के कारण वस्तुत: कोई संविदा होती नहीं है। ये भ्रांतियाँ कई प्रकार की होती हैं। विषयसामग्री के सम्बन्ध में भ्रांति का उदाहरण पूर्वप्रसंग में शेवरलेट और फोर्ड मोटर कारों के द्वारा दिया गया है। इसी प्रकार संविदा के पक्ष की पहचान में भी भ्रांति सम्भव है। "क" ने जिसे "ख" समझकर संविदा की यदि वह वस्तुत: "ख" नहीं वरन् "ग" था तो यह पक्ष की पहचान की भ्रांति है। संविदा की प्रकृति या अर्थ सम्बन्धी भी भ्रांति हो सकती है। अगर किसी बाद का एक पक्ष बाद में अवसर लेने का आवेदन पत्र बताकर किसी सन्धिपत्र पर दूसरे पक्ष का हस्ताक्षर करा लेता है तो दूसरे पक्ष को संविदा के रूप या प्रकृति के विषय में भ्रांति होती है। ऐसी दशा में हस्ताक्षर बनानेवाले का मस्तिष्क उसके हस्ताक्षर के साथ नहीं है।
 
====प्रतिफल एवं उद्देश्य वैध होना चाहिए ====