नया पृष्ठ: रूसो ने बालकों की तीन अवस्थाओं की कल्पना की थी : शैशवावस्था, जो ए...
 
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एक साल का बालक अपने और बाहरी वातावरण में भेद करना सीख लेता है। वह अपना हाथ पैर और सिर आवश्यकता के अनुसार इधर उधर चलाता है। वह खड़े होने की चेष्टा करता है और यदि कोई हाथ पकड़कर उसे चलाए, तो वह चलने की भी चेष्टा करता है। बालक के अंदर हर एक पदार्थ को छूने की, उठाने की एवं मुँह तक ले जाने की बाध्य प्रेरणा रहती है। वह स्वावलंबी बनने की चेष्टा करता है। वह स्वार्थी रहता है। यदि कोई चीज उसे दी जाए, तो वह प्रसन्नता प्रदर्शित करता है और यदि उसे छीन लिया जाए तो वह रोने लगता है। एक और दो वर्ष के बीच बच्चा भाषा का ज्ञान प्राप्त करना प्रारंभ कर देता है। वह एक दो शब्द भी सीख जाता है।
 
==दो वर्षीय बालक==
दो वर्षीय बालक - दो वर्ष का बालक अपने वातावरण में सदा खोज करता रहता है। वह इधर उधर दौड़ता, कूदता-फाँदता, गिरता रहता है। वह सीढ़ियों पर चढ़ने की चेष्टा करता है। सीढ़ियाँ चढ़ लेता है, लेकिन उतरने में लुढ़क जाता है। वह सब कप से दूध पी लेता है और चम्मच को काम में ला सकता है। जब उसे कपड़े पहनाए जाते हैं, तब वह कपड़े पहनाने में बड़ों की मदद करता है। तस्वीर देखकर वह वस्तुओं का नाम बताता है और दो चार शब्द की कविता कह लेता है। दो से चार वर्ष की अवस्था में बच्चे का शब्दकोश 300 शब्दों का हो जाता है। तीन वर्ष तक का बालक अपने आपके बारे में संज्ञा शब्द से ही बोध करता है, सर्वनाम से नहीं। वह अपना नाम जानता है। वह यह भी बता सकता है कि वह लड़का है या लड़की। शब्दों का उच्चारण बड़ा ही फूहर रहता है। इन बच्चों की शब्दावली विलक्षण प्रकार की होती है। जिन शब्दों का वे उच्चारण नहीं कर सकते, उनके बदले में वे दूसरे शब्द काम में ले आते हैं। पानी के लिए मम्मा कहते हैं, चिड़िया को चू चू और कुत्ते को तू तू कहते हैं। उन्हें अपने भावों को सँभालने की शक्ति नहीं रहती। वे सभी चीजें अपने ही लिए चाहते हैं। यदि कोई व्यक्ति उनसे कोई वस्तु छीन ले, तो वे बहुत ही क्रुद्ध हो जाते हैं। दो से पाँच वर्ष का शिशु सभी बातें सीखता है। वह 10 घंटे प्रति दिन चलता रहता है। ऐसा बालक सामाजिकता प्रदर्शित नहीं करता और बच्चों में रुचि न दिखाकर बड़ों में रुचि दिखाता है। बच्चों के साथ खेलने में वह सहयोग नहीं दिखाता, वरन् उनका अनुकरण मात्र करता है। वह व्यक्तियों में रुचि न रखकर वस्तुओं में रुचि रखता है और अच्छी लगनेवाली वस्तु दूसरों से छीन लेता है।
 
इस उम्र के बच्चों की भावात्मक अनुभूतियाँ पर्याप्त रहती हैं। वह दु:ख पाने पर तेजी से रोता है और कभी कभी बड़ा ही तूफान मचाता है, जैसे पैर पटकना और सिर पीटना। उसमें दूसरों के भावों को समझने की शक्ति नहीं रहती और न उनके प्रति वह सहानुभूति ही दिखाता हैं। यदि वह किसी बच्चे को रोते हुए देखता है, तो वह परेशानी की मुद्रा में उसे देखता रहता है, स्वयं नहीं रोने लगता। शिशु के भय बहुत थोड़े होते हैं। तीक्ष्ण आवाज तथाा नीचे गिरने से वह डरता है। इसी प्रकार आगंतुकों से और नई चीजों से वह डरता है, परंतु वह बहुत से डरावने जानवरों से नहीं डरता। यदि उसे सर्प से डरवाया न जाए, तो वह उसे पकड़ने दौड़ेगा। शिशु को अनेक डर कुशिक्षा के द्वारा प्राप्त होते हैं।
 
==छह वर्ष का बालक ==
छह वर्ष का बालक - जन्म से लेकर पाँच वर्ष की अवस्था शैशव अवस्था कही जाती है। छह वर्ष की अवस्था से ही बाल्यकाल माना गया है। बाल्यकाल स्कूल जाने की अवस्था है। यह काल 10, 11 वर्ष तक माना गया है। बाल्यकाल में बालक अपने शरीर की परवाह ठीक प्रकार से कर सकता है और दूसरों के साथ ठीक व्यवहार कर लेता है। वह चलते चलते अचानक गिर नहीं पड़ता। ऊँची जगहों पर चढ़ जाता है और वहाँ से उतर आता है। इस काल में बालकों को कूदना, फाँदना, दौड़ना, सभी बातों में मजा आता है। जहाँ शिशु अपनी उँगुलियों का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता, वहाँ बालक उनसे बहुत कुछ काम ले सकता है। वह अपने कपड़े, जूते, स्वयं पहन सकता है। बालों में कंघी कर सकता है और स्वयं स्नान कर सकता है। इन सब कामों को वह बड़े लोगों से सदा सीखता रहता है।
 
पाँच वर्ष के शिशु में खेलने की प्रवृत्ति होती है। वह अनेक प्रकार की वस्तुएँ खेल के लिए चाहता है। ऐसे बच्चों के लिए मैकिनो, और प्लैस्टिसीन अथवा गीली मिट्टी बहुत उपयोगी होती है। वह अनेक प्रकार की चित्रकारी करता है। अब वह जो चित्र बनाता है, वे प्राय: सार्थक होते हैं।