"धर्म के लक्षण": अवतरणों में अंतर

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[[महाभारत]] के महान् यशस्वी पात्र [[विदुर]] ने धर्म के '''आठ अंग''' बताए हैं -
 
'''इज्या (यज्ञ-याग, पूजा आदि), अध्ययन, दान, तप, सत्य, दया, क्षमा और अलोभ'''।
उनका कहना है कि इनमें से प्रथम चार इज्या आदि अंगों का आचरण मात्र दिखावे के लिए भी हो सकता है, किन्तु अन्तिम चार सत्य
आदि अंगों का आचरण करने वाला महान् बन जाता है।
 
==तुलसीदास द्वारा वर्णित ''धर्मरथ''==