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'''कंपनी''' (Company) व्यापारिक संगठन का एक रूप होता है। [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] में कंपनी एक निगम होता है- जिसका आशय एक संघ, संगठन, भागीदारी से हो सकता है और ये एक औद्योगिक उद्देश्य से जुड़ी होनी चाहिये।
 
'कम्पनी' शब्द [[लैटिन भाषा]] से लिया गया है जिसमें कम्पनी का आशय 'साथ-साथ' से है। प्रारम्भ में कम्पनी एक ऐसे व्यक्तियों के संघ को कहा जाता था जो अपना खाना साथ-साथ खाते थे। इस खाने पर व्यवसाय की बातें भी होती थी। आजकल कम्पनियों का आशय ऐसे संघ से हो गया जिसमें संयुक्त पूंजी होती है।
[[संयुक्त राज्य अमेरिका]] में कंपनी एक निगम होता है- जिसका आशय एक संघ, संगठन, भागीदारी से हो सकता है और ये एक औद्योगिक उद्देश्य से जुड़ी होनी चाहिये।
 
कम्पनी का आशय [[कम्पनी अधिनियम]] के अधीन निर्मित एक 'कृत्रिम व्यक्ति' से है, जिसका अपने सदस्यों से पृथक अस्तित्व एवं अविच्छिन्न उत्तराधिकार होता है। साधारणतः ऐसी कम्पनी का निर्माण किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए होता है और जिसकी एक सार्वमुद्रा होती है।
 
==इतिहास एवं विकास==
[[भारत]] में कम्पनी विधान का इतिहास [[इंग्लैण्ड]] के कम्पनी विधान से जुड़ा हुआ है, क्योंकि 15 अगस्त, 1947 से पहले अंग्रेजों का शासन था और उन्होंने भारत में अपनी मर्जी के आधार पर विधानों की रचना की थी, जिनका मूल आधार ब्रिटिश विधान रहे हैं। 19वीं शताब्दी के मध्य में सन् 1844 ई. में इंग्लैण्ड में कम्पनी संबंधी विधान पारित किया गया। इसी विधान से मिलता-जुलता विधान भारत के लिए सन् 1850 में प्रथम बार [[संयुक्त पूँजी कम्पनी अधिनियम]] बनाया गया। इस अधिनियम की सबसे बड़ी कमी यह थी कि इसमें सीमित दायित्व के तत्व को मान्यता प्रदान नहीं की गई। सन् 1857 में नया संयुक्त पूँजी कम्पनी अधिनियम पारित करके सीमित दायित्व की कमी को कुछ सीमा तक पूरा कर दिया गया।
 
सन् 1860 में नया कम्पनी अधिनियम पारित किया गया जिसमें बैंकिग एवं बीमा कम्पनियों को भी सीमित दायित्व की छूट दे दी गई। समय के साथ-साथ परिस्थितियों में परिवर्तन होने से कम्पनी अधिनियम में भी निरन्तर कुछ नये-नये प्रावधानों की आवश्यकता अनुभव की गई। अतः सन् 1860 के बाद सन् 1866, 1882, 1913 तथा 1956 में एक के बाद एक नये अधिनियम भारत में ब्रिटिश विधान में होने वाले परिवर्तनों के मद्देनजर पारित किये जाते रहे हैं।
 
==अर्थ एवं परिभाषा==
[[कम्पनी अधिनियम, 1956]] की धारा 3 (1) 'कम्पनी' शब्द को परिभाषित करती हैं : "इस अधिनियम के अन्तर्गत संगठित और पंजीकृत की गयी कम्पनी या एक विद्यमान कम्पनी।" सामान्य व्यक्ति के लिए ”कम्पनी“ शब्द से तात्पर्य एक व्यावसायिक संगठन से है। परन्तु हम यह भी जानते हैं कि सभी प्रकार के व्यावसायिक संगठनों को तकनीकी रूप से ‘कम्पनी’ नहीं कहा जा सकता। भारत का सामान्य कानून एकल स्वामी के निजी संसाधनों को, उसके व्यवसाय से पृथक नहीं मानता। इसके परिणामस्वरूप, व्यावसायिक संकट के दौर में उसके व्यावसायिक ऋणों की पूर्ति उसके निजी संसाधनों से कर ली जाती है। इस प्रकार गणनात्मक अशुद्धियों की कुछ अपरिहार्य घटनाएँ स्वयं उसकी और उसके परिवार के विनाश का कारण बन सकती है। ऐसी स्थिति में उसके लिए ऐसा जोखिम उठाना उचित नहीं है। अतः वह अपने व्यवसाय को एक निजी कम्पनी के रूप में चलाने का निर्णय कर सकता है। एक साझेदार की स्थिति और भी अधिक जोखिमपूर्ण होती है। साझेदारी का सम्बन्ध पारस्परिक विश्वास पर आधारित होता है। यदि कोई साझेदार इस विश्वास का दुरूपयोग करता है तो वह अन्य साझेदारों को गंभीर संकट में डाल सकता है, क्योंकि साझेदारों का दायित्व असीमित होता है। इस असीमित दायित्व के जोखिम से बचने के लिए साझेदार स्वयं को कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत करा सकते हैं, क्योंकि उस स्थिति में प्रत्येक सदस्य का दायित्व उसके द्वारा लिए गये शेयरों के मूल्य तक ही सीमित होता है। व्यक्तिगत जोखिम की सीमाओं के अतिरिक्त ऐेसे बहुत से अन्य कारण हैं जो व्यक्तियों के समूह को इस अधिनियम के अन्तर्गत निगमित केन्द्र का रूप धारण करने के लिए बाध्य कर सकते हैं, जैसे- तकनीकी ज्ञान को प्राप्त करने, प्रबन्धकीय योग्यताओं से युक्त नीतियों को प्राप्त करने, विशाल पूँजी, निगमित व्यक्तित्व, शेयरों की अंतरणीयता आदि।
 
कम्पनी अधिनियम की कतिपय परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं -
 
:”समस्त उद्देश्य के लिए संगठित व्यक्तियों का संघ कम्पनी है।“ ...... न्यायाधीश जेम्स
 
:”कम्पनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका पृथक अस्तित्व, अविच्छिन्न उत्तराधिकारी एवं सार्वमुद्रा होती है।“ ....... प्रो. हैने
 
:”कम्पनी बहुत से ऐसे व्यक्तियों का एक संघ है जो द्रव्य या द्रव्य के बराबर का अंशदान एक संयुक्त कोष में जमा करते हैं और उसका प्रयोग एक निश्चित उद्देश्य के लिए करते हैं। इस प्रकार का संयुक्त कोष मुद्रा में प्रकट किया जाता है और कम्पनी की पूंजी होती है जो व्यक्ति इसमें अंशदान देते है, इसके सदस्य कहे जाते हैं। पूँजी के उतने अनुपात पर किसी सदस्य का अधिकार होता है जो उसके क्रय किये हुए अंश के बराबर है।“ .... लार्ड लिंडले
 
:”कम्पनी राजनियम द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है। यह एक पृथक वैधानिक आस्तित्व रखती है। इसे अविच्छिन्न उत्तराधिकार प्राप्त है और इसकी एक सार्वमुद्रा होती है।“ .......... कम्पनी अधिनियम 1956 के अनुसार
 
:”कम्पनी का आशय कई व्यक्तियों के ऐसे संघ से है जो मुद्रा या मुद्रा के बराबर कोई अन्य सम्पत्ति एक संयुक्त कोष में अंशदान करते हैं तथा जिसका उपयोग किसी सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए करते हैं।“ .... अमेरिकन विधिवेत्ता मार्शल जेम्स
 
:”कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति है जो अदृश्य एवं अमूर्त है और जिसका अस्तित्व केवल कानून की दृष्टि से है।“ ........ न्यायाधीश मार्शल
 
:”कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति है, जिसका समामेलन कुछ विशिष्ट निर्धारित उद्देश्यों के लिए हुआ है।“ ...... न्यायाधीश चार्ल्सवर्थ
 
:”निगम राज्य की एक रचना है जिसका अस्तित्व उन व्यक्तियों से भिन्न होता है जो उस (निगम) की पूँजी अथवा प्रतिभूतियों के स्वामी होते हैं ।“ .......डॉ. विलियम आर. स्प्रिगल
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
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[[श्रेणी:वैधानिक अस्तित्व]]
[[श्रेणी:कम्पनियाँ]]
 
[[pt:Empresa]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कंपनी" से प्राप्त