"लिंग": अवतरणों में अंतर

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== लिंग का विकास ==
[[जनन]] का इतिहास देखा जाए तो ज्ञात होगा कि संसार के आदि जीवों की उत्पत्ति अलैंगिक (asexual) ढंग परसे हुई; जैसे [[प्रोटोज़ोआ]] (Protozoa) तथा प्रोटोफ़ाइटा (Protophyta) के अनेक रूपों में नर तथा मादा द्वारा मिलकर सृष्टि नहीं हुई। इन जीवों की उत्पत्ति शरीर विखंडन (fission), मुकुलन (budding) तथा बीजाणुनिर्माणबीजाणु निर्माण (spore formation) द्वारा हुई।
विकास के दूसरे चरण में नर तथा मादा के अत्यंत सूक्ष्म लक्षण प्रकट होने लगे। प्रोटोज़ोआ श्रेणी के कुछ अन्य जीव संयुग्मन (conjugation) द्वारा संतानोत्पादन करने लगे। इसमें एक ही प्रकार के दो जीव आपस में मिलकर एकाकार होने पर फिर विभाजित होकर अनेक संख्या में उत्पन्न होने लगे, जैसे [[वॉल्वॉक्स]] (Volvox) के निवहों (colonies) में देखा जाता है।
इसके पश्चात् लिंग विकास की तीसरी अवस्था आई, जिसमें एक ही प्राणी के अंदर नर तथा मादा दोनों जननांग विकसित हुए, जैसे, [[केंचुआ]] (earth-worm), [[जोंक]] (leech) आदि में।
लिंग विकास की अंतिम अवस्था में नर तथा मादा [[जननांग]] सर्वथा पृथक् हो गए, जैसा कुत्तों, बंदरों, गाय, बकरियों तथा मनुष्यों आदि में देखा जाता है।
प्राथमिक लैंगिक लक्षणों के अंतर्गत नर में वृषण (testes) तथा मादा में अंडाशय (ovaries) आते हैं। गौण लैंगिक लक्षणों में उन अंगों तथा लक्षणों की गणना की जाती है, जिनसे नर और मादा को उनकी [[आकारिकी]] (morphology) द्वारा ही पृथक् पहचान लिया जाता है, जैसे कुछ कशेरुकी (vertebrate) जंतुओं में मैथुनांगों (copulatory organs) को स्पष्टत: पृथक् देखा जा सकता है। नर प्राणी में [[शिश्न]] (penis) तथा मादा में [[भग]] (vulva) [[मैथुनांग]] होते हैं। कतिपय अन्य जीवों में गौण लैंगिक लक्षणों के अंतर्गत [[मूँछ]], [[दाढ़ी]], सुंदर तथा भड़कीले पंख, सिर की कलगी, [[सींग]], [[स्तन]], प्रभुत्व जमाना, मधुर स्वर, मातृत्व की इच्छा, आक्रमण क्षमता आदि आते हैं। इसी प्रकार वनस्पतिजगत्वनस्पति जगत में भी फूलों की सुगंध, रंग, भड़कीलापन, फलोत्पादन आदि लैंगिक लक्षण होते हैं।
 
== लिंग का निर्धारण ==
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(3) निषेचन के बाद।
 
किंतु, समान्यतयासामान्यतः लिंग का निर्धारण [[निषेचन]] के ही समय होना माना जाता है। नर के शुक्राणु (sperm) का मादा के अंडाशय से संयुक्त होना निषेचन कहा जाता है। वातावरण में निषेचित अंडे, या [[युग्मनज]] (fertilized egg or Zygote), की क्रमश: वृद्धि होती रहती है।
 
नर तथा मादा का निर्धारण कुछ जटिल प्रक्रियाओं द्वारा होता है। वैज्ञानिकों ने इस संबंध में कई सिद्धांत उपस्थित किए हैं। इन सिद्धांतों में निम्नलिखित दो सिद्धांत अपेक्षाकृत अधिक प्रसिद्ध हैं : (1) गुणसूत्र, या क्रोमोसोम सिद्धांत तथा (2) हॉर्मोन सिद्धांत।
 
