"हिन्दी पत्रकारिता": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: "बाहरी कड़ियाँ" अनुभाग का शीर्षक ठीक किया।
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मतलब साफ है। हिन्दी की आकांक्षाओं का यह विस्तार पत्रकारों की ओर भी देख रहा है। प्रगति की चेतना के साथ समाज की निचली कतार में बैठे लोग भी समाचार पत्रों की पंक्तियों में दिखने चाहिए। पिछले आईएएस, आईआईटी और तमाम शिक्षा परिषदों के परिणामों ने साबित कर दिया है कि हिन्दी भाषियों में सबसे निचली सीढ़ियों पर बैठे लोग भी जबरदस्त उछाल के लिए तैयार हैं। हिन्दी के पत्रकारों को उनसे एक कदम आगे चलना होगा ताकि उस जगह को फिर से हासिल सकें, जिसे पिछले चार दशकों में हमने लगातार खोया।
 
राजनीति कि रिपोर्टिंग
समाचार -पत्र राजनीतिक समाचारों को पत्र में अधिकांश जगह देते हैं,संभव है कि कुछ अंशो में यह टीका ठीक भी हो, किन्तु यह भी एक ठोस तथ्य है कि राजनीति ऊपर से नीचे तक आम जनजीवन में इतनी अधिक छा गयी है कि इसके बिना समाचारों कि अपेक्षा भी नहीं कि जा सकती। प्रश्न यह नहीं है कि राजनीती का जीवन मैं बहुत अधिक छा जाना उचित है या अनुचित। संवाददाता के लिए तो यह आवश्यक है कि जो राजनीति आज है, उसे अपने समाचार में उसके वास्तविक रूप में प्रस्तुत करें।
पुरे भारत में आज राजनीति के अखाड़े बन गए हैं। सभी स्तरों कि भांति शहरों तथा गांव में राजनैतिक दलबन्दी तथा दलों की आंतरिक गुटबंदी रहती है। राजनैतिक दलों कि बैठकें तो समय-समय पर औपचारिक ढंग से होती है, जिनमे लिए गए निर्णयों तथा निर्धारित कार्यक्रमों कि अधिकृत तौर पर घोषणा की जाती है। इसके समाचार संवाददाता को प्राप्त हो हि जाते हैं। इन समाचारों में रोचकता तब आती है जब उनमे राजनैतिक दलों कि बैठकों में हुई आंतरिक नोंक-झोंक, घात-प्रत्याघात, विवाद आदि का उल्लेख किया जाए।
संवाददाता के लिए अत्यंत आवश्यक है कि दलबन्दी तथा गुटबंदी से प्रभावित नहीं हो। उसे इन बैठकों के अथवा दलबन्दी तथा गुटबंदी के किसी भी प्रकार के समाचार देते समय यह सतर्कता तो रखनी ही चाहिए कि समाचार रोचक तथा पठनीय होने के साथ ही किसी दल विशेष या गुट विशेष कि स्तुति या निन्दा करने वाला नहीं रहे।
राजनैतिक नेता अपनी दलिय बैठकों के अतिरिक्त अन्य गतिविधियों में भी सक्रिय रहते है। प्राय: नित्य विभिन्न गुटों के लोग आपस में मिलते रहते है। उनके विचार-विमर्श का विषय राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक से लेकर स्थानीय घटनाएँ तथा हलचलें भी रहती है। इस बीच संवाददाताओं के लिए यह तो संभव नहीं रहता कि वह प्रतिदिन विभिन्न दलों तथा गुटों के नेताओं से मिले, क्यूंकि यह संवाददाता पूर्णकालीन पत्रकार नहीं रहता। संवाददाता को अपनी व्यवहार कुशलता से सबकी इतनी सदभावना तथा विश्वास प्राप्त करना पड़ता है कि कोई भी विशेष घटना घटे तो उसे उसका संवाद तुरंत मिल जाए।
कुछ संवाददाता ऐसे भी होते है जो किसी न किसी राजनैतिक दल के सदस्ये रहते है तथा गुटबाज़ी में लिप्त रहते हैं उन्हें यह सलाह तो नहीं दी जा सकती कि वे दलबन्दी या गुटबाज़ी के पृथक हो जाएं लेकिन संवाददाता होने के नाते उनसे यह अपेक्षा की जाती है की वे अपने समाचारों को अपने दलिये तथा गुटिये दृष्टिकोण से मुक्त रखें तथा अपने विपक्षी दल या गुट के समाचारों को भी पर्याप्त स्थान अपने समाचारो में दें।
शहरों तथा गांव के संवाददाता को राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक घटनाचक्र के साथ ही साथ अपने अंचल,संभाग तथा ज़िले के घटनाचक्र के प्रति पूर्णत: जागरुक रहना पड़ता है। किसी निर्णय की घोषणा, कोई आन्दोल, जनजीवन को प्रभावित करने वाली कोई घटना, कोई प्राकृतिक प्रकोप दुर्घटना, संक्रामक रोग का फैलना आदि। इन घटनाओं पर सत्तारूढ़ दल तथा विरोधी दल के प्रमुख नेताओं कि तत्काल प्रतिक्रिया प्राप्त कर उसी दिन संक्षिप्त समाचार प्रेषित करना संवाददाता की जागरूकता प्रदर्शित करता है।
राजीव ग़ांधी की हत्या समूचे भारत के लिए एक ज़बरदस्त आघात था। भारत के हर कोने कोने में उसकी प्रतिक्रिया हुई, मोटे तौर पर शहरों तथा गांव के संवाददाताओं द्वारा राजीव ग़ांधी की हत्या पर जनसाधारण पर हुई प्रतिक्रिया के समाचार तत्परतापूर्वक दिए गए थे।
किसी भी नेता के निधन पर उस स्थल में हुई शोकसभा में दी जाने वाली श्रद्धांजलि अथवा शोकशभा न होने पर विभिन्न दलों के प्रमुख नेताओं के शोक सन्देश संवाददाता के होते हैं। यदि नेता ने कभी पूर्व में घटनाओ की यात्रा कि हो तो तब कि कोई घटना भी समाचार को रोचक बनाती है।
 
