"बृहत्कथा": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: अनावश्यक अल्पविराम (,) हटाया। |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1:
'''बृहत्कथा''' [[गुणाढ्य]] द्वारा [[पैशाची भाषा]] में रचित काव्य है। 'वृहत्कथा' का शाब्दिक अर्थ है - 'लम्बी कथा
▲'''बृहत्कथा''' [[गुणाढ्य]] द्वारा [[पैशाची भाषा]] में रचित काव्य है। 'वृहत्कथा' का शाब्दिक अर्थ है - 'लम्बी कथा '। इसमें एक लाख श्लोक हैं। इसमें पाण्डववंश के वत्सराज के पुत्र नरवाहनदत्त का चरित (कथा) वर्णित है। इसका मूल रूप प्राप्त नहीं होता किन्तु यह [[कथासरित्सागर]], [[बृहत्कथामंजरी]] तथा [[बृहत्कथाश्लोकसंग्रहः]] आदि [[संस्कृत]] ग्रंथों में रूपान्तरित रूप में विद्यमान है। [[पंचतंत्र]], [[हितोपदेश]], [[वेतालपंचविंशति]] आदि कथाएँ सम्भवतः इसी से ली गयी हैं।
== परिचय ==
मूल बृहत्कथा [[वररुचि]] ने [[काणभूति]] से कही और काणभूति ने [[गुणाढय]] से। इससे व्यक्ति होता है कि यह कथा वररुचि के मस्तिष्क का आविष्कार है, जो संभवतः उसने संक्षिप्त रूप से संस्कृति में कही थी; क्योंकि उदयन की कथा उसकी जन्मभूमि में किवदन्तियों के रूप में प्रचलित रही होगी। उसी मूल उपाख्यान को क्रमशः काणभूति और गुणाढय ने प्राकृत पैशाची भाषाओं में विस्तावूर्वक लिखा। महाकवि [[क्षेमेन्द्र]] ने उसे बृहत्कथा-मंजरी नाम से, संक्षिप्त रूप से, संस्कृत में लिखा। फिर काश्मीरराज [[अनंतदेव]] के राज्य-काल में कथा-सरित्सागर की रचना हुई। इस उपाख्यान को भारतीयों ने बहुत आदर दिया और वत्सराज उदयन कई नाटकों और उपाख्यानों में नायक बनाए गए। [[स्वप्न-वासवदत्ता]], [[प्रतिज्ञायौगंधरायण]] और [[रत्नावली]] में इन्हीं का वर्णन है। [[हर्षचरित]] में लिखा
वररुचि ने इस उपाख्यान—माला को सम्भवतः 350 ई. पूर्व लिखा होगा। फिर भी [[सातवाहन]] नामक [[आंध्र प्रदेश|आंध्र]]-नरपति के राजपंडित गुणाढय ने इसे बृहत्कथा नाम से ईसा की पहली शताब्दी में लिखा। इस कथा का नायक नरवाहनदत्त इसी उदयन का पुत्र था। == इन्हें भी देखें ==
Line 10 ⟶ 11:
== सन्दर्भ ==
<references />
|