"मुहावरा": अवतरणों में अंतर

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मुहावरे भाषा की नींव के पत्थर हैं जिस पर उसका भव्य भवन आज तक रुका हुआ है और मुहावरे ही उसकी टूट-फूट को ठीक करते हुए गर्मी, सर्दी और बरसात के प्रकोप से अब तक उसकी रक्षा करते चले आ रहे हैं। मुहावरे भाषा को सुदृढ़, गतिशील और रुचिकर बनाते हैं। उनके प्रयोग से भाषा में चित्रमयता आती है जैसे-अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना, दाँतों तले उँगली दबाना, रंगा सियार होना आदि।
 
== शब्दों की तीन शक्तियाँ ==
शब्दों की तीन शक्तियाँ होती हैं : अभिधा, लक्षणा, व्यंजना
 
'''अभिधा''' : जब किसी शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग होता है तब वहाँ उसकी अभिधा शक्ति होती है, जैसे 'सिर पर चढ़ाना' का अर्थ किसी चीज को किसी स्थान से उठाकर सिर पर रखना होगा।
 
'''लक्षणा''' : जब शब्द का सामान्य अर्थ में प्रयोग न करते हुए
किसी विशेष प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है, यह
जिस शक्ति के द्वारा होता है उसे लक्षणा कहते हैं। लक्षणा से
'सिर पर चढ़ने' का अर्थ आदर देना होगा। उदाहरण के लिए
'अँगारों पर लोटना', 'आँख मारना', 'आँखों में रात काटना',
'आग से खेलना', 'खून चूसना', 'ठहाका लगाना', 'शेर
बनना' आदि में लक्षणा शक्ति का प्रयोग हुआ है, इसीलिए वे
मुहावरे हैं।
 
'''व्यंजना''' : जब अभिधा और लक्षणा अपना काम खत्मकर लेती
हैं, तब जिस शक्ति से शब्द-समूहों या वाक्यों के किसी अर्थ की
सूचना मिलती है उसे 'व्यंजना' कहते हैं। व्यंजना से निकले
अधिकांश अर्थों को व्यंग्यार्थ कहते हैं। 'सिर पर चढ़ाना' मुहावरे का
व्यंग्यार्थ न तो 'सिर' पर निर्भर करता है न 'चढ़ाने' पर वरन् पूरे
मुहावरे का अर्थ होता है उच्छृंखल, अनुशासनहीन अथवा ढीठ
बनाना।
 
== मुहावरों का निर्माण ==
=== लक्षणा का प्रयोग होने से ===
 
== शब्दों की तीन शक्तियाँशक्तियां होती हैं : ==
शब्दों की तीन शक्तियां होती हैं : (क) अभिधा, (ख) लक्षणा और (ग) व्यंजना। जब किसी शब्द या शब्द-समूह का सामान्य अर्थ में प्रयोग होता है, तब वहाँ उसकी अभिधा शक्ति होती है। अभिधा द्वारा अभिव्यक्ति अर्थ को अभिधेयार्थ या मुख्यार्थ कहते हैं; जैसे ‘सिर पर चढ़ना’ का अर्थ किसी चीज को किसी स्थान से उठा कर सिर पर रखना होगा। परन्तु जब मुख्यार्थ का बोध न हो और रूढ़ि या प्रसिद्ध के कारण अथवा किसी विशेष प्रयोजन को सूचित करने के लिए, मुख्यार्थ से संबद्ध किसी अन्य अर्थ का ज्ञान हो तब जिस शक्ति के द्वारा ऐसा होता है उसे लक्षणा कहते हैं। यह शक्ति ‘अर्पित’ अर्थात् कल्पित होती है। इसीलिए ‘साहित्य-दर्पण’ में विश्वनाथ ने लिखा है :
*(क) अभिधा,
*(ख) लक्षणा, और
*(ग) व्यंजना।
शब्दों की तीन शक्तियां होती हैं : (क) अभिधा, (ख) लक्षणा और (ग) व्यंजना। जब किसी शब्द या शब्द-समूह का सामान्य अर्थ में प्रयोग होता है, तब वहाँ उसकी '''अभिधा''' शक्ति होती है। अभिधा द्वारा अभिव्यक्ति अर्थ को अभिधेयार्थ या मुख्यार्थ कहते हैं; जैसे ‘सिर पर चढ़ना’ का अर्थ किसी चीज को किसी स्थान से उठा कर सिर पर रखना होगा। परन्तु जब मुख्यार्थ का बोध न हो और रूढ़ि या प्रसिद्ध के कारण अथवा किसी विशेष प्रयोजन को सूचित करने के लिए, मुख्यार्थ से संबद्ध किसी अन्य अर्थ का ज्ञान हो तब जिस शक्ति के द्वारा ऐसा होता है उसे लक्षणा कहते हैं। यह शक्ति ‘अर्पित’ अर्थात् कल्पित होती है। इसीलिए ‘साहित्य-दर्पण’‘[[साहित्यदर्पण]]’ में [[विश्वनाथ]] ने लिखा है :
 