=== क्रोमोसोम सिद्धांत ===
[[आनुवंशिकी|आनुवंशिक विज्ञान]] (Genetics) के अनुसार प्राणियों के शरीर में जो कोशिकाएँ (cells) पाई जाती हैं, उनमें कुछ ऐसी रचनाएँ होती है जो विशेष प्रकार के रंजकों और अभिरंजकों (dyes and stains) को ग्रहण कर लेती हैं, इन रचनाओं को [[क्रोमोसोम]] कहा जाता है। आनुवंशिक विज्ञान में विशेषकर युग्मकों, या लिंग कोशिकाओं (gametes or sex-cells), में पाए जानेवालेजाने वाले क्रोमोसोमों पर ही विचार किया जाता हे। भिन्न-भिन्न प्राणियों की जनन कोशिकाओं में क्रोमोसोमों की संख्या इस प्रकार पाई गई हैं :
 
प्राणी का नाम --- क्रोमोसोमों की संख्या
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ऊँट (Camel) --- 70
 
सन् 1901-2 में मैक्क्लंग (Macclung) नामक विद्वान् ने [[क्रोमोसोम]] का पता लगाया। उसी ने कुछ सिद्धांत भी बनाए, जो कालांतर में वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा पुष्ट होते गए। इस सिद्धांत में यह माना जाता है कि प्रत्येक प्राणी के कुछ विशिष्ट क्रोमोसोमों की संख्या पर उसका लिंग निर्भर करता है। क्रोमोसोमों की रचना को यदि अधिक शक्तिशाली [[सूक्ष्मदर्शी]], जैसे [[इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी]], द्वारा देखा जाए, तो उसमें भी कुछ बहुत ही सूक्ष्म रचनाएँ दिखाई पड़ेगी। इनको जीन (Genes) कहा जाता है और यह विश्वास किया जाता है कि ये ही जनक के आनुवंशिक (hereditary) गुणों को उनकी संतानों तक पहुँचाते हैं। जंतुओं और वनस्पतियों के क्रोमोसोमों तथा जीनों को लेकर बहुत अधिक अनुसंधान और प्रयोग हुए हैं।
 
यह पाया गया है कि प्रत्येक प्राणी की जनन कोशिकाओं में पाए जानेवाले क्रोमोसोमों में कुछ ऐसे होते हैं, जिन्हें अलिंगसूत्र (Autosomes) कहते हैं। ये नर तथा मादा दोनों में एक प्रकार के ही होते हैं और सदा युग्म (pair) में रहते हैं। कुछ दूसरे प्रकार के क्रोमोसोम भी पाए जाते हैं, जिन्हें लिंग निर्धारक (Sex determiner) कहा जाता है। अब तक जितने प्रकार के क्रोमोसोम पाए गए हैं, उन्हें एक्स (X), वाई (Y), डब्ल्यू (W), ज़ेड (Z) तथा ओ (O) की संज्ञा दी गई है। माना जाता है कि नर तथा मादा का निर्धारण इन्हीं लिंगनिर्धारक क्रोमोसोमों की सम तथा विषम संख्या द्वारा होता है, जैसे मनुष्यों में लिंग का निर्धारण इस प्रकार होता है :
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21 अलिंग सूत्र + 2 एक्स = स्त्री।
 
क्रोमोसोमों की संख्या के अनुसार नर तथा मादा को विषमयुग्मकी (heterogamous), या समयुग्मकी (homogamous), कहा जाता है। किसी प्राणी में नर समयुग्मकी होती है, तो किसी में मादा। पक्षियों, तितलियों, मछलियों, जलस्थलचर (amphibians) आदि में मादा विषमयुग्मकी होती है। इन प्राणियों में लिंगनिर्धारक क्रोमोसोमों को ज़ेड (Z) तथा डब्ल्यू (W) नाम दिया जाता है, जबकि अन्य प्राणियों तथा वनस्पतियों में इन्हें एक्स (X) तथा वाई (Y) के नाम से संबोधित किया जाता है।
 
अनेक प्राणियों में एक्स तथा वाई ही नर या मादा लिंग का निर्धारण करते हैं। जब एक्स वाला शुक्राणु मादा के अंडे से संयुक्त होता है, तब युग्मनज को दो एक्स एक्स (XX) मिलते हैं और वह मादा बनता है। किंतु जब शुक्राणु का वाई मादा के अंडे के एक्स से संयुक्त होता है, तब युग्मनज को एक्स वाई, अर्थात् विषम संख्या, प्राप्त होती है और वह नर होता है। मनुष्यों तथा अन्य प्राणियों के नर तथा मादा के क्रोमोसोमों में जो विभेद पाया जाता है, वह अगले पृष्ठ की सारणी में दिखाया गया है।
 
