"पंजाबी भाषा": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
पंजाबी भाषा पंजाब की आधुनिक भारतीय आर्यभाषा है। ग्रियर्सन ने (लिंग्विस्टिक सर्वे भाग 1,8 तथा 9 में) पूर्वी पंजाबी को "पंजाबी" और पश्चिमी पंजाबी को "लहँब्रा" कहा है। वास्तव में पूर्वी पंजाबी और पश्चिमी पंजाबी पंजाबी की दो उपभाषाएँ है जैसे पूर्वी हिंदी और पश्चिमी हिंदी हिंदी की।{{cn}} यह अलग बात है कि पाकिस्तान बन जाने के कारण दोनों भाषाओं का विकास इतनी भिन्न दिशाओं में हो रहा है कि इनके अलग अलग भाषाएँ हो जाने की संभावना है। पंजाबी की एक तीसरी उपभाषा "[[डोगरी]]" है जो [[जम्मू-कश्मीर]] के दक्षिण-पूर्वी प्रदेश और [[काँगड़ा]] के आसपास बोली जाती है।{{cn}} साहित्य में मध्यकाल में [[लहँदी]] का मुलतानी रूप और आधुनिक काल में [[अमृतसर]] और उसके आसपास प्रचलित पूर्वी पंजाबी का माझी रूप व्यवहृत होता रहा है। अमृतसर [[सिख|सिक्खों]] का प्रधान धार्मिक तीर्थ और केंद्र है। ईसाई मिशनरियों ने लुधियाना-पटियाला की [[मलबई बोली]] को टंकसाली बनाने का प्रयत्न किया। उसका परिणाम इतना तो हुआ है कि मलवई का प्रभाव सर्वत्र व्याप्त है, किंतु आदर्श साहित्यिक भाषा के रूप में माझी ही सर्वमान्य रही है। पश्चिमी पंजाब की बोलियों में मुलतानी, डेरावाली, अवाणकारी और पोठोहारी, एव पूर्वी पंजाबी की बोलियों में पहाड़ी, माझी, दूआबी, पुआधी, मलवई और राठी प्रसिद्ध हैं। पश्चिमी पंजाबी और पूर्वी पंजाबी की सीमारेखा रावी नदी मानी गई है।
 
"पंजाबी" नाम बहुत पुराना नहीं है। इस प्रदेश का प्राचीन नाम 'सप्तसिंधु' और फिर 'पंचनद' का ही [[अनुवाद]] रूप में "पंजाब" बताया जाता है। भाषा के लिए "पंजाबी" शब्द 1670 ई. में [[हाफिज़ बरखुदार]] (कवि) ने पहली बार प्रयुक्त किया; किंतु इसका साधारण नाम बाद में भी "[[हिंदी]]" या "[[हिंदवी]]" रहा है, यहाँ तक कि [[रणजीतसिंह]] का दरबारी कवि [[हाशिम]] महाराज के सामने अपनी भाषा (पंजाबी) को हिंदी कहता है।{{cn}} वस्तुत: 19वीं सदी के अंत तक हिंदू और सिक्खों की भाषा का झुकाव [[ब्रजभाषा]] की ओर रहा है। यह अवश्य है कि [[मुसलमान]] जो इस देश की किसी भी भाषा से परिचित नहीं थे, लोकभाषा और विशेषत: लहँदी का प्रयोग करते रहे हैं। मुसलमान कवियों की भाषा सदा अरबी-फारसी लहँदी-मिश्रित पंजाबी रही है।
 
पिछले वर्षों में साहित्यिक पंजाबी ने नए मोड़ लिए हैं। 20वीं सदी के पूर्वार्ध में पंजाबी ने फारसी और अँगरेजी शब्दावली और प्रयोगों का ग्रहण किया, स्वतंत्रताप्राप्तिस्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हिंदी के राष्ट्रभाषाराजभाषा हो जाने के कारण अब इसमें अधिकाधिक संस्कृत हिंदी के शब्द आ रहे हैं।
 
पंजाबी और [[हिंदी]] [[खड़ी बोली]] में बहुत अंतर है। पुंलिंग एकवन शब्दों की आकारांत रचना और इनसे विशेषण और क्रिया का सामंजस्य, संज्ञाओं और सर्वनामों के प्रत्यक्ष और तिर्यक् रूप, क्रियाओं कालादि भेद से जुड़नेवाले प्रत्यय दोनों भाषाओं में प्राय: एक से हैं। पंजाबी के कारकचिह्र इस प्रकार हैं - ने; नूँ (हिं. को); थों या ओं (हिं से); दा, दे, दी (हिं. का, के, की); विच (हिं. में)। पुंलिंग और स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन तिर्यक् रूप - आँ होता है, बाताँ, कुड़ियाँ, मुड्याँ, पथराँ, साधुआँ। यह स्वरसामंजस्य संज्ञा, विशेषण और क्रिया में बराबर बना रहता है, जैसे छोट्याँ मूंड्याँ, द्याँ माप्याँ नूं (हिं. छोटे लड़कों के माँ बाप को), छटियाँ कुड़ियाँ जाँ दियाँ हैन (हिं. छोटी लड़कियाँ जाती हैं)।