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* [[करणपद्धति]] में [[पाई]] का मान (पन्द्रहवीं शताब्दी में रचित ग्रन्थ)
:: अनूननून्नानननुन्ननित्यै-
:: स्समाहताश्चक्रकलाविभक्ताः
:: चण्डांशुचन्द्राधमकुंभिपालैर्‍-
:: व्यासस्तदर्‍द्धं त्रिभमौर्‍विक स्यात्‌
 
* निम्नलिखित श्लोक [[पाई]] का मान दशमलव के ३१ स्थानों तक शुद्ध देता है-
:: गोपीभाग्यमधुव्रात-श्रुग्ङिशोदधिसन्धिग ।
:: खलजीवितखाताव गलहालारसंधर ॥
 
* [[सदरत्नमाला]] में पाई का मान