"व्यापारिक पवन": अवतरणों में अंतर

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उत्तरी गोलार्ध में ये हवाएं उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हैं, वहीं दक्षिणी गोलार्ध में इनकी दिशा दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर होती है। नियमित दिशा में निरंतर प्रवाह के कारण प्राचीन काल में व्यापारियों को पालयुक्त जलयानों के संचालन में इन हवाओं से काफी मदद मिलती थी, जिस कारण इन्हें व्यापारिक पवन कहा जाने लगा। भूमध्यरेखा के समीप दोनों व्यापारिक पवन आपस में मिलकर अत्यधिक तापमान के कारण ऊपर उठ जाती हैं तथा घनघोर वर्षा करती हैं क्योंकि वहां पहुंचते-पहुंचते ये जलवाष्प से पूर्णत: संतृप्त हो जाती हैं। इन हवाओं का वैश्विक मौसम पर भी व्यापक असर होता है।
 
 
[[श्रेणी:भूगोल]]
[[श्रेणी:प्रचलित पवन]]