चुनाव के समय पत्रकारों की महत्वपूण भूमिका रहती है. अगर हम निर्वाचन अधिकारीयों, अन्य विभिन्न सरकारी अधिकारियों तथा कर्मचारियों से निष्पक्षता की उम्मीद करते है और जहाँ वह नहीं होती वहां उसकी आलोचना करते है, तो ये रिपोर्टर का दायित्व है कि हम भी निष्पक्षता की अपेक्षा को अपने स्तर पर पूरा करें। चुनाव के मौकों पर अख़बार और रिपोर्टर की प्रतिष्ठा दांव पर लगी होती है। एक संवाददाता के रूप में विश्वश्नीयता की सबसे बड़ी परीक्षा तभी होती है और उस परीक्षा में सफल हो कर निकलते हैं तो न केवल इससे हमारे अख़बार की बल्कि रिपोर्टर की भी प्रतिष्ठा बढ़ती है। अंतत: एक अख़बार की प्रतिष्ठा बहुत हद तक उसके संवाददाताओं की प्रतिष्ठा से बनती है।
रिपोर्टर को राजनीति की रिपोर्टिंग करते वक़्त बहुत सावधानी बरतनी चाहिए यदि उससे कोई भूल हो जाती है तो वह नुकसानदेह साबित हो सकती है। उसका प्रमाद उसके छवि को घूमिल कर सकता है। इसीलिए विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट तैयार करते समय रिपोर्टर को अपनी ओर से ऐसा कुछ नहीं लिखना चाहिए जिससे किसी व्यक्ति या पार्टी की प्रतिष्ठा पर आंच आए या कोई निरपराधी दंड पा जाए।
इसी विषेय में कई बार राजनीति उठा पाठक में लोग खुद की गलती को छुपाने का प्रयास करते हैं, बल्कि रिपोर्टर उसके भृमात्मक या अंतर्विरोधी बयानों के आधार पर सत्यान्वेषण में लगना चाहिए और उसे कोई न कोई ऐसा सूत्र हाथ लग ही जाए जिससे वास्तविकता का पता चल जाए। राजनीति में आज कल ऐसा बहुत देखने को मिलता है कि घटना के समय संबंधित साक्ष्यों को या तो गायब कर दिया जाता या घटना से संबंधित साक्ष्य देने वाले बयान देने की स्थिति में ही नहीं होते।
भाषण रिपोर्टिंग का एक एहम हिस्सा है। मीडिया के हर समाचार माध्यम में कोई न कोई समाचार भाषण-आधारित होता ही है। भाषण से तात्पर्य सिर्फ नेता द्वारा सार्वजनिक सभा में दिया गया वक्तव्य नहीं हैं, बल्कि इसका अभिप्राय संगोष्ठी,अधिवेशन,संसद,विधानसभा आदि मे कही गई बातें या व्यक्त किए गए विचार हैं। इन विचारों के महत्वपूर्ण होने पर रिपोर्टर इन्हे अपनी रिपोर्ट में शामिल करता है। प्राय: महत्वपूर्ण व्यक्ति द्वारा कही गई बातों को ही रिपोर्ट में जगह दी जाती है। रिपोर्टर संगोष्ठी-सेमिनार अधिवेशन,संसद आदि में दिए गए भाषणों को ध्यान से सुनता है और फिर उनमे से सर्वाधिक महत्वपूण बात या विचार को इंट्रो में शामिल करता है। रिपोर्टर के लिए ज़रूरी नहीं कि वह किसी व्यक्ति की बातों को उसी की शब्दावली में लिखे। उसे उन बातों को अपनी भाषा में लिखने की पूरी छूट होती है, लेकिन ऐसा करते समय उसे ध्यान रखना पड़ता है कि किसी व्यक्ति के विचार उसकी भाषा में आकर बदल तो नहीं गए। भाषणों की रिपोर्टिंग के टेप रिकॉर्डर का प्रयोग बहुत अछा होता है। इससे यह सुविधा होती है कि रिपोर्टर सारी बातो को एक बार फिर सुन सकता है जिससे किसी महत्वपूण बात के छूटने की सम्भावना कम होती है या वक्ता के भाव बदल जाने की संभावना कम होती है।
रिपोर्टर को सभा या सेमिनार-स्थल पर जाकर आयोजकों से यह पता कर लेना पड़ता है कि आमंत्रित वक्ता जो विचार व्यक्त करने वाले है, उसकी कोई कॉपी मौजूद तो नहीं है। यदि उसे भाषण की प्रति मिल जाती है तो भी रिपोर्टर को वहां पुरे समय तक उपस्थित रहना पड़ता है, क्योंकि कई वक्त भाषण की कॉपी में व्यक्त विचारों के अलावा भी कुछ नई और महत्वपूर्ण बाते बोल जाते है। रिपोर्टर को उस कॉपी और भाषण में मिलान करके उनके महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित कर लेना होता है और फिर क्रमश: अतिमहत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण बातों को अपनी रिपोर्ट में लिख लेना चाहिए। वास्तव में ये सब कुछ रिपोर्टर के विवेक पर निर्भर करता है की वह सभा-सेमिनार में व्यक्त किए गए विचारों में से किसको सर्वाधिक महत्व देता है। रिपोर्टर महत्वपूर्ण व्यक्ति द्वारा कही गई सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात को ज्यों का त्यों शीर्षक के रूप में इस्तेमाल करता है और उसके आगे वक्ता का नाम दे देता है
भाषणो की रिपोर्टिंग दायित्वपूण कार्ये है, इसीलिए रिपोर्टर को वक्ता की बात को तोड़-मोड़ कर पेश नहीं करना चाहिए। इससे विवाद उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है।
रिपोर्टर को राजनीति की रिपोर्टिंग करते वक़्त बहुत सावधानी बरतनी चाहिए यदि उससे कोई भूल हो जाती है तो वह नुकसानदेह साबित हो सकती है। उसका प्रमाद उसके छवि को घूमिल कर सकता है। इसीलिए विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट तैयार करते समय रिपोर्टर को अपनी ओर से ऐसा कुछ नहीं लिखना चाहिए जिससे किसी व्यक्ति या पार्टी की प्रतिष्ठा पर आंच आए या कोई निरपराधी दंड पा जाए।
इसी विषेय में कई बार राजनीति उठा पाठक में लोग खुद की गलती को छुपाने का प्रयास करते हैं, बल्कि रिपोर्टर उसके भृमात्मक या अंतर्विरोधी बयानों के आधार पर सत्यान्वेषण में लगना चाहिए और उसे कोई न कोई ऐसा सूत्र हाथ लग ही जाए जिससे वास्तविकता का पता चल जाए। राजनीति में आज कल ऐसा बहुत देखने को मिलता है कि घटना के समय संबंधित साक्ष्यों को या तो गायब कर दिया जाता या घटना से संबंधित साक्ष्य देने वाले बयान देने की स्थिति में ही नहीं होते।
 