;वनस्पतियों में क्रोमोसोम
जिस प्रकार जंतुओं में क्रोमोसोमों का अध्ययन किया गया है, उसी प्रकार वनस्पतियों में भी उनका अध्ययन किया गया है। अधिकतर बीजवालेबीज वाले पौधे उभयलिंगाश्रयी (monoecious) होते हैं, अर्थात् उनमें नर तथा मादा लिंग एक साथ होते हैं। क्रोमोसोमों की गणना होने पर भी लिंग की चर्चा केवल नर-मादा-विश्लेषण के ही संदर्भ में की जाती है, क्योंकि लिंग और आनुवंशिकता की समस्या वनस्पतिजगत्वनस्पति जगत में नहीं है। कुछ जाति में नर तथा मादा पौधे पृथक् होते हैं। ऐसे पौधों के भी एक्स (X) तथा वाई (Y) क्रोमोसोमों का पता चला है, जैसे इलोडिया कैनाडेंसिस (Elodea canadensis), मिलैंड्रियम एल्बम (Milandrium album) आदि। बीजवाला एक पौधा, फ्रेगैरिया इलैटिऑर (Fragaria elatior), चिड़ियों की भाँति क्रोमोसोम वाला (abraxas type) बतलाया जाता है। कुछ अन्य पौधों में नर विषमलिंगी (heterogametic) होते हुए भी दो वाई (Y) तथा एक एक्स (X) धारण करता है। ह्रास विभाजन (meiosis) के समय दोनों वाई (Y) तथा एक्स (X) पृथक् हो जाते हैं और दो वाई (Y) जनन कोशिका से मिलकर नर तथा एक एक्स (X) मादा भ्रूण के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इसी प्रकार लिंग का निर्धारण अन्य पौधों में भी होता है।
 
=== हार्मोन सिद्धांत ===
प्राणियों के शरीर में कुछ ऐसी ग्रंथियाँ होती हैं जिन्हें वाहिनीहीन या अंत:स्रावी (Ductless, या EndorineEndocrine) कहा जाता है। कुछ विकसित, विशेषकर कशेरुकी, जंतुओं में इन ग्रंथियों के स्रावों का, जिन्हें हॉर्मोन कहते हैं, अध्ययन, किया गया है। वनस्पतियों में भी हॉर्मोन होते हैं या नहीं, यह विवादग्रस्त विषय है। जंतुओं के शरीर में पाई जानेवाली ग्रंथियों के नाम हैं : पीयूष (Pituitary, या Hypophysio), पीनियल (Pineal), अवटुग्रंथि (Thyroid), पैराथाइरॉइड (Parathyroid), थाइमस (Thymus), पैक्रिअस या अग्न्याशय (Pancreas), वृक्क (Adrenal); जननग्रंथि (Gonads), नर में वृषण (Testis) तथा मादा में अंडाशय (Ovary)। इन ग्रंथियों से निकलनेवाले हॉर्मोनों का अध्ययन विस्तार से किया गया है और यह पाया गया है कि नर प्राणी में पुरुषत्व (maleness) और मादा में स्त्रीत्व (femaleness) संबंधित गौण लैंगिक लक्षणों का अस्तित्व इन्हीं की क्रिया पर निर्भर करता है। जीन और क्रोमोसोम केवल यह निश्चित करते हैं कि युग्मनज नर होगा या मादा। वास्तविक पुरुषत्व और स्त्रीत्व का निर्धारण तथा उचित दिशा में उनका विकास वाहिनीहीन ग्रंथियों के स्रावों की सहायता से ही होता है। जैसे, कोई भ्रूण पुरुष के रूप में जन्म लेनेवाला हो तो स्त्री हॉर्मोनों की सूई लगाकर अथवा उसे बधिया कर देने (castration) और उसके स्थान पर अंडाशय ग्रंथियों को आरोपित कर देने पर वह या तो पूर्णरूपेण स्त्री हो जाएगा, या उसमें स्त्रीत्व के लक्षण विकसित हा जाएँगे।
 
;कुछ प्राणियों के नर तथा मादा क्रोमोसोमों की सारणी
"https://hi.wikipedia.org/wiki/लिंग" से प्राप्त