:'''मुख्यार्थ बाधे तद्युक्तो यथान्योऽर्थ प्रतीयते।'''
:'''रूढ़े प्रयोजनाद्वासो लक्षणा शक्तिरर्पिता।।'''
 
'''लक्षणा''' से ‘सिर पर चढ़ने’ का अर्थ आदर देना होगा। मम्मट ने भी ‘काव्य प्रकाश’ में और अधिक बोधगम्य शब्दों में उनके अभिमत का समर्थन किया है। उदाहरणार्थ, ‘‘अंगारों पर लोटना’, ‘आँख मारना’, ‘आँखों में रात काटना’, ‘आग से खेलना’, ‘आसमान पर दीया जलाना’, ‘दूध-घी की नदियां बहाना’, ‘खून चूसना’, ‘चैन की वन्शीबंशी बजाना’, ‘ठहाका लगाना’, ‘लम्बी बांह होना’, ‘विजय का डंका बजाना’ और शेर बनना’ आदि में लक्षणा शक्ति का प्रयोग हुआ है। इसलिए वे मुहावरे हैं। परन्तु इस सन्दर्भ से यह द्रष्टव्य है कि लक्षणा के समस्त उदाहरण मुहावरे के अन्तर्गत नहीं आ सकते। लक्षणा के केवल वही उदाहरण मुहावरों के अन्तर्गत आ सकते हैं जो चिर अभ्यास के कारण रूढ़ा या प्रसिद्ध हो गए हैं।
 
=== व्यंजना का प्रयोग होने से ===
 
जब अभिधा और लक्षणा अपना काम करके विरत हो जाती हैं तब जिस शक्ति से शब्द-समूहों या वाक्यों के किसी अर्थ की सूचना मिलती है उसे ‘व्यंजना’ कहते हैं। मुहावरों में जो व्यंग्यार्थ रहता है, वह किसी एक शब्द के अर्थ के कारण नहीं बल्कि सब शब्दों के श्रृंखलित अर्थों के कारण होता है, अथवा यह कहें कि पूरे मुहावरे के अर्थ में रहता है। इस प्रकार ‘सिर पर चढ़ना’ मुहावरे का व्यंग्यार्थ न तो ‘सिर’ पर निर्भर करता है न ‘चढ़ाने’ पर वरन पूरे मुहावरे का अर्थ होता है ‘उच्छृंखल, अनुशासनहीन अथवा ढीठ बनाना।’ यह व्यंग्यार्थ अभिधेयार्थ तथा लक्षणा अभिव्यक्ति अर्थ से भिन्न होता है।
 
=== अलंकारों का प्रयोग ===
 
अनेक मुहावरे में अलंकारों का प्रयोग हुआ रहता है। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रत्येक मुहावरा अलंकार होता है अथवा प्रत्येक अलंकारयुक्त वाक्यांश मुहावरा होता है। नीचे कुछ मुहावरे दिए जाते हैं जिनमें अलंकारों का प्रयोग हुआ है :