"अल-अनआम": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति 45:
और कुफ़्फ़ार कहते हैं कि (आखि़र) उस नबी पर उसके परवरदिगार की तरफ से कोई मौजिज़ा क्यों नहीं नाज़िल होता तो तुम (उनसे) कह दो कि ख़ुदा मौजिज़े के नाज़िल करने पर ज़रुर क़ादिर है मगर उनमें के अक्सर लोग (ख़ुदा की मसलहतों को) नहीं जानते (38)
ज़मीन में जो चलने फिरने वाला (हैवान) या अपने दोनों परों से उड़ने वाला परिन्दा है उनकी भी तुम्हारी तरह जमाअतें हैं और सब के सब लौह महफूज़ में मौजूद (हैं) हमने किताब (क़ुरान) में कोई बात नहीं छोड़ी है फिर सब के सब (चरिन्द हों या परिन्द) अपने परवरदिगार के हुज़ूर में लाए जायेंगे। (39)
और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठला दिया गोया वह (कुफ्र के घटाटोप)
(ऐ रसूल उनसे) पूछो तो कि क्या तुम यह समझते हो कि अगर तुम्हारे सामने ख़ुदा का अज़ाब आ जाए या तुम्हारे सामने क़यामत ही आ खड़ी मौजूद हो तो तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो (बताओ कि मदद के वास्ते) क्या ख़ुद़ा को छोड़कर दूसरे को पुकारोगे (41)
(दूसरों को तो क्या) बल्कि उसी को पुकारोगे फिर अगर वह चाहेगा तो जिस के वास्ते तुमने उसको पुकारा है उसे दफा कर देगा और (उस वक़्त) तुम दूसरे माबूदों को जिन्हे तुम (ख़ुदा का) ्यरीक समझते थे भूल जाओगे (42)
पंक्ति 69:
वह अपने बन्दों पर ग़ालिब है वह तुम लोगों पर निगेहबान (फ़रिष्ततें तैनात करके) भेजता है-यहाँ तक कि जब तुम में से किसी की मौत आए तो हमारे भेजे हुये फ़रिष्ते उसको (दुनिया से) उठा लेते हैं और वह (हमारे तामीले हुक्म में ज़रा भी) कोताही नहीं करते (62)
फिर ये लोग अपने सच्चे मालिक ख़़ुदा के पास वापस बुलाए गए-आगाह रहो कि हुक़ूमत ख़ास उसी के लिए है और वह सबसे ज़्यादा हिसाब लेने वाला है (63)
(ऐ रसूल) उनसे पूछो कि तुम ख़ुष्की और तरी के (घटाटोप)
तुम कहो उन (मुसीबतों) से और हर बला में ख़़ुदा तुम्हें नजात देता है (मगर अफसोस) उस पर भी तुम षिर्क करते ही जाते हो (65)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि वही उस पर अच्छी तरह क़ाबू रखता है कि अगर (चाहे तो) तुम पर अज़ाब तुम्हारे (सर के) ऊपर से नाज़िल करे या तुम्हारे पाॅव के नीचे से (उठाकर खड़ा कर दे) या एक गिरोह को दूसरे से भिड़ा दे और तुम में से कुछ लोगों को बाज़ आदमियों की लड़ाई का मज़ा चखा दे ज़रा ग़ौर तो करो हम किस किस तरह अपनी आयतों को उलट पुलट के बयान करते हैं ताकि लोग समझे (66)
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