"मदनमोहन मालवीय": अवतरणों में अंतर

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2014 दिसम्बर में [[भारत रत्न]] से सम्मानित ।।
 
 
'''महामना मदन मोहन मालवीय''' (25 दिसम्बर 1861 - 1946) [[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]] के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे। वे [[भारत]] के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें '''महामना''' की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस [[विश्वविद्यालय]] की स्थापना की उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिये तैयार करने की थी जो देश का मस्तक गौरव से ऊँचा कर सकें। मालवीयजी सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति तथा आत्मत्याग में अद्वितीय थे। इन समस्त आचरणों पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे अपितु स्वयं उनका पालन भी किया करते थे। वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे।
कर्म ही उनका जीवन था। अनेकों संस्थाओं के जनक एवं सफल संचालक के रूप में उनकी अपनी विधि व्यवस्था का सुचारु सम्पादन करते हुए उन्होंने कभी भी रोष अथवा कड़ी भाषा का प्रयोग नहीं किया।
 
[[भारत सरकार]] ने २४ दिसम्बर २०१४ को उन्हें [[भारत रत्न]] से अलंकृत किया।
 
== प्रारम्भिक जीवन एवं शिक्षा ==
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कांग्रेस के निर्माताओं में विख्यात मालवीयजी ने उसके द्वितीय अधिवेशन (कलकत्ता-1886) से लेकर अपनी अन्तिम साँस तक स्वराज्य के लिये कठोर तप किया। उसके प्रथम उत्थान में नरम और गरम दलों के बीच की कड़ी मालवीयजी ही थे जो गान्धी-युग की कांग्रेस में हिन्दू मुसलमानों एवं उसके विभिन्न मतों में सामंजस्य स्थापित करने में प्रयत्नशील रहे। एनी बेसेंट ने ठीक कहा था कि"मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि विभिन्न मतों के बीच, केवल मालवीयजी भारतीय एकता की मूर्ति बने खड़े हुए हैं।" असहयोग आन्दोलन के आरम्भ तक नरम दल के नेताओं के कांग्रेस को छोड़ देने पर मालवीयजी उसमें डटे रहे और कांग्रेस ने उन्हें चार बार सभापति निर्वाचित करके सम्मानित किया। लाहौर (1909 में), दिल्ली (1918 और 1931 में) तथा कलकत्ता (1933 में)। यद्यपि अन्तिम दोनों बार वे सत्याग्रह के कारण पहले ही गिरफ्तार कर लिये गये। स्वतन्त्रता के लिये उनकी तड़प और प्रयासों के परिचायक फैजपुर कांग्रेस (1936) में राष्ट्रीय सरकार और चुनाव प्रस्ताव के समर्थन में मालवीयजी के ये शब्द स्मरणीय हैं कि मैं पचास वर्ष से कांग्रेस के साथ हूँ। सम्भव है मैं बहुत दिन न जियूँ और अपने जी में यह कसक लेकर मरूँ कि भारत अब भी पराधीन है। किंतु फिर भी मैं यह आशा करता हूँ कि मैं इस भारत को स्वतन्त्र देख सकूँगा।
 
=== स्वातन्त्र्य संग्राम में भूमिका ===
[[चित्र:Electrical Engg Deptt IT-BHU.JPG|thumb|right|200px|[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]] का एक विभाग]]
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* [http://14.139.41.16/mahamana/index.php?lang=hi-IN महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय] (महामना के १५०वें जन्मदिवस पर निर्मित सम्पूर्ण जालघर)
* [http://www.prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=141112-114145-320010 जातिवाद की बेड़ियाँ तोड़ने वाले मालवीयजी] (प्रभासाक्षी)
* [http://naidunia.jagran.com/national-the-values-given-to-hindi-in-court-272546 अदालत में हिंदी को दिलाया मान] (नई दुनिया)
 
{{भारत रत्न सम्मानित}}
[[श्रेणी:१८६१ जन्म]]