"जाली नोट (1960 फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर

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दिनेश ([[देव आनंद]]) आपराधिक जांच विभाग (C I D) में इन्सपेक्टर के ओहदे में काम कर रहा है। उसे नक़ली नोटों का प्रचलन बंद करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है। जांच के दौरान सुन्दरदास नाम का व्यक्ति हवाई अड्डे से जाली नोटों से भरा बैग लेकर भाग रहा होता है और दिनेश उसके पीछे भागता है लेकिन दुर्भाग्यवश ट्रेन के नीचे आ जाने से सुन्दरदास मारा जाता है। यहीं उसकी मुलाक़ात रेनु नाम की लड़की ([[मधुबाला]]) से होती है जो एक अख़बार में रिपोर्टर है। <br />
वह एक सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल राशिद के रूप में अपने कांस्टेबल पाण्डू ([[ओम प्रकाश]]) जेल में बंद बनवारीलाल से कुछ जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करता है लेकिन कोई फायदा नहीं होता है। जेल में वे दोनों बनवारीलाल को एक पण्डित को एक किताब देते हुए देख लेते हैं और उस पण्डित का पीछा करते हुए होटल शंग्री-ला में जा पहुँचते हैं जहाँ उनकी मुलाक़ात लिली ([[हेलन]]) से होती है जो होटल में एक नाचने वाली है। अपनी माँ से उसे पता चलता है कि दिनेश [[मुंबई]] में अपने मां-बाप के साथ एक मध्यम वर्ग की जीवन शैली व्यतीत करता था। उसके पाँचवे जन्मदिन पर उसका बाप उसे एक गले की चेन भेंट करता है कि तभी उनके घर पुलिस आ जाती है और उसका बाप कभी न वापस आने के लिए उन्हें छोड़कर फ़रार हो गया था।<br />
दिनेश कुंवर विजय बहादुर के भेस में होटल शंग्री-ला में एक कमरा किराए में लेता है। एक हत्या की तफ़्तीश के सिलसिले में रेनु भी बीना नाम से उसी होटल में रहने आती है और दोनों में आपस में प्यार होने लगता है। होटल का मॅनेजर दिनेश की मुलाक़ात मनोहर ([[मदन पुरी]]) तथा कई अन्य अपराधियों से कराता है। दिनेश रेनु के सामने कुछ ऐसी हरकतें करता है कि रेनु को उस पर शक़ होने लगता है और दिनेश रेनु के द्वारा अपने आप को गिरफ्तार करवा लेता है और जेल में बनवारीलाल की ही कोठरी में बंद करवा लेता है। दोनों दिनेश के बनाए हुए प्लान के मुताबिक़ जेल तोड़कर भागने में कामयाब हो जाते हैं और दिनेश बनवारीलाल से कहकर बनवारीलाल के ठिकाने में मनोहर और बाकी के गिरोह को भी बुलवा लेता है। इसी बीच रेनु का पर्दाफ़ाश हो जाता है और मनोहर उसे अगवा करके उसी ठिकाने में ले आता है। दिनेश रेनु को सब सच बता देता है। दिनेश का भी पर्दाफ़ाश हो जाता है और उसको पता चलता है कि मोगरा डाक़ूटापू के किले में ही दरअसल मिस्टरइस मलिकगिरोह का नकली नोट छापने का कारख़ाना है जोऔर किराय बहादुर ही नक़ली नोट बनाने वाले गिरोह का सरगना है। मिस्टरराय मलिकबहादुर अपने साथियों को दिनेश को एक कमरे में बंद करके आग लगाने का आदेश देता है। मिस्टरराय मलिकबहादुर से झड़प के दौरान दिनेश की चेन मिस्टर मलिक के हाथ में आ जाती है। चेन देखकर मिस्टरराय मलिकबहादुर को याद आ जाता है कि दिनेश उसी का बेटा है। वह दिनेश को बचाने के लिए जाता है लेकिन तभी बनवारीलाल और अन्य लोग वहाँ आ जाते हैं। दिनेश को बचाने के चक्कर में एक गोली मिस्टरराय मलिकबहादुर को लग जाती है और अस्पताल में उसकी मृत्यु हो जाती है। इसी बीच गिरोह के सारे सदस्य पुलिस द्वारा पकड़ लिए जाते हैं।
 
== चरित्र ==