 
 
 
 
 
 
जो रिपोर्टर राजनीति कि रिपोर्टिंग करता है तो उस में मिलनसारिता, क्षिप्रकारिता,और कल्पना शक्ति का होना परम आवश्यक है एक रिपोर्टर को यह नहीं भूलना चाहिए के वह जब राजनीति कि रिपोर्टिंग करता है तो वह लोकतंत्र कि रिपोर्टिंग कर रहा होता है। राजनीति रिपोर्टिंग हर पत्रकार के बस कि बात नहीं इसके लिए कुशल और दक्ष पत्रकारों की ज़रूरत पड़ती है। इसीलिए समाचार-पत्र या समाचार समितियां किसी पत्रकार को उसकी विशेषज्ञता के आधार पर ही राजनीति की रिपोर्टिंग के लिए भेजती है। एक रिपोर्टर को राजनैतिक,गतिशील मुद्दों के बारे में विकट सोच होनी चाहिए, राजनीति से जुडी ख़बरों के बारे में स्वाभाविक बुद्धि हो,रिपोर्टिंग में स्पष्ट लेखन शैली जो ध्यान आकर्षित कर सके और एक सूक्षम अंतर पैदा कर सके, समय सीमा को ध्यान में रखते हुए प्रभावी ढंग से संचालित करने की क्षमता हो। आज इस भाग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सों में है की वह सरकार के औपचारिक कामकाज के बारे में नागरिको को सूचित करे। संभावित लापरवाही और दुरूपयोग पर एक प्रहरी के रूम में सेवा करे।
 
 
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