"ज्ञानमीमांसा": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति 25:
जब हम किसी धारणा को सुनते हैं या उसका चिंतन करते हैं तो उस सबंध में हमारी वृत्ति इस प्रकार की होती है -
* हम उसे सत्य स्वीकार करते
* सत्य और असत्य में निश्चय न कर सकें, तो स्वीकृति अस्वीकृति दोनों को विराम में रखते हैं। यह संदेह की वृत्ति है।
* उपन्यास पढ़ते हुए हम अपने आपको कल्पना के जगत् में पाते हैं और जो कुछ कहा जाता है उसे हम उस समय के लिये तथ्य मान लेते हैं। यह "काल्पनिक स्वीकृति" है।
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