"धनुर्वेद": अवतरणों में अंतर
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शास्त्रों के अनुसार चार [[वेद]] हैं और इसी तरह चार उपवेद हैं। इन उपवेदों में पहला [[आयुर्वेद]] है। दूसरा [[शिल्प वेद]] है। तीसरा [[गंधर्व वेद]] और चौथा धनुर्वेद है। इस धनुर्वेद में धनुर्विद्या का सारा रहस्य मौजूद है। ये अलग बात है कि अब ये धनुर्वेद अपने मूल स्वरुप में कहीं नहीं है।
[[वैशम्पायन]] द्वारा रचित '[[नीतिप्रकाश]]' या 'नीतिप्रकाशिका' नामक ग्रन्थ में धनुर्वेद के बारे में जानकारी है। यह ग्रंथ मद्रास में डॉ. आपर्ट द्वारा 1882 में सम्पादित किया गया। धनुर्वेद के अलावा इस ग्रन्थ में राजधर्मोपदेश, खड्गोत्पत्ति, मुक्तायुधनिरूपण, सेनानयन, सैन्यप्रयोग एवं राजव्यापार पर आठ अध्यायों में तक्षशिला में वैशम्पायन द्वारा जनमेजय को दिया गया शिक्षण है। इस ग्रंथ में राजशास्त्र के प्रवर्तकों का उल्लेख है।
==इन्हें भी देखें==
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