"खेल सिद्धांत": अवतरणों में अंतर

वर्तनी/व्याकरण सुधार
पंक्ति 42:
इस फॉर्म का प्रारम्भिक स्रोत [[वॉन न्युमन्न]] और [[मॉर्गनस्टर्न]] की आधारभूत पुस्तक से प्राप्त होता है। उन्होंने कोअलिशनल (गठबंधनीय) [[नॉर्मल फॉर्म गेमों]] का अध्ययन करते समय यह माना (कल्पना किया) कि जब एक गठबंधन <math>C</math>C बनता है, यह संपूरक गठबंधन (<math>N\setminus C</math>N\setminus C) के विरूद्ध खेलता है जैसे कि वो 2 खिलाड़ियों वाला गेम खेल रहे हों। <math>C</math>C का साम्यावस्था लाभ ''[[कैरेक्टरिस्टिक]]'' होता है। अब नॉर्मल फॉर्म गेमों से कोअलिशनल (गठबंधनीय) मान निकालने के लिए विभिन्न मॉडल हैं, पर कैरेक्टरिस्टिक फॉर्म के सारे गेम नॉर्मल फॉर्म गेमों से व्युत्त्पन्न नहीं किए जा सकते।
 
नियमानुसार, एक कैरेक्टरिस्टिक फंक्शन फॉर्म गेम (TU-गेम नाम से भी ज्ञात) एक पेयर <math>(N,v)</math> के रूप में निरूपित किया जाता है जहांजहाँ <math> N</math> खिलाड़ियों के एक सेट को व्यक्त करता है और <math>v:2^N\longrightarrow\mathbb{R}</math> एक कैरेक्टरिस्टिक फंक्शन होता है।
 
कैरेक्टरिस्टिक फंक्शन फॉर्म बिना [[हस्तांतरणीय उपयोगिता]] के अनुमार्गन वाले गेमों में सामान्यीकृत किया गया है।
पंक्ति 108:
ऐसे ही एक तथ्य को जैविक परोपकारिता कहते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें एक जीव ऐसी पद्धति से कार्य करता हुआ दिखाई देता है, जो अन्य जीवों के लिये लाभदायक और स्वयं उसके लिये अहितकर होती है। यह परोपकारिता की पारंपरिक धारणा से भिन्न है, क्योंकि ऐसे कार्य सचेतन नहीं होते, बल्कि सकल योग्यता को बढ़ाने के लिये विकासवादी अनुकूलन के रूप में दिखाई देते हैं। इसके उदाहरण पिशाच चमगादड़ों, जो रात के शिकार से हासिल किये गये खून को उगलकर अपने समूह के उन सदस्यों को दे देते हैं, जो शिकार कर पाने में असफल रहे हों, से लेकर कर्मी मधुमक्खियों, जो आजीवन रानी मधुमक्खी की सेवा करती हैं और कभी मिलन नहीं करतीं, से लेकर वर्वेट बंदरों, जो समूह के सदस्यों को शिकारी के आगमन की चेतावनी देते हैं, भले ही इससे उनका स्वयं का जीवन ख़तरे में पड़ जाये, तक में पाये जा सकते हैं।<ref name="qudzyh">[http://www.seop.leeds.ac.uk/entries/altruism-biological/ जैव परोपकारिता (स्टैनफोर्ड इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ फिलॉस्फी)]</ref> इनमें से सभी कार्य एक समूह की सकल योग्यता को बढ़ाते हैं, लेकिन ऐसा करने के लिये एक जीव को अपनी जान गंवानी पड़ती है।
 
विकासवादी गेम थ्योरी इस परोपकारिता की व्याख्या [[संबंधियों के चयन]] के विचार के रूप में करता है। परोपकारी जीव उन प्राणियों के बीच भेद-भाव करते हैं, जिनकी वे सहायता करते हैं और वे अपने संबंधियों का पक्ष लेते हैं। हैमिल्टन का नियम इस चयन के पीछे विकासवादी तर्क की व्याख्या सूत्र c<b*r के द्वारा करता है, जहांजहाँ परोपकारी को लगनेवाली लागेम थ्योरी (c) प्राप्तकर्ता को मिलनेवाले लाभ (b) व संबद्धता के गुणांक (r) के गुणनफल से कम होनी चाहिये। दो जीवों के बीच निकटता जितनी अधिक होगी, परोपकारिता की घटनायें भी उतनी ही बढ़ जाएंगी क्योंकि उनके अनेक जिनेटिक तत्व (alleles) समान होंगे। इसका अर्थ यह है कि परोपकारी जीव, इस बात को सुनिश्चित करते हुए कि उसके निकट संबंधियों के जेनेटिक तत्व आगे प्रसारित होते हैं, (उसकी संतान के द्वारा), स्वयं की संतान को जन्म देने के विकल्प का त्याग कर सकता है क्योंकि समान संख्या में जेनेटिक तत्व आगे प्रसारित हुए हैं। उदाहरणार्थ, किसी सहोदर की सहायता करने का गुणांक 1/2 होता है क्योंकि जीव अपने सहोदर की संतान में 1/2 जेनेटिक तत्व साझा करता है। इस बात को सुनिश्चित कर लेना कि किसी सहोदर की संतानों की पर्याप्त संख्या वयस्क होने तक जीवित रहती है, परोपकारी व्यक्ति के लिये स्वयं की संतान उत्पन्न करने की आवश्यकता को समाप्त कर देता है।<ref name="qudzyh" /> गुणांक मान खेल के मैदान के दायरे पर अत्यधिक आश्रित होते हैं: उदाहरणार्थ, जिनके प्रति पक्षपात करना है, उनके चुनाव में यदि सभी जेनेटिक जीवित वस्तुएं, केवल संबंधी नहीं, शामिल हों, तो हम मानते हैं कि सभी मनुष्यों के बीच अंतर खेल के मैदान में विविधता का लगभग 1% होता है, जो गुणांक एक छोटे क्षेत्र में 1/2 था, वह 0.995 हो जाता है। इसी प्रकार यदि इस पर विचार किया जाये कि जेनेटिक स्वरूप की किसी सूचना के अतिरिक्त कोई अन्य सूचना (उदा. एपिजेनेटिक्स, धर्म, विज्ञान आदि) समय के साथ बनी रहती है, तो खेल का मैदान और बड़ा व भेद-भाव छोटे हो जाते हैं।
 
=== कंप्यूटर विज्ञान और तर्क ===