"सर्वेक्षण": अवतरणों में अंतर

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[[Image:Surveying_table.jpg|thumb|right|300px|सर्वेक्षण उपकरणो की तालिका]]
'''सर्वेक्षण''' (Surveying) उस कलात्मक विज्ञान को कहते हैं जिससे पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदुओं की समुचित माप लेकर, किसी पैमाने पर आलेखन (plotting) करके, उनकी सापेक्ष क्षैतिज और ऊर्ध्व दूरियों का कागज या, दूसरे माध्यम पर सही-सही ज्ञान कराया जा सके। इस प्रकार का अंकित माध्यम लेखाचित्र या [[मानचित्र]] कहलाता है। ऐसी आलेखन क्रिया की संपन्नता और सफलता के लिए रैखिक और कोणीय, दोनों ही माप लेना आवश्यक होता है। सिद्धांतत: आलेखन क्रिया के लिए रेखिक माप का होना ही पर्याप्त है। मगर बहुधा ऊँची नीची भग्न भूमि पर सीधे रैखिक माप प्राप्त करना या तो असंभव होता है, या इतना जटिल होता है कि उसकी यथार्थता संदिग्ध हो जाती है। ऐसे क्षेत्रों में कोणीय माप रैखिक माप के सहायक अंग बन जाते हैं और गणितीय विधियों से अज्ञात रैखिक माप ज्ञात करना संभव कर देते हैं।
सर्वेक्षण वह कला है जिसमे सर्वेक्षण उपकरणो की सहायता से धरातल पर मापी गई क्षेतिज दूरियों, कोणों एवं ऊँचाइयों की किसी रूढ विधि के अनुसार अघुकृत मापनी पर मानचित्र के रूप में प्रदर्शित किया जाता हैं । इस प्रकार सर्वेक्षण में तीन कार्य सम्मिलित होते हैं -
 
इस प्रकार सर्वेक्षण में तीन कार्य सम्मिलित होते हैं -
* '''क्षेत्र अध्यन'''
* '''मानचित्रण'''
* '''अभिकलन'''
 
 
==इतिहास==
सर्वेक्षण क्रिया की उत्पत्ति की कहानी आदिकाल से आज तक के मानव समाज के विकास की कहानी, प्रधानत: सुख और समृद्धि के लिए भ्रमण और भूमि पर प्रभुसत्ता की प्राप्ति से, जुड़ी हुई है। भ्रमण के लिए स्थानों के बीच की दूरियों और दिशाओं का ज्ञान और प्रभुसत्ता के लिए सीमाओं और क्षेत्रफल का जानना आवश्यक था। ऐसा ज्ञान होने के प्रमाण प्राचीन ग्रंथों में राज्यों के विस्तार, दिशाओं के विवरण और दूरी के लिए योजना आदि के उल्लेख से मिलते हैं। प्राचीन काल में शिलाओं, भोजपत्र, ताम्रपत्र और कागज के प्रयोग से पूर्व, स्थानों के बीच की दूरी, दिशाएँ पहचानने का ज्ञान तथा अधिकार सीमाएँ मानव के स्मृतिपटल पर अंकित रहती होंगी। [[युद्ध]] और कलह का भय उत्पन्न होने पर, उस स्मृति और लिए गए मापों को किसी माध्यम पर प्रदर्शित करने की क्रिया का जन्म हुआ होगा, जिसे बाद में सर्वेक्षण की संज्ञा दी गई। इस प्रकार मनुष्य की महत्वाकांक्षाओं और सर्वेक्षण का गहरा संबंध होने के कारण सर्वेक्षणक्रिया निरंतर उन्नति करती गई।
 
ऐसे प्रयासों का सबसे प्राचीन प्रमाण ईसा से 370 वर्ष पूर्व का मिला है, जो ट्यूरिन के अजायबघर में आज भी सुरक्षित है। यूनान और मिस्र में भी शिलाओं और लकड़ी के तख्तों पर सर्वेक्षण के प्राचीन आलेख मिले हैं। [[ऑस्ट्रिया]] में ईसापूर्व काल के कुछ ऐसे चिह्न मिले हैं जिनसे पता लगता है कि रोम साम्राज्य में सर्वेक्षण का प्रचलन था। उन्होंने मार्गों की सीध बाँधने के लिए आज जैसे उपकरण, सर्वेक्षण पट्ट (plane table) और दूसरा नापने के लिए अंकित छड़ों का प्रयोग किया था। ऐसे भी प्रमाण मिले हैं कि 300 वर्ष ईसापूर्व भारत पर आक्रमण के समय, यूनानियों ने सिंध से फारस की खाड़ी तक समुद्रतट नापकर लेखाचित्र तैयार किया था। [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र]] और [[बाणभट्ट]] के [[हर्षचरित्]] में राजस्व के निर्धारण के सिलसिले में भूमि की नाप आदि के उल्लेख मिलते हैं। 1450 ई. में अरबवासियों ने कई समुद्री यात्राएँ कीं और समुद्रतटों के लेखाचित्र तैयार किए। 1498 ई. में [[वास्को डा गामा]] के भारत आने पर एक गुजराती पंडित ने उसे समुद्रतट का एक रेखाचित्र भेंट किया था। इससे विदित होता है कि सभ्यता के मार्ग पर बढ़े हुए सभी देशों में सर्वेक्षण का महत्व निरंतर बढ़ता रहा और [[कृषि]], राजस्व, भूमि के अधिकार की सीमाओं के निर्धारण और यात्राओं में मार्गों के लेखाचित्र बनाने में सर्वेक्षण का अभ्यास एवं प्रयोग होता रहा है। मगर 16वीं शताब्दी के समाप्त होते होते तो सर्वेक्षणक्रिया का महत्व आशातीत बढ़ा। [[मार्को पोलो]], वास्को डी गामा, [[कोलंबस]] और कैप्टन कुक के भ्रमणों से यूरोप निवासियों को संसार के विस्तार और उसपर स्थित समृद्ध देश तथा उपजाऊ भूमि का पता लगा, तो वे बहुत तादाद में अपनी भाग्यपरीक्षा के लिए निकल पड़े। भूमि पर आधिपत्य करने में उनमें स्पर्धा जागी, जिससे सर्वेक्षणक्रियाओं को नई स्फूर्ति और तीव्र गति मिली। उस समय का बना हुआ भारत और अरब का मानचित्र ब्रिटिश अजायबघर में आज भी सुरक्षित है। नक्शे से पता लगता है कि वह फेरंडो बर्टोली द्वारा 1565 ई. में बनाया गया था। इसके बाद 1612 ई. में गेरार्डरा मर्केटर द्वारा बनाया भारत का मानचित्र, उस समय का अथक प्रयास, भी थाती के रूप में सुरक्षित है।
 
===वर्गीकरण ===
शनै:-शनै: अधिकार की रक्षा के साथ-साथ देशों में विकास के प्रति भी रुचि जागी। संपूर्ण देश, अमुक साम्राज्य, संपूर्ण संसार एक साथ देखने की जिज्ञासा बढ़ी। इसकी पूर्ति का साधन मानचित्र ही हो सकता था। इस कारण सर्वेक्षण में इतनी नई-नई खोजें हुई कि उनके आधार पर सर्वेक्षणक्रिया ही दो प्रमुख वर्गों में बँट गई :
 
(1) भूगणितीय सर्वेक्षण (geodetic surveying) और
 
(2) पट्ट सर्वेक्षण (plane surveying)।
 
इस वर्गीकरण का मुख्य आधार [[पृथ्वी]] का आकार है। जिस सर्वेक्षण में पृथ्वी के आकार को गोलाभ (spheroid) मानकर, उसकी सतह पर लिए गए नापों का प्रयोग करने से पहले पृथ्वी की वक्रता के लिए शोधन करते हैं, उसे '''भूगणितीय सर्वेक्षण''' कहते हैं। यह कठिन प्रक्रिया होती है। मगर पृथ्वी की गोल या वक्र सतह पर नापी दूरियाँ यदि अधिक लंबी न हों, तो उन्हें वक्र न मानकर ऋजु (सीधा) ही मान लिया जाए, तो कोई विशेष त्रुटि नहीं होगी। उदाहरणार्थ, पृथ्वी की वक्र सतह पर 11.5 मील लंबी रेखा नापने पर उसमें पृथ्वी के कारण केवल 0.05 फुट की त्रुटि होगी। इसी प्रकार पृथ्वी की सतह पर किन्हीं भी तीन बिंदुओं द्वारा 75 वर्ग मील क्षेत्रफल के त्रिभुज को समतल सतह पर सीधी रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाए, तो उसके कोणों के योग और उसी त्रिभुज की वक्र सतह पर बने कोणों के योग में केवल एक सेकंड का अंतर होगा। इस कारण यदि छोटे छोटे क्षेत्रों के नक्शे तैयार किए जाएँ, तो पृथ्वी की सतह पर ली गई नाप को सीधी रेखाओं में सतल पर प्रदर्शित करने से कोई खटकनेवाली गलती नहीं होगी। इसलिए पृथ्वी के छोटे क्षेत्र को समतल मानकर, उस पर ली गई नापों को बिना वक्रता के शोधन के किसी पैमाने पर समतल कागज पर अंकित कर दिया जाता है। इस प्रकार के सर्वेक्षण को '''पट्ट सर्वेक्षण''' कहते हैं।
 
सामान्य व्यवहार में आनेवाले सर्वेक्षण समतलीय सर्वेक्षण ही होते हैं। भिन्न उद्देश्यों की सिद्धि के लिए सर्वेक्षणों की प्रक्रिया, उपकरण, पैमाना आदि में भी कुछ अंतर पैदा हो जाता है। इन कारणों से पट्ट सर्वेक्षण के भी कई वर्ग बन गए हैं :
 
(1) पैमाने के आधार पर 1:50,000; 1:25,000 1:5,000; 1:1,000 सर्वेक्षण (इस प्रकार से बताए पैमाने का अर्थ है कि मानचित्र पर एक इकाई लंबी रेखा भूमि पर क्रमश: 50,000; 25,000; 5,000 1,000 इकाई लंबाई के बराबर होग),
 
(2) किसी मंतव्य या कार्य विशेष के लिए किया गया सर्वेक्षण, जैसे स्थलाकृतिक (topographical), इंजीनियरी, राजस्व (revenue) तथा खनिज (mineral) सर्वेक्षण, तथा
 
(3) प्रयुक्त प्रमुख यंत्रों के नाम पर, जैसे जरीब सर्वेक्षण, टैकोमीटर (tachometer) सर्वेक्षण आदि।
 
 
यदि ऐसे समतलीय सर्वेक्षणों से भारत जैसे विस्तृत देश या महाद्वीप के मानचित्र संकलित (compile) किए जा सकें, तो पट्ट सर्वेक्षणों का महत्व आशातीत बढ़ जाता है। यह तभी संभव होगा, जब पट्ट सर्वेक्षणों की आधारशिला भूगणितीय सर्वेक्षण पर हो। आधारशिला का उल्लेख तभी ग्राह्य हो सकेगा, जब उसकी कुछ संक्षिप्त व्याख्या कर दी जाए।
 
 
==सर्वेक्षण के आधारभूत सिद्धांत==
ये सिद्धांत बड़े ही सरल हैं। पृथ्वी की सतह पर बड़ी सरलता से दो ऐसे बिंदु चुने जा सकते हैं जो एक दूसरे की स्थिति से देखें जा सकें और उनके बीच की दूरी नापी जा सके। इन्हें किसी भी वांछित पैमाने पर कागज पर ऐसे लगाया जा सकता है कि उनके निकटवर्ती क्षेत्र का सर्वेक्षण कागज पर समा सके। इसके बाद इन दो बिंदुओं से किसी भी तीसरे बिंदु की दूरी नापकर उसी पैमाने से कागज पर उसकी सापेक्ष स्थिति अंकित कर सकते हैं। इस प्रकार अंकित किन्हीं भी दो बिंदुओं से किसी तीसरे अज्ञात बिंदु की दूरी निकालकर तथा क्रमानुगत अंकित करके, पूरे क्षेत्र का मानचित्र बनाया जा सकता है।
 
दूसरे शब्दों में, '''सर्वेक्षण की विधि त्रिभुज की रचना है'''। ऊपर तो त्रिभुज की एक ही रचना का उल्लेख किया गया है, जिसमें त्रिभुज की तीनों भुजाओं की लंबाइयाँ ज्ञात है। त्रिभुज की अन्य रचना विधियाँ भी सर्वेक्षण में प्रयुक्त होती हैं।
 
'''विस्तृत लेख [[सर्वेक्षण के आधारभूत सिद्धान्त]] देखें।'''
 
 
==सर्वेक्षण के प्रकार==
सर्वेक्षण को भिन्न-भिन्न आधारो के अनुसार अधोलिखित प्रकार से वर्गिकृत किया जाता हैं ।