"रघुवंशम्": अवतरणों में अंतर

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रघुवंश काव्य के आरंभ में महाकवि ने रघुकुल के राजाओं का महत्त्व एवं उनकी योग्यता का वर्णन करने के बहाने प्राणिमात्र के लिए कितने ही प्रकार के रमणीय उपदेश दिये हैं। रघुवंश काव्य में कालिदास ने रघुवंशी राजाओं को निमित्त बनाकर उदारचरित पुरुषों का स्वभाव पाठकों के सम्मुख रखा है। रघुवंशी राजाओं का संक्षेप में वर्णन जानना हो तो रघुवंश के केवल एक श्लोक में उसकी परिणति इस प्रकार है-
 
:'''त्यागाय समृतार्थानां सत्याय मिभाषिणाम् ।'''
:'''शैशवेऽभ्यस्तविद्यानां यौवने विषयैषिणाम्।''' <br />
:'''यशसे विजिगीषूणां प्रजायै गृहमेधिनाम् ॥'''
:'''वार्धके मुनिवृत्तीनां योगेनानन्ते तनुत्यजाम्।।'''<br />
:'''शैशवेऽभ्यस्तविद्यानां यौवने विषयैषिणाम्।''' <br />
(''बाल्यकाल में विद्याध्ययन करने वाले, यौवन में सांसारिक भोग भोगने वाले, बुढ़ापे में मुनियों के समान रहने वाले और अन्त में [[योग]] के द्वारा शरीर का त्याग करने वाले (राजाओं का वर्णन करता हूँ)'')
:'''वार्धके मुनिवृत्तीनां योगेनानन्ते तनुत्यजाम्।।तनुत्यजाम् ॥'''<br />
(''सत्पात्र को दान देने के लिए धन इकट्ठा करनेवाले, सत्य के लिए मितभाषी, यश के लिए विजय चाहनेवाले, और संतान के लिए [[विवाह]] करनेवाले, बाल्यकाल में विद्याध्ययन करने वाले, यौवन में सांसारिक भोग भोगने वाले, बुढ़ापे में मुनियों के समान रहने वाले और अन्त में [[योग]] के द्वारा शरीर का त्याग करने वाले (राजाओं का वर्णन करता हूँ)'')
 
== रघुवंश की कथा ==