"बाणभट्ट": अवतरणों में अंतर

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'''बाणभट्ट''' सातवीं शताब्दी के संस्कृत भाषी गद्य लेखक और कवि थे। वह राजा [[हर्षवर्धन]] के ''आस्थान कवि'' थे। उनके दो प्रमुख ग्रंथ हैं: [[हर्षचरितम्]] तथा [[कादम्बरी]]। हर्षचरितम्<ref>{{cite web | title =स्थानविश्वर (ऐतिहासिक क्षेत्र, भारत) |publisher= ब्रिटैनिका विश्वकोश | url = http://www.britannica.com/EBchecked/topic/566090/Sthanvishvara | accessdate = २४ नवम्बर २०१४ }}</ref> , रजाराजा [[हर्षवर्धन]] का जीवन-चरित्र था और [[कादंबरी]] दुनिया का पहला उपन्यास था। [[कादंबरी]] पूर्ण होने से पहले ही बाणभट्ट जी का देहांत हो गया तो उपन्यास पुरापूरा करने का काम उनके पुत्र भूषणभट्ट ने अपने हाथ में लिया। दोनों ग्रंथ [[संस्कृत साहित्य]] के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माने जाते है<ref name="Datta1988">{{cite book|author=अमरेश दत्ता|title=भारतीय साहित्य के मकदूनियाई: देवराज ज्योति को|url=http://books.google.com/books?id=zB4n3MVozbUC&pg=PA1339|year=1988|publisher=साहित्य अकादमी|isbn=९७८-८१-२६०-११९४-०|pages=१३३९–}}</ref>।
{{स्रोतहीन|date =नवम्बर 2014}}
'''बाणभट्ट''' सातवीं शताब्दी के संस्कृत भाषी गद्य लेखक और कवि थे। वह राजा [[हर्षवर्धन]] के ''आस्थान कवि'' थे। उनके दो प्रमुख ग्रंथ हैं: [[हर्षचरितम्]] तथा [[कादम्बरी]]। हर्षचरितम्<ref>{{cite web | title =स्थानविश्वर (ऐतिहासिक क्षेत्र, भारत) |publisher= ब्रिटैनिका विश्वकोश | url = http://www.britannica.com/EBchecked/topic/566090/Sthanvishvara | accessdate = २४ नवम्बर २०१४ }}</ref> , रजा हर्षवर्धन का जीवन-चरित्र था और [[कादंबरी]] दुनिया का पहला उपन्यास था। [[कादंबरी]] पूर्ण होने से पहले ही बाणभट्ट जी का देहांत हो गया तो उपन्यास पुरा करने का काम उनके पुत्र भूषणभट्ट ने अपने हाथ में लिया। दोनों ग्रंथ संस्कृत साहित्य के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माने जाते है<ref name="Datta1988">{{cite book|author=अमरेश दत्ता|title=भारतीय साहित्य के मकदूनियाई: देवराज ज्योति को|url=http://books.google.com/books?id=zB4n3MVozbUC&pg=PA1339|year=1988|publisher=साहित्य अकादमी|isbn=९७८-८१-२६०-११९४-०|pages=१३३९–}}</ref>।
 
== परिचय ==
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== महाकवि बाण भट्ट की कृतियां==
कादम्बरी और हर्षचरितम् के अतिरिक्त कई दूसरी रचनाएँ भी बाण की मानी जाती हैं। उनमें से [[मार्कण्डेय पुराण]] के [[देवी महात्म्य]] पर आधारित दुर्गा का स्त्रोत[[स्तोत्र]] [[चंडीशतक]] है। प्रायः एक नाटक '''‘पार्वती परिणय’''' भी बाण द्वारा रचित माना जाता है। परन्तु वस्तुतः इसका लेखक कोई पश्चाद्वर्ती वामन भट्टबाण है।
 
== शैली ==
एक विद्वान आलोचक के अनुसार विशेषणबहुल वाक्य रचना में, श्लेषमय अर्थों में तथा शब्दों के अप्रयुक्त अर्थों के
प्रयोग में ही बाण का वैशिष्ट्य है। उनके गद्य में लालित्य है और लम्बे समासों में बल प्रदान करने की शक्ति है। वे [[श्लेष]], [[उपमा]], [[रूपक]], उत्प्रेक्षा, सहोक्ति, परिसंख्या और विशेषतः [[विरोधाभास]] का बहुलता से प्रयोग करते है। जैसा कि अच्छोदसरोवर के उल्लेख से स्पष्ट है उनका प्रकृति वर्णन तथा अन्य प्रकार के वर्णन करने पर अधिकार है। कादम्बरी में शुकनास तथा हर्षचरितम् के प्रभाकरवर्धन की शिक्षाओं से बाण का मानव प्रकृति का गहन अध्ययन सुस्पष्ट है।
 
बाण की शब्दावली विस्तृत है और प्रायः वह एक शब्द के सभी [[पर्यायवाची|पर्यायों]] का प्रयोग करते हैं। उन्होंने ‘ध्वनि’ के लिए 19 शब्दों का प्रयोग किया है। इसी प्रकार विशेषणों के प्रयोग में बाण निष्णात हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि विशेषणों का अन्त नहीं होगा। उनके वर्णन जैसे [[उज्जयिनी]] तथा दिवाकर मित्र के आश्रम का वर्णन विस्तृत होने पर भी निर्दोष, वैविध्यपूर्ण एवं प्रभावशाली हैं।
 
बाणभट्ट का मानव प्रकृति का ज्ञान आश्चर्यजनक है। उसका कोई भी तत्त्व अनुद्घाटित नहीं रहा। यह ठीक ही कहा