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{{सन्दूक सिख धर्म}}
'''खालसा''' [[सिख धर्म]] के [[अमृत संचार| विधिवत् दीक्षा]] प्राप्त अनुयायियों सामूहिक रूप है। '''खालसा पंथ''' की स्थापना [[गुरु गोबिन्द सिंह]] जी ने १६९९ को [[बैसाखी]] वाले दिन [[आनंदपुर साहिब]] में की | इस दिन सतगुरउन्होंने नेसर्वप्रथम [[खालसा]] फ़ौज का निर्माण कियापंज प्यारे| यहपाँच फ़ौजप्यारों]] सिर्फको सिखअमृतपान हीकरवा नहीं,कर बल्किखालसा दुनियाबनाया मेंतथा किसीतत्पश्चात् परउन भीपाँच कोईप्यारों भीके अत्याचार हो रहा है वहाँ लोगों को अत्याचारोंहाथों से मुक्तस्वयं करेगीभी |अमृतपान यहीकिया। नहीं जहाँ पर गुरमत का परचार नहीं होने दिया जा रहा और हमला हो रहा है वहाँ पर अपना बचाव करेगी और जुल्मो को मौत के घात उतारेगी |
 
सतगुरसतगुरु गोबिंद सिंह ने खालसा महिमा में खालसा को "काल पुरख की फ़ौज" पद से निवाजा है | [[तलवार]] और [[केसकीकेश]] तो पहले ही सिखों के पास थे, सतगुरगुरु गोबिंद सिंह ने "खंडे बाटे की पाहुल" तयार कर [[कछा]], [[कड़ा]] और [[कंघा]] भी दिया | इसी दिन खालसे के नाम के पीछे "[[सिंह]]" लग गया | शारीरिक देख में खालसे की भिन्ता नजर आने लगी | पर खालसे ने आत्म ज्ञान नहीं छोड़ा, उस का परचारप्रचार चलता रहा और मौकेआवश्यकता पड़ने पर तलवार भी चलती रही |
 
== पूर्व इतिहास ==
सिख धर्म के ऊपर अन्य धर्मों और सरकारी नुमयिन्दोनुमाईन्दो के वार लगातार बढ़ गए थे | सरकार को गलत खबरें दे कर इस्लाम धर्म और हिन्दू धर्म के कटडकट्टर अनुययोंअनुयायियों ने [[सतगुरगुरु अर्जुन देव]] जी को मौत की सजा दिलवा दी | जब सतगुरगुरु अर्जुन देव, को बहुत दुःख दे कर शहीद कर दिया गया तो [[सतगुरगुरु हरगोबिन्द]] जी ने तलवार उठा ली | यह तलवार सिर्फ आत्म रक्षा और आम जनता की बेहतरी के लिए उठाई थी | सतगुरगुरु हरगोबिन्द जी के जीवन में उन पर लगातार ४ हमले हुए और सतगुरसतगुरु हरि राए पर भी एक हमला हुआ | [[सतगुरगुरु हरि कृष्ण]] को भी बादशाह औरंगजेब ने भी अपना अनुयायी बनाने की कोशिश की |
 
[[सतगुरगुरु तेघतेग़ बहादुर]] को सरकार ने मौत के घातघाट उतार दिया, क्योंक्योंकि वो हिन्दू ब्रह्मिनोब्राह्मिणों के दुखों को देख कर सरकार से अपील करने गए थे | उसके बाद कुछ हिन्दू पहाड़ी राजे और सरकारी अहलकारों से सदा हीने गुरमत के बढते प्रचार सेव अनुयायियों की भारी संख्या को अपने लिए खतरा रहतासमझना थाशुरु कर दिया और वो ध्वस्तइसके करनाविरुद्ध चाहतेएकजुट थेहो |गए। इस बीच गुरु गोबिंद सिंह ने कुछ बानियों की रचना की जिस में हिन्दू धर्म और इस्लाम के खिलाफ सख्त टिप्पणियाँ थी |थी।
 
इनउपरोक्त सबपरिस्थितयों बातोंतथा कोऔरंगजेब म्दतेऔर नजरउसके रखतेनुमाइंदों के गैर-मुस्लिम जनता के प्रति अत्याचारी व्यवहार को देखते हुए धर्म की रक्षा हेतु जब गुरु गोबिंद सिंह ने, सशस्त्र संघर्ष का निर्णय लिया तो उन्होंने ऐसे सिखों (शिष्यों) की तलाश की जो गुरमत विचारधारा को आगे बढाएं, दुखियों की मदद करें और ज़रुरत पढने पर हस्तेअपना हस्तेबलिदान अपनादेनें में सिरभी कटवापीछे देंना हटें|
 
== खालसा पंथ साजने का चित्